उत्तराखंड मे 28 जुलाई को देश के हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का एक सम्मेलन मसूरी में आयोजित हो रहा है।
इस सम्मेलन पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सवाल उठाते हुए इसको विशुद्ध भाजपाई चिंतन शिविर ठहराया तो कुछ अहम सुझाव भी दिए हैं।
आइए पढ़ते हैं हरीश रावत ने सिर्फ पर्वतजन को प्रकाशित करने के लिए दिए इस पत्र में क्या कुछ कहा है !
“कुछ लोगों के हाथ, पांव व दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ खुजली रहती है। मुझे भी ऐसी ही बीमारी है, कोई बुलाए या ना बुलाए मैं चल पड़ता हूं।
कोई कहे या ना कहे सलाह देने लगता हूं। पहली बार श्रीमती जी ने मुझे मेरे पिछले कुछ महीनों की यात्राओं के खर्चे की लिस्ट पढ़ाई। लोकसभा चुनाव के बाद अब हमें आगे के जीवन यापन की चिंता हो गई है। उम्र के इस पड़ाव पर यह स्वाभाविक है। आज भी कोई कह नहीं रहा है परंतु मेरे हाथ व दिमाग मसूरी कांक्लेव पर कुछ लिखने को खुजला रहे हैं।
मसूरी कॉन्क्लेव विशुद्ध रूप से भाजपाई चिंतन शिविर है। पहाड़ों में कैसे भाजपा को प्राप्त राजनीतिक लाभ को घनीभूत किया जाए, इस पर चिंतन होगा। चामलिंग आ रहे हैं या नहीं कोई सार्वजनिक सूचना नहीं है। दार्जिलिंग के पहाड़ व नीलगिरी पश्चिमी घाट के पठार वाले राज्यों को इस में बुलाया नहीं गया होगा। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है, महामहिम राज्यपाल शायद प्रोटोकॉल की बाध्यता का बहाना कर नहीं आएंगे।
कोई आए या ना आए मुझे मुख्यमंत्री उत्तराखंड की पहल अच्छी लगी।
एक बार केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री के तौर पर पहाड़ी खेती व बागवानी को लेकर मैंने भी एक सेमिनार देहरादून में करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री जी को सहमत करवाया था। कुछ प्रारंभिक तैयारियां भी हुई। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री को लगा कि इसका क्रेडिट में ले जाऊंगा। कुछ वे ढीले पड़े, कुछ उसी समय काल में दैविक आपदा घटित हुई, मामला ठंडा पड़ गया।
स्वर्गीय श्री रघुनंदन सिंह टोलिया, पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड ने भी ऐसे कुछ सम्मेलन दिल्ली, ईटानगर में आयोजित किए जिसमें सभी हिमालयी राज्यों ने भाग लिया।
उन्होंने एक हिमालयन पॉलिसी पेपर भी तैयार किया था। श्री टोलिया निरंतर तत्कालीन सरकार व योजना आयोग के संपर्क में थे। मैं राजनीति से हटकर इसको हिमालयी क्षेत्र के सरोकारों पर राष्ट्रीय फोकस लाने के अवसर के रूप में देखता हूं।
इस कथन के लिए क्षमा चाहता हूं। इस समय हिमालयी राज्यों का कोई भी मुख्यमंत्री अनुभव व स्टेचर के हिसाब से अपने पूर्व वर्तियों के समकक्ष नहीं है। पहले श्री वीरभद्र सिंह, श्री लालथनवाला, तरुण गोगोई जी श्री इबोबी सिंह जी समकक्ष व्यक्तित्व धारी मुख्यमंत्री थे।
उनकी बात केंद्रीय सत्ता को सुननी ही पड़ती थी। देश व नीति निर्धारक उनके सुझावों का संदर्भ लेते थे। आज स्थिति बदली हुई है। सामूहिकता ही प्रभावी शस्त्र है। इसलिए मैं बार-बार इस कॉन्क्लेव का स्वागत कर रहा हूं।
मैं चाहता हूं कि श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य व पहाड़ों के सम्मुख खड़ी चुनौतियों को दिल्ली के सम्मुख संघर्ष पूर्ण तरीके से रखें। 14वें वित्त आयोग के लागू होने के बाद केंद्र सरकार ने पहाड़ी राज्यों का स्पेशल स्टेटस खत्म कर दिया। हिमालयी राज्यों विशेषकर उत्तराखंड को, केंद्र से बड़ा नुकसान हो रहा था। मैंने बार-बार इस मुद्दे को उठाया अंततः तत्कालीन वित्तमंत्री ने हमारे नुकसान की प्रतिपूर्ति की व पूर्ववत बाह्य स्रोतों से फंडेड योजनाओं में 90 -10 के अनुपात को लागू करने का निर्णय लिया।
पिछले 2 वर्षों में राज्य में डबल इंजन कंसेप्ट के बावजूद राज्य को केंद्र से कम पैसा मिला है। त्रिवेंद्र जी को इस तथ्य पर भी ध्यान रखना होगा कि मध्य हिमालयी राज्यों व पूर्वोत्तर के राज्यों की भौगोलिक समस्याओं के अतिरिक्त अन्य चुनौतियां भिन्न हैं। नॉर्थ ईस्ट के लिए पहले से ही एक डोनर मंत्रालय जिसका पृथक बजट है, मध्य हिमालय में भी जम्मू कश्मीर के लिए भिन्न राष्ट्रीय दृष्टिकोण है। अतः फोकस उत्तराखंड व हिमाचल की समस्याओं पर भी आए, इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
मैंने इसी तथ्य को ध्यान में रखकर अपने एक ट्वीट के माध्यम से 10 बिंदुओं की तरफ कांक्लेव का ध्यान खींचा था। मैं नहीं जानता आयोजकगणों के मध्य किन बिंदुओं पर मंथन होने वाला है, परंतु मैं पुनः उन बिंदुओं को दोहरा रहा हूं।
1- डॉ मनमोहन सिंह सरकार के अंतिम बजट में हिमालयी राज्यों को ग्रीन बोनस राशि दी गई थी। उत्तराखंड को भी राशि प्राप्त हुई थी। हिमालयी राज्यों को पुनः ग्रीन बोनस दिया जाए। 2- सीमा सुरक्षा की दृष्टिकोण से सीमा से लगने वाले गांव को आबाद रखने वाले किसानों को ₹2000 प्रति व्यक्ति प्रतिमाह आजीविका बोनस दिया जाए।
3- सीमांत गांव के नौजवानों को पैरामिलिट्री फोर्सेस में भर्ती में 2% का विशेष क्षेत्र आरक्षण दिया जाए।
4- हिमालयी राज्यों में इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में 3 गुना अधिक खर्च आता है, इसकी पूर्ति केंद्रांश के रूप में केंद्र सरकार करें।
5- यूपीए सरकार के समय सभी हिमालयी राज्यों को स्पेशल कैटेगरी स्टेट का दर्जा प्राप्त था। विशेष सुविधाओं सहित इस दर्जे को बहाल किया जाए।
6- हिमालयी राज्यों में स्थापित उद्योगों को केंद्रीय करों के भुगतान में छूट को वर्ष 2030 तक बढ़ाया जाए।
7- हिमालयी राज्यों में उत्पादित दस्तकारी वस्तुओं के निर्यात के लिए एक इंटीग्रेटेड उत्पादन एवं मार्केटिंग सर्किट या कॉरिडोर तैयार किया जाए।
8- हिमालयी राज्यों में उत्पादित विद्युत पर इन राज्यों की हिस्सेदारी को दोगुना किया जाए। इन राज्यों को जल पर टैक्स लगाने की अनुमति दी जाए।
9- रोपवेज व ट्रॉली वेज को सड़क के समकक्ष दर्जा दिया जाए।
10- इन राज्यों में जंगल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए गैस व विद्युत आपूर्ति सामान्य से कम दरों पर की जाए।
मेरा विश्वास है कि खूबसूरत वादियों में शानदार उत्तराखंडी आथित्य के साथ माननीय मुख्यमंत्री एक प्रभावी हिमालयी एजेंडा तैयार करने में सफल होंगे।
शुभकामनाओं सहित,
( हरीश रावत)