रिपोर्ट:नीरज उत्तराखण्डी
एक कहावत है बेकार से बेगार भली । जी हां फ़ालतू बैठकर समय गँवाने से तो बढ़िया है, प्रकृति की नेमतों को रोजी रोटी का जरिया बनाया जाये । ऐसा ही कुछ देखने को मिला रवांई बसंत उत्सव एवं विकास मेला यानि पुरोला की जातर में।
यमुनोत्री के बनास गांव के चार युवा मनोज,अंकित,सुभाष एवं सुनील ने बर्फ लाकर उसे परंपरागत रूप से चटपटा एवं जायकेदार बनाकर रोजी का अस्थाई जरिया बना दिया।
पुरोला में चल रहे रवांई बसंत उत्सव विकास मेला यानि पुरोला बाजार की जातर में यूं तो घरेलू सामानों से लेकर आकर्षक परिधानों और परदों साजो सामनों बर्तनों की दुकानें सजी हैं| बच्चों के मनोरजन के लिए झूले चरखी चल रही है । रवांई के परम्परागत पकवानों की रवांई रसोई भी सजी है।लेकिन आगंतुक रवांई रसोई में स्थानीय पकवानों का आनंद ले साथ ही प्राकृतिक बर्फ का जायका भी ले रहे है।
प्राकृतिक बर्फ को मेले में रोजी रोटी का जरिया बनाने वाले युवक मनोज ने बताया कि वह अपने तीन साथियों के साथ मिल कर यमुनोत्री 20 फरवरी को 40 बोरे बर्फ भरकर लाये थे,जिनमें 15 बोरे अब तक पिघल चुके है। बिगत 6दिनों में 15 बोरे बर्फ बेच चुके है। 2000 रूपये की लागत से बर्फ को जायकेदार बनाकर साधारण प्लेट 10 रूपये तथा स्पेशल प्लेट 20 रूपये के भाव से बेचकर खर्चा काटकर 8,000 हजार रूपये का शुद्ध मुनाफ़ा कमा चुके है।
बेकार रहने से तो अच्छा है प्रकृति की नेमतों को आय का जरिया बनाया जाये। नेचुरल बर्फ से सेहत के लिए लाभदायक होती है। जबकि मशीन से बना शीतल पेयपदार्थ शरीर के लिए हानिकारक होता है।यूं तो जातर में आईस क्रीम और शीतल पेय पदार्थों की दुकानें भी सजी थी लेकिन जब मेले में आये लोगो ने बाइक पर सजी प्रकृति बर्फ की टोकरी देखी तो अपने को बर्फ का जायका लेने से रोक नही पाये। कुछ करने का इरादा हो तो मखियां मारने से बेहतर है कि समय के अनुकूल प्रकृति प्रदत्त निशुल्क नेमतों को रोजी का जरिया बनाकर कुछ आय अर्जित की जाये ।