पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड: जयप्रकाश नौगाई
“उत्तम खेती मध्यम बान” कहावत को सच साबित करते हुए पौड़ी के खिर्सू ब्लॉक के नौगांव गांव निवासी कृषक घनश्याम ने बंजर ज़मीन को उपजाऊ बना कर न सिर्फ खेती को सफल बनाया बल्कि आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक प्रेरणादायक उदाहरण भी पेश किया है। घनश्याम ने लगभग 3000 से अधिक एप्पल मिशन (सेब), कीवी और पोलम के पौधे लगाकर इलाके को हरियाली से भर दिया है।
बंजर ज़मीन को बनाया फलदार बग़ीचा
घनश्याम ने अपने गांव की वर्षों से अनुपयोगी पड़ी ज़मीन को कठिन परिश्रम और समर्पण से सींचा। आज यही भूमि सेब और कीवी के लहलहाते बागानों से सजी है। एप्पल मिशन योजना के तहत उन्हें उद्यान विभाग का सहयोग मिला, जिसने इस कार्य को और गति दी।
मत्स्य पालन व पशुपालन से जोड़ा बहुआयामी विकास
खेती तक सीमित न रहते हुए, उन्होंने मत्स्य पालन भी शुरू किया। खेत के पास एक तालाब बनाकर उन्होंने मछलियों का पालन शुरू किया, जिससे अतिरिक्त आमदनी हो रही है। इसके साथ ही गाय, बकरी और भैंस पालन कर जैविक खाद तैयार कर रहे हैं, जिसका उपयोग वे अपने बागानों में करते हैं।
स्थानीय लोगों को भी मिल रहा रोज़गार
घनश्याम की इस पहल से स्थानीय युवाओं और ग्रामीणों को भी रोज़गार के अवसर मिले हैं। वे न केवल खुद आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि गांव के अन्य परिवारों को भी रोज़गार और कृषि के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी योगदान
उनका मानना है कि बंजर ज़मीनों का दोबारा उपयोग न केवल खेती के लिए ज़रूरी है, बल्कि यह पानी के संकट से बचने का भी उपाय है। उनका कहना है, “अगर हम ज़मीन को यूं ही छोड़ते रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब पानी के लिए महामारी जैसे हालात बन जाएंगे।”
प्रशासन और विभाग का जताया आभार
कृषक घनश्याम ने जिला प्रशासन और उद्यान विभाग का आभार जताया है जिन्होंने उन्हें एप्पल मिशन योजना के तहत सहयोग दिया। उन्होंने कहा कि यदि विभाग का मार्गदर्शन और सहयोग न मिला होता, तो यह सब संभव नहीं हो पाता।
घनश्याम का यह प्रयास न केवल पहाड़ों में खेती की संभावनाओं को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि दृढ़ संकल्प, सरकारी सहयोग और मेहनत से पहाड़ी इलाकों में भी आर्थिक और पर्यावरणीय विकास संभव है। उनका गांव नौगांव अब पूरे जनपद में प्रेरणा का केंद्र बन चुका है।
🌱 घनश्याम की कहानी युवाओं को यह संदेश देती है कि अगर लगन और मेहनत हो तो पहाड़ों की भी चुप जमीन बोलने लगती है।