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उत्तराखंड की दारमा वैली मे आज भी “दिल्ली दूर, चाइना पास”

September 24, 2019
in पर्वतजन
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कमल जगाती, नैनीताल

उत्तराखण्ड में चीन की सीमा से लगा एक बड़ा हिस्सा देश की अधिकतर सुख-सुविधाओं से अभी तक वंचित है, जिसके कारण यहां से लोग पलायन को मजबूर हैं, परिणामवश देश की सीमा कमजोर होती जा रही है। इस क्षेत्र में न बिजली है, न पानी, न तो अस्पताल है और न ही स्कूल। इतना ही नहीं यहां तो टेलीफोन और मोबाइल के साथ पक्की सड़क भी नहीं है। यहां के लोग दीन दुनिया से कई दिनों तक वंचित रहते हैं। ये लोग राजधानी दिल्ली के बजाए चीन पहुंचना ज्यादा सरल समझते हैं।


दुग्तु गांव के रहने वाली गणेश दुग्ताल बताते हैं कि पिथौरागढ़ जिले में धारचूला से हिमालय की तरफ दारमा वैली में 14 गांव हैं, जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

चीन से लगे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र से लोग लगातार पलायन करने को मजबूर हैं। यहां टूटी-फूटी, पतली, पथरीली सड़क से होकर जैसे तैसे पहुंचा जा सकता है। वर्ष 2017 में बनी इन सड़कों में आए दिन भूस्खलन होते रहता है। इस सड़क में एक तरफ खड़ा पहाड़ तो दूसरी तरफ खाई और उसमें बहती काली और धौलीगंगा नदियां हैं।

दारमा वैली में लगभग 11,000फ़ीट की ऊंचाई पर बसे दुग्तु और दातू गांव उन गांवों में शामिल हैं जिन्होंने आजादी के बाद से अभी तक विकास का चेहरा नहीं देखा है।

यहां इक्का दुक्का मकानों में सोलर लाइट हैं जबकि बाकी मकान अभी भी लालटेन से काम चलाते हैं। ग्रामीणों ने पेयजल सप्लाई विभाग की अनुपस्थिति में प्राकृतिक जल स्रोतों से अपने घर तक पानी खींचा है। स्कूल नहीं होने पर पढ़ाई के लिए यहां के बच्चे पलायन को मजबूर हैं। छोटी छोटी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए भी मजबूर ग्रामीणों को शहर का रुख करना पड़ता है। यहां के लोग बेहद ही सरल, खुशदिल, मददगार, मेहनती, होशियार और सच्चे देशभक्त होते हैं।

हिमालय के पंचाचूली पर्वत तक पहुंचने का यह सबसे सरल रास्ता माना जाता है।
दारमा के अलावा व्यास वैली और मुनस्यारी वैली भी इसी तरह विकास से कोसों दूर हैं। पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से धारचुला केवल 100 किलोमीटर और दारमा वैली केवल 54 किलोमीटर है।

ग्रामीणों का कहना है कि छोटी मोटी खेती होती भी है तो उसे भालू खराब कर जाते हैं । वैली में सीपू, मारछा, तिदंग, धाकर, गो, दातू, दुगतु, सौंन, फ़िल्म, बॉन, बॉलिंग, नगलिंग, चल, सैला गांव बेस हैं जहां से अधिकतर लोग पलायन को मजबूर हैं।


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