नीरज उत्तराखण्डी/तुनाल्का नौगांव
सीमित संसाधनों तंग आर्थिक हालत के साथ दिव्यांग और अनाथ बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी लाने और उनके जीवन में ममता की छांव मुहैया कराने के लिए विजय पब्लिक आवासीय स्कूल की स्थापना कर अपना जीवन समर्पित करने वाली विजय लक्ष्मी जोशी को बड़कोट गंगनाणी में आयोजित बसंत उत्सव मेला कुण्ड की जातर में सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जिला पंचायत उत्तरकाशी द्वारा सम्मानित किया गया है।
विजय लक्ष्मी जोशी ने तुनाल्का में विजय पब्लिक आवासीय स्कूल की संस्थापक व संचालक है, जो समाज के पीड़ित, शोषित तथा आर्थिक रूप से कमजोर अनाथ दिव्यांग बच्चों की शिक्षा -दीक्षा, पालन -पोषण कर उनके जीवन में शिक्षा की रोशनी लाने तथा उन्हें मां की ममता और पिता का स्नेह दे रही हैं।
विजय पब्लिक दिव्यांग आवासीय विद्यालय तुनाल्का में वर्तमान समय में 42 दिव्यांग नौनिहाल अक्षर बांच रहें हैं, जिनमें 24 बालक तथा 18 बालिकाएं हैं तथा उनके पढ़ाने के लिए 8 शिक्षकों की व्यवस्था हैं। 2 बाबर्ची तथा 1 आया सहित कुल 11 का स्टाफ कार्य कर रहें हैं।
बेसिक से जूनियर तक 42 अनाथ तथा दिव्यांग बच्चें ब्रेल लिपि में अध्ययन कर रहे हैं। सीमित संसाधनों तथा आर्थिक सहायता के अभाव में बच्चों के खाने पीने रहने से लेकर किताबें कपड़े की व्यवस्था की गई हैं ।
बच्चों ने विद्यालय की समस्याओं के संबंध में ब्रेल लिपि में जिला अधिकारी डा आशीष चौहान को पत्र लिखा है। जिला अधिकारी डा. आशीष चौहान को लिखी भावुक चिट्ठी में बच्चों ने विद्यालय की समस्याओं से अवगत करवा कर उनसे मिलने की प्रबल इच्छा जाहिर की है। नौनिहालों ने ब्रेल लिपि में पत्र लिखकर बिजली के अभाव में विद्यालय में हो रही समस्याओं के संबंध में अवगत कराया है, वहीं उनकी लोकप्रिय कार्यशैली की प्रशंसा कर उनसे मिलने की प्रबल इच्छा जाहिर की है।
जिलाधिकारी डा. आशीष चौहान ने बताया कि वे बच्चों से शीघ्र मुलाकात करेंगे और उनसे रूबरू हो कर उनकी समस्या सुनेंगे।
विद्यालय निर्देशिका विजय लक्ष्मी जोशी व प्रबन्धक बीरेन्द्र दत्त जोशी ने बताया कि समिति संसाधनों तथा आर्थिक हालत के चलते विद्यालय संचालन में कठिनाई से जूझना पड़ रहा है, लेकिन उन्हें समय-समय पर जो सामाजिक सरोकारों से सहयोग मिलता है, वह उन्हे प्रेरित करता है। क्षेत्र के सोम्य किन्तु तेजतर्रार विधायक केदार सिंह रावत विद्यालय में ढांचा गत सुविधाएं जुटाने के लिए समय समय पर सहयोग करते रहें हैं।
रविवार को शिक्षक, लेखक, संस्कृति के संरक्षण चन्द्र भूषण बिजल्वाण के साथ विजय पब्लिक स्कूल तुनाल्का जाने का अवसर मिला।बच्चों से रूबरू होने उनसे बातचीत करने और उनकी समस्या, उनका ज्ञान जानने, गीत संगीत सुनने का सुअवसर मिला। बच्चों ने मुझे ब्रेल लिपि में लिखी किताब में पाठ पढकर सुनाया, लेकिन मेरे लिए तो यह लिपि काला अक्षर भैंस बराबर थी। इसलिए यह जानने के लिए कि क्या बालिका सही पढ़ रही हैं, मैंने कक्षा 5की हिन्दी की किताब का वही पाठ निकाला जो दिव्यांग बालिका प्रियांशी ब्रेल लिपि में बिना रुके धारा प्रवाह ढंग से पढ़ने जा रही थी, कहीं कोई गलती नहीं। उसके अंदर छिपी आलौकिक प्रतिभा ने हमें आश्चर्यचकित कर दिया। ब्रेल लिपि की हिन्दी और अंग्रेजी की की कुंजी लेकर विजय लक्ष्मी जोशी ने मुझे समझाने का प्रयास किया, लेकिन काफी प्रयास के बाद कुछ समझ आया। बिजल्वाण जी फोटो ग्राफी में तल्लीन थे। बच्चों ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में हमें बताया और भविष्य में क्या बनाना चाहते? यह भी बताया।
कक्षा 5 में पढ़ने वाली गियूंला ब्रहमखाल की प्रियांशी तथा टेकरा ब्रहमखाल की ही कक्षा 2 में पढने वाली सरिता से जब पूछा कि वे पढ़ लिखकर क्या बनना चाहती हैं? बड़े अदब से कहा, सर हम ‘मैड़म बनना चाहती हैं।
प्रियांशी और सरिता ने अपनी सुरीली आवाज में गीत संगीत भी सुनाया। देशभक्ति गाना सुन कर लगा कुदरत जिससे कुछ छीनती हैं, उससे कुछ अतिरिक्त भी देती है। भले ही यहां पढ़ने वाले बच्चों के सिर से कुदरत ने मां की ममता और पिता का साया और स्नेह तथा आंखों की रोशनी छीन लिया हो, लेकिन उन्हें अतिरिक्त मानसिक और बौद्धिक शक्ति भी प्रदान की है।
जिला पंचायत उत्तरकाशी द्वारा आयोजित बसंत उत्सव मेला कुण्ड की जातर में विजय पब्लिक स्कूल के कुमारी ललिता, प्रियंका, सरिता, रक्षा, प्रियांशी, सुमित, गिरीश, सचिन, नितिन और राजपाल को उनके अंदर छुपी प्रतिभा अच्छे लेखन, कला, गायन के लिए सम्मानित किया गया है।
आवश्यकता है इन प्रतिभाओं को तराशने और निखारने की और इस काम को बखूबी अंजाम दे रही है विजय लक्ष्मी जोशी। कुदरत ने इन असहाय दृष्टिहीन बच्चों को ममता की छाँव के रूप में एक लक्ष्य को साधने के लिए विजय लक्ष्मी जैसी ममतामयी शिक्षिका भी दी है। विद्यालय संचालन में उनके पति वीरेन्द्र जोशी कंधे से कंधा मिलाकर उनका सहयोग करते हैं, लेकिन विडंबना देखिए हम अपने मौज और धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बेहिसाब धन खर्च करते और दान देते है, लेकिन असहाय बच्चों की शिक्षा दीक्षा के लिए दान में कंजूसी करते है।
शात्र भी यही कहते है असहाय की सेवा करना उनके जीवन में रोशनी लाना ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।