अपने कार्यकाल के सिडकुल घोटाले की सतर्कता जांच को दबा गई भाजपा सरकार !!
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार ने सिडकुल घोटाले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया हुआ है। लेकिन यह जांच सिर्फ कांग्रेस कार्यकाल ( वर्ष 2012-1017) का है। वर्तमान आईजी गढ़वाल अभिनव कुमार के नेतृत्व में एसआईटी जांच में तेजी भी आ रही है। लेकिन सबसे बड़ा खुलासा यह है कि भाजपा सरकार अपने पिछले कार्यकाल यानी वर्ष 2007 से 2012 तक की सिडकुल घोटाले की जांच को आखिर क्यों दबा गई है। भाजपा कार्यकाल में वर्ष 2007 से 12 तक सिडकुल पंतनगर फेस 1 फेस 2,फार्मासिटी सेलाकुई देहरादून, आईटी पार्क देहरादून, सितारगंज औद्योगिक आस्थान निर्माण कार्य मे भी बहुत बड़ा घोटाला हुआ था।
यह घोटाला लगभग 500 करोड़ का था। 9 दिसंबर 2011 को उत्तराखंड शासन के मुख्य सचिव की बैठक में भी इस घोटाले की जांच करने का निर्णय लिया गया था। तथा इसकी सतर्कता जांच कराने के लिए तत्कालीन प्रमुख सचिव उद्योग राकेश शर्मा ने आदेश भी किया था। किंतु आज भी औद्योगिक विकास विभाग के अपर सचिव उस जांच के लंबित होने की बात कहते हैं। आखिर यह कैसी जांच है जो 8 साल से चल ही रही है ! आखिर उस जांच का क्या हुआ !
क्या उस जांच का लंबित रहना भाजपा सरकार की जीरो टॉलरेंस की मंशा पर सवाल खड़े नहीं करता ! इस प्रकरण में वरिष्ठ पत्रकार अपूर्व जोशी ने सूचना के अधिकार में जानना चाहा था तो उन्हें 19 जून 2019 को लोक सूचना अधिकारी और अनु सचिव अजीत सिंह ने यह कहते हुए सूचना देने से इंकार कर दिया कि सतर्कता विभाग से संबंधित होने के कारण सूचना नहीं दी जा सकती। जबकि आरटीआइ कार्यकर्ता तथा वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर करगेती की एक जनहित याचिका पर उत्तराखंड हाई कोर्ट आदेशित कर चुका है कि भ्रष्टाचार की सूचना देने से सतर्कता विभाग मना नहीं कर सकता।
लोकायुक्त की संस्तुति पर हुई थी सतर्कता जांच
गौरतलब है कि हरिद्वार के आरटीआई एक्टिविस्ट रमेश चंद्र शर्मा की शिकायत पर तत्कालीन लोकायुक्त ने 5 मई 2011 को सिडकुल घोटाले की जांच करके दोषी अधिकारियों को चिन्हित करने और उनके दोषी पाए जाने पर उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने की संस्तुति की थी। लोकायुक्त की जांच और संस्तुति के आधार पर तत्कालीन मुख्य सचिव ने 9 दिसंबर 2011 को एक बैठक आयोजित की थी और उत्तराखंड शासन की इस बैठक में सिडकुल घोटाले में निकल कर आए मामलों को महत्वपूर्ण और विशिष्ट प्रकृति का बताते हुए सतर्कता जांच कराने का निर्णय लिया था।
लोकायुक्त द्वारा दी गई संस्तुति और पारित किए गए प्रतिवेदन तथा मुख्य सचिव के निर्णय के बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास राकेश शर्मा ने 5 मार्च 2012 को तत्कालीन अपर सचिव सतर्कता अरविंद सिंह हयांकी को सिडकुल घोटाले की सतर्कता जांच कराने का आदेश दिया था।लेकिन तब से यह जांच लंबित पड़ी है। 3 मई 2019 को औद्योगिक विभाग के अपर सचिव उमेश नारायण पांडे ने सतर्कता विभाग के अपर सचिव/ संयुक्त सचिव को पत्र लिखा था कि 5 मार्च 2012 से अब तक इतनी दीर्घ अवधि व्यतीत होने के उपरांत भी उक्त प्रकरण में जांच से औद्योगिक विकास विभाग को अवगत नहीं कराया गया है।
आखिर क्या हुआ उस जांच का
5 मार्च 2012 को तत्कालीन औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव राकेश शर्मा ने सतर्कता विभाग को सिडकुल घोटाले की जांच करने आदेश दिया था। राकेश शर्मा ने अपने आदेश में कहा था कि “सिडकुल के पंतनगर फेस 1 फेस 2 में हुए अवस्थापना विकास कार्यों के साथ ही फार्मा सिटी सेलाकुई देहरादून और सितारगंज के औद्योगिक क्षेत्रों की अवस्थापना कार्य तथा आईटी पार्क देहरादून के निर्माण कार्यों में हुई अनियमितताओं की जांच करके दोषियों को चिन्हित किया जाए।” राकेश शर्मा ने यह भी आदेश किया था कि किसी के भी दोषी पाए जाने पर उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जाए। यही नहीं 9 दिसंबर 2011 को भी उत्तराखंड शासन के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि इस प्रकरण की सतर्कता जांच कराते हुए जांच आख्या उपलब्ध कराई जाए। आखिर वर्ष 2011 में सिडकुल घोटाले की सतर्कता जांच का क्या हश्र हुआ !
अहम सवाल यह भी है कि, क्या इस तरह की जांच की बात भाजपा और कांग्रेस सरकार एक दूसरे को दबाव में ला कर चुप कराने के लिए कहते हैं या फिर भाजपा और कांग्रेस दोनों सिडकुल घोटाले की जांच के लिए गंभीर हैं ! यदि वाकई जीरो टॉलरेंस की सरकार सिडकुल घोटाले की जांच के लिए गंभीर है तो जांच तो वर्ष 2002 से अब तक सिडकुल में हुए समस्त निर्माण कार्यों की भी बनती है। कम से कम वर्ष 2011 में सिडकुल घोटाले की जांच के लिए जो आदेश किए थे उस पर सतर्कता जांच अभी तक क्यों लंबित है ! यह एक बड़ा सवाल है।
भाजपा पर सवाल
यदि जांच सिर्फ 2012 से 17 के बीच के कार्यों की होनी है तो फिर यह सवाल तो उठेगा ही कि यह जांच कांग्रेस को दबाव में लाने के लिए की जा रही है।
जाहिर है कि भाजपा सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वर्ष 2011 में सिडकुल घोटाले के खिलाफ शुरू की गई सतर्कता जांच में भी तेजी दिखानी चाहिए।