गुणानंद जखमोला
मोदी जी देश की जनता को भेड़ो की तर्ज पर हांकने लगे हैं और हम मौत से इतने डर गये हैं कि मोदी जो कहें, हमें वही ठीक लग रहा है। देश के साइंटिस्ट और बुद्धिजीवी तबका चुपचाप घर बैठ गया है।
अब कोई समझना नहीं चाहता कि मोदी ने पांच अप्रैल को जो अचानक ही देश की जनता से घरों की लाइट बंद कर दिए, मोमबत्ती या मोबाइल लाइट जलाने की बात कही है, वो साइंस की भाषा में क्या है।
मान लीजिए, उत्तराखंड में 90 प्रतिशत लोगों ने मोदी की बात मानी, जो कि मानेंगे भी, तो क्या होगा? नौ मिनट लाइट स्वयं बंद कर हम छतों या बालकनी में होंगे। लाइट बंद होने से सारा लोड पावर डिस्ट्रीब्यूशन यानी यूपीसीएल पर चला जाएगा।
यूपीसीएल यदि पिटकुल के साथ मिलकर रिएक्टर से इस लोड को कंट्रोल न कर सका तो इसके परिणाम खतरनाक होंगे। आखिर रिएक्टर भी लोड शेडिंग को एक सीमा तक ही कंट्रोल कर सकता है। यानी या तो ग्रिड फेल हो जाएगा या नौ मिनट बाद जब लोग अपने घरों की लाइट आॅन करेंगे तो एकाएक वोल्टेज जर्क करेगा और लाखों घरों के उपकरण हाई वोल्टेज से फुंक जाएंगे।
संभवतः यही चिन्ता देश भर के बिजली विभागों की होगी कि इस ब्लैकआउट को मैनेज करें तो कैसे वो भी महज एक दिन में।
उत्तराखंड बिजली विभाग के एक अधिकारी की बात मानें तो खतरा है। हालांकि इस संबंध में बिजली निगम के तीनों घटकों की आज बैठक भी हो रही है। लेकिन ये सच है कि उनकी मुसीबतें बढ़ गयी हैं।
उनका मानना है कि बेहतर होता कि मोदी बिजली विभागों को कहते कि लाइट बंद करो, इससे अस्पताल व अन्य आपातकालीन जगहों को छोड़कर वे बिजली की कटौती करते, लेकिन उन्होंने यह अपील कर बिजली जनरेट, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को मुसीबत में डाल दिया है। तो चाहे आप मोदी भक्त हों या नहीं, अपने घरों के उपकरणों को बचाने में आप ही को जागरूक रहना पड़ेगा।