पुरोला
रिपोर्ट/नीरज उत्तराखंडी
उत्तरकाशी :
लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार महाबीर रवांल्टा को उत्तराखंड शासन द्वारा उत्तराखंड भाषा संस्थान में बतौर सदस्य नामित किए जाने पर लोक भाषा व भाषा प्रेमियों के दिन बहुरेंगे।
साहित्य साधकों में इस बात को लेकर जहाँ नई उम्मीद जगी है, वहीं उनके चयन को लेकर सम्पूर्ण क्षेत्र में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी है।
बताते चलें कि, प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में उत्तराखंड भाषा संस्थान (ULI) सभा का गठन किया गया। जिसे प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में स्थापित किया जायेगा।
संस्थान के अध्यक्ष मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तथा कार्यकारी अध्यक्ष प्रदेश के भाषा मंत्री यतीश्वरानंद होंगे। संस्थान के सदस्यों में हिंदी, उर्दू, पंजाबी एवं लोक भाषा के 12 विख्यात भाषाविद व साहित्यकारों को नामित किया गया है।
शासन द्वारा भाषा संस्थान हेतु लोकभाषा के अंतर्गत जिन लोक साहित्यकारों को नामित किया गया है, उनमें महावीर रवांल्टा के साथ नरेन्द्र सिंह नेगी, डॉ.अतुल शर्मा, प्रो. गोविंद सिंह, उर्दू भाषा के लिए अंबर खरबंदा और पंजाब के लिए सरदार गुरुदीप सिंह को रखा गया है तथा हिंदी भाषा साहित्यकारों में डॉ. सुधा रानी पांडेय, प्रो. मंजुला राणा, डॉ.सुशील उपाध्याय, प्रो. शांति नाबियाल, प्रो. देव सिंह पोखरिया, प्रो.नीरजा टंडन को नामित किया गया है।
मूल रूप से रवांई की माटी में जन्मे—पले—बड़े महावीर रवांल्टा यद्यपि लोक भाषाओं के प्रति काफी गंभीर है और उसी गंभीरता के साथ ‘रवांल्टी’ के संवर्धन व संरक्षण के दिशा में प्रयासरत है। उसके इतर हिंदी साहित्य में भी उनके योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता है।
अब तक 4 उपन्यास, 11 कहानी संग्रह, 4 नाटक, 4 कविता संग्रह, 1 बाल एकाकी संग्रह, 2 बाल कहानी संग्रह, 1 बाल कविता संग्रह, 1 बाल नाटक, 1 व्यंग्य संग्रह सहित लोक साहित्य की श्रेणी में 4 अतिरिक्त लोककथा संग्रह हिंदी साहित्य प्रेमियों को समर्पित कर चुके महाबीर रवांल्टा के साहित्यिक योगदान व व्यापक फलक का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
इतना ही नहीं कविता, कहानी, आलेखों के माध्यमों से भी वे विभिन्न पत्र—पत्रिकाओं व चैनलों के माध्यमों से लोगों तक अपनी पहुँच बनाए हुए हैं। उनके साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध प्रबंधन का होना भी स्वाभाविक है।
रवांल्टी को व्यापक पहचान दिलाने में मिल का पत्थर है रवांल्टा जी का योगदान।
उक्त सभी के अतिरिक्त साहित्यकार रवांल्टा द्वारा ‘भाषा- शोध एवं प्रकाशन केंद्र वडोदरा ( गुजरात) के तत्वाधान में संचालित भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण (People’s linguistic Survey of India) के अंतर्गत रवांल्टी पर, उत्तराखंड भाषा संस्थान के भाषा सर्वेक्षण में ‘रवांल्टी का सांस्कृतिक एवं भाषा वैज्ञानिक विवेचन’, पहाड़ (नैनीताल) के बहुभाषी शब्दकोश ‘झिक्कल काम्ची उडायली’ में रवांल्टी पर काम करने के साथ ही बहुभाषा साहित्य संमेलन घुमान (पंजाब) तथा हिन्दी विभाग कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल तथा सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड एंड लेस नोन लेंग्वेज (SEL) लखनऊ द्वारा आयोजित भाषा प्रलेखन एवं शब्दकोश निर्माण कार्यशाला में रवांल्टी भाषा को लेकर कार्य किया गया है।
रवांल्टी में कविता रचने व पहला रवांल्टी कविता संग्रह ‘गैणी जण आमार सुईन’ प्रकाशित करने का श्रेय भी महाबीर रवांल्टा को जाता है। रवांल्टा की निरंतरता का ही प्रतिफल है कि उनका दूसरा रवांल्टी कविता संग्रह ‘छपराल’ सामने आने वाला है।
साहित्य पथ पर इसी निरंतरता के चलते उन्हें अब तक कई मंचों से सम्मानित किया जा चुका है। सीमांत रवाँई क्षेत्र के एक दूरस्थ ग्राम में जन्मे और वर्तमान में भी जनपद के सबसे दूरस्थ स्वास्थ्य केन्द्र पर पूरी तत्परता के साथ जन—सेवा में जुटे महाबीर रवांल्टा के परिश्रम का ही प्रतिफल है कि उन्हें उत्तराखंड भाषा संस्थान में नामित किया गया है।
रवांल्टा के नामित होने पर रवांई ही नहीं बल्कि रवांई से लगे जौनसार, बावर, देवघार व जौनपुर क्षेत्रवासियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है। विश्वास जताया जा रहा है कि, रवांल्टा जी का नामित होना निश्चित ही लोक भाषा व भाषा प्रेमियों के लिए कुछ नया व बेहतर होगा।
इसी संबंध में जौनसार के समाज सेवी इन्द्र सिंह नेगी कहते हैं”उम्मीद है कि महाबीर रवांल्टा के नेतृत्व में उत्तराखंड की लोक भाषाओं के लिए बेहतर कार्य होगा तथा देश-दुनिया में यहां की भाषाएं विस्तार ले पायेगी, साथ ही साथ नये-नये लेखवारों को प्रोत्साहन मिलेगा ताकि लेखन की भाषाई सरिता की गतिशीलता व प्रवाह बना रहे ।”