देहरादून। कोराना पॉजिटिव युवक पर मुकदमे की हेडलाइन शायद आप अब तक भूले नहीं होंगे। भूलेंगे भी नहीं। मामला भूलने वाला भी नहीं है। जितना हल्का समझा जा रहा है, उतना है नहीं। मामला बेहद गंभीर और भारी है। बड़ी चूक और भारी लापरवाही का है। जनता को हर बार की तरह अपने बुने जाल में फंसाने वाले सिस्टम ने अपनी गर्दन बचाने के लिए रातों-रात जाल बुना और उसमें संस्थागत क्वारंटीन में रखे गए नौगांव ब्लॉक के कोरोना पॉजिटिव युवक पर मुकदमा दर्ज कर लिया। मुकदमा दर्ज करने को लेकर पूरी गंभीरता दिखाई, लेकिन, पूरा सिस्टम ऋषिकेश से ही लापरवाह बना रहा।
मामला सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में है। प्रशासन के फैसले पर सवाल भी उठ रहे हैं। आजाद पंचायत के विजयपाल रावत ने इस मामले पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
अब आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि हुआ क्या था। कोरोना पॉजिटिव युवक के परिजन जो बता रहे हैं। स्थितियां जो कह रही हैं। घटनाक्रम जैसे घटा…। इशारा सिस्टम की नाकामी की ओर जाता है। इशारा सिस्टम की बदइंतजामी की ओर मुड़ता नजर आता है। इशारा सिस्टम की लापरवाही की ओर ही होता नजर आता है।
युवक को एम्स से उत्तरकाशी भेजे जाने के फैसले पर भी पहले भी सवाल उठे। एम्स को युवक को वहीं क्वारंटीन करना चाहिए था। सवाल यह भी क्या एम्स के पास इतने संसाधन नहीं थे कि एक मरीज को एक दिन के लिए भर्ती कर पाता? एम्स ये बात जानता था कि कल उसकी रिपोर्ट आ जाएगी, फिर क्यों उसे भर्ती नहीं किया गया? सवाल ये भी है कि क्या एम्स के जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए?
सवाल ये है कि एम्स से युवक को सरकारी वाहन से ले जाया गया। उनके ऋषिकेश में रहने के लिए सहमति के बाद भी उत्तरकाशी के लिया बस में बिठा दिया गया। एक बड़ा सवाल यह है कि जब युवक की रेफर स्लिप में उसे संस्थागत क्वारंटी करने के लिए लिखा गया था, फिर उसे ऋषिकेश या देहरादून में क्वारंटीन क्यों नहीं किया गया? उसे बस में बिठाकर 170 किलोमीटर दूर उत्तरकाशी क्यों भेजा गया? क्या इस लापरवाही के लिए जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए? क्या लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया जाना चाहिए? क्या वो अधिकारी जिम्मेदार नहीं हैं, जो सब कुछ जानने के बाद भी अनजान बने रहे?
सवालों की कड़ी सहीं समाप्त नहीं होती। युवक उत्तरकाशी जिला मुख्यालय पहुंच गया था। वहां काली कमली धर्मशाला में रोकने की बात भी सामने आई है।
सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग युवक को एक और दिन रिपोर्ट आने तक वहां नहीं रोक सकते थे? क्यों उसे वाहन में बिठाकर बड़कोट लाया गया? वहां से उसे संस्थागत क्वारंटीन सेंटर में रख गया। रिपोर्ट आने के बाद उसे बताया भी नहीं गया कि उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव है आखिर क्यों? हालांकि कोरोना पॉजि़टिव युवक ने एक बात कबूली है कि उनसे गलती हुई कि वो जांच वाली बात नहीं बता पाए, लेकिन इसके पीछे कोइ मकसद नहीं था। फोन भी बंद नहीं किया था। महाराष्ट्र का सिम होने के कारण दिक्कत आई थी।
सवाल पुलिस और प्रशासन पर सबसे बड़ा है। सवाल यह है कि ऋषिकेश एम्स से उसके जो भी दस्तावेज बनाए गए थे। उनमें साफतौर पर लिखा गया था कि युवक में गंभीर लक्षण हैं। अगर उसमें हिस्ट्री नहीं लिखी गयी तो जिम्मेदार कौन हुआ? पुलिस ने क्यों नहीं बताया कि युवक महाराष्ट्र से आया है? रिपोर्ट में संस्थागत क्वारंटीन की बात भी कही गई थी। ऋषिकेश से लेकर उत्तरकाशी और फिर बड़कोट तक…पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन और कोरोना की रोकथाम के लिए तैनात अधिकारी और कर्मचारी क्या कर रहे थे? क्या उन्होंने एक बार भी युवक के कागज नहीं देखे? एक और बड़ा सवाल यह है कि जब खुद युवक रुकने के लिए तैयार थे, फिर उनको क्यों भेजा गया? इतना ही नहीं महाराष्ट्र से आये युवकों ने उत्तरकाशी जाने के लिए बाकायदा पास के लिए आवेदन किया। तब क्यों उनका पास बनाया गया। एम्स से लेकर पुलिस और प्रशासन जानता था कि वो कहाँ से आये हैं, फिर उनको ऋषिकेश में ही क्वारंटीन क्यों नहीं किया गया?
ट्रैवल हिस्ट्री छुपाने का आरोप ही गलत है। ऋषिकेश पुलिस सब जानती थी। एम्स ऋषिकेश सब जानता था। सवाल ये है कि फिर यवक आरोपी कैसे हुआ? फिर क्यों उस पर ट्रैवल हिस्ट्र छुपाने का आरोप लगाया गया? क्या सरकार इन सवालों का जवाब देगी? क्या सरकार लापरवाही बरतने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी जान से मारने के प्रयास, आपदा प्रबंधन एक्ट और उन्हीं धाराओं में मुकदमा दर्ज करेगी?