“उत्तराखंड की कुछ फिल्मी हस्तियां अखबार मालिकों और पत्रकारों के दबाव में मूर्खतापूर्ण वीडियो जारी करके कह रही हैं कि अखबार से कोरोनावायरस नहीं फैल सकता जबकि अखबार कई हाथों से होकर आपके पास पहुंचता है।”
“मामला अखबारों की विश्वसनीयता का नहीं है। बल्कि यह मामला वायरस के हाथों से हाथों में ट्रांसफर होने का है।”
वरिष्ठ पत्रकार तथा पिछली भाजपा सरकार में उत्तराखंड के बाल संरक्षण आयोग अध्यक्ष रहे अजय सेतिया ने अपनी फेसबुक पोस्ट मे यह आगाह किया है कि अखबारों से कोरोनावायरस नहीं फैलने का बयान मूर्खतापूर्ण है।
अहम सवाल यह भी है कि यदि कागज से संक्रमण का खतरा नहीं होता तो रिजर्व बैंक नोटों के कम से कम इस्तेमाल और उसकी जगह ऑनलाइन डिजिटल लेनदेन का निर्देश जारी नहीं करता।
क्या बयानवीर लेंगे जिम्मेदारी !
अजय सेतिया ने कहा कि नेता अभिनेता विश्व स्वास्थ्य संगठन के किसी बयान का हवाला दे रहे हैं कि उसने भी कह दिया है कि अखबार से कोरोनावायरस नहीं फैलता। यह उसी विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला दे रहे हैं जिसने 14 जनवरी को बयान जारी करके कहा था कि कोरोनावायरस आदमी से आदमी में नहीं फैलता। अखबार कई हाथों से होकर आपके पास पहुंचता है। इसलिए दिल्ली के सभी अखबार सिर्फ ऑनलाइन ही आ रहे हैं। अखबार मार्केट में नहीं आ रहे।
धर्मेंद्र कुमार ने भी प्रिंट मीडिया संस्थानों से कुछ सवाल पूछे थे लेकिन उनका भी जवाब नहीं मिला।
सवाल यह है कि किसी कागज पर कोरोनावायरस कब तक रहता है !
क्या अखबार का कागज कोरोना वायरस प्रतिरोधी होता है !
क्या छपाई के बाद अखबार पर पैकिंग, फॉरवर्डिंग, परिवहन और वितरण के समय किसी व्यक्ति का हाथ नहीं लगता !
क्या प्रतिदिन घर-घर जाकर अखबार बांटने वाले हाॅकर कोरोनावायरस से सुरक्षित बचे रह सकते हैं !
क्या अखबार आवश्यक सेवाओं के अंतर्गत आता है ! क्या समाचारों के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया डिजिटल मीडिया, ई-पेपर जैसे माध्यम सुरक्षित नहीं है !
जब उद्योगपति व्यावसाई दिहाड़ी मजदूर तक देश समाज हित में अपना काम धंधा रोक सकते हैं तो अखबार वाले क्यों नहीं !
धर्मेंद्र कुमार ने एक अखबार की खबर का हवाला देते हुए कहते हैं कि अखबार ने लिखा है कि मशीनों से कार्य होने के कारण अखबार से कोरोना संक्रमण का खतरा ना के बराबर होता है। मगर अखबार ने भी कोरोना संक्रमण से शतप्रतिशत सुरक्षित होने का दावा नहीं किया है।
इसके बावजूद अखबार भ्रम फैला रहा है और इस भ्रम को फैलाने के लिए उसने राज्य के प्रमुख राजनेताओं का भी सहारा लिया है।
क्या यह राजनेता कोरोनावायरस एक्सपर्ट हैं !
वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कुमार सावधानी बरतने की सलाह देते हुए कहते हैं कि अखबार को पढ़ने से पहले मैं भी उस पर पहले प्रेस करता हूं फिर पढ़ता हूँ ।
भगवान ना करे कोई अनहोनी होती है तो प्रचार लिप्सा वाले यह राजनेता समाज में भ्रम फैलाने में समान रूप से जिम्मेदार होंगे।
कोरोना की भयावहता के चलते इन दिनों कई पत्र-पत्रिकाओं ने अपने प्रकाशन स्थगित किए हुए हैं ऐसे में कुछ संस्थान प्रकाशन प्रसार की जिद किए हुए हैं उसे क्या कहा जाए !