फर्जी शिक्षकों की जांच लटकाने पर सरकार से नाराज हाईकोर्ट
रिपोर्ट- जगदम्बा कोठारी
देहरादून। स्टूडेंट वेलफेयर सोसाइटी, हल्द्वानी की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद माननीय उच्चतम न्यायालय ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति पाए अध्यापकों के सत्यापन का आदेश राज्य सरकार को दिया था। कल सोमवार को मामले की सुनवाई कार्यवाही न्यायधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ एवं रविंद्र मैथानी की खंडपीठ में हुई। इस दौरान सरकार की ओर से शपत पत्र कोर्ट में पेश नहीं किया गया। सरकार की ओर से जांच के लिए और समय मांगने पर हाईकोर्ट ने सख्त एतराज जताते हुए 5 नवंबर को शपत पत्र प्रस्तुत करने के आदेश दिए। प्रदेश भर में लगभग साड़े तीन हजार फर्जी शिक्षकों के प्रमाण पत्रों का सत्यापन का कार्य एसआईटी कर रही है। जिसमें अभी तक केवल 84 ही फर्जी शिक्षक पाए गए हैं और एसआईटी को जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का समय अब समाप्त हो चुका है।
लेकिन अभी तक S.I.T इन फर्जी शिक्षकों की धरपकड़ में नाकाम रही है। अशासकीय विद्यालयों में बड़े पैमाने पर फर्जी शिक्षकों की अवैध नियुक्ति हुई है। जबकि इन अध्यापकों का वेतन और सुविधाएं लगभग शासकीय अध्यापकों के समान ही हैं। जिनमें माध्यमिक विद्यालयों में कई प्रधानाचार्य, उप प्रधानाचार्या जैसे बड़े पदों पर फर्जी नियुक्ति पाए हैं। प्रदेश में अब तक 84 जूनियर एवं प्राथमिक वर्ग के फर्जी शिक्षक पकड़े गए हैं। अकेले रुद्रप्रयाग जनपद में 19 फर्जी शिक्षक जांच में सामने आए हैं। जिनमें से 10 को बर्खास्त कर दिया गया है और बाकी 9 शिक्षकों पर अभी तक केवल जांच ही चल रही है। इन 19 शिक्षकों में से एसआईटी की गाज केवल उन फर्जी शिक्षकों पर गिरी है जिनकी डिग्रियों तक का रिकॉर्ड चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में नहीं मिला।
इन शिक्षकों ने वर्ष 1994 एवं 2005 के बीच चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से डिग्री लेने की बात कही थी। जिस कारण अब उनकी कोई शोर-सिफारिश की गुंजाइश भी नहीं बची। जबकि दो-दो अंक तालिका और नकली दस्तावेज देकर नौकरी पाने वाले गुरुजी एसआईटी की जांच में फर्जी नहीं हैं और उनको जांच में शामिल नहीं किया जा रहा है। आपके विश्वसनीय एवं चहेते पोर्टल ‘पर्वतजन’ ने जब अपने स्तर से इस मामले में जांच की तो चौंकानेवाली जानकारी सामने आई। इन फर्जी शिक्षकों के साक्षात्कार लेने वाले विषय विशेषज्ञ पैनलिस्ट में से कुछ पैनलिस्ट ऐसे भी हैं जो इन शिक्षकों के इंटरव्यू लेने के दौरान एक ही समय और एक ही दिन दो अलग-अलग जगह ड्यूटी पर उपस्थित थे।
कुछ पैनलिस्ट उसी समय और उसी दिन यह शिक्षकों का साक्षात्कार भी ले रहे हैं और उसी दिन उसी समय यह शिक्षक क्लास भी ले रहे हैं, तो कोई पैनलिस्ट शिक्षक साक्षात्कार के दौरान उसी दिन परीक्षा ड्यूटी में भी तैनात है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि इन पैनलिस्ट की उपस्थिति रजिस्टर यही बता रहा है। अब खुद को जांच में फंसता देख यह बड़े अधिकारी अपने चहेते शिक्षकों (इनके द्वारा जिनको नियुक्ति दी गई है) पर भी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। जैसा कि, ओंकारानंद हिमालयन मांटेसरी स्कूल जखोली के विवादित और फर्जी प्रभारी प्रधानाचार्य कपूर पंवार के मामले में भी हो रहा है। जिनकी एक ही वर्ष में दो-दो अंक तालिकाएं सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।
मगर शिक्षा विभाग और फर्जी शिक्षकों की जांच कर रही एसआईटी इनसे पूछने की जहमत नहीं उठा रही है कि आखिर इन गुरु जी की एक ही वर्ष की यह दो-दो अंक तालिकाएं कैसे बनी? बावजूद इसके शिक्षा विभाग दो बार की जांच में इन को क्लीन चिट दे चुका है। अशासकीय विद्यालयों में फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति का यह बहुत पुराना और बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा है। प्रबंधकीय विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति का पूर्ण अधिकार केवल विद्यालय की प्रबंधन समिति को ही होता है और इसी आधार पर कई विद्यालयों में फर्जी प्रमाणपत्रों और दस्तावेजों के आधार पर शिक्षकों को नियुक्ति दी गई है। इन सब मामलों की निष्पक्ष जांच के लिए हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच समिति बननी चाहिए जो इस बड़े फर्जीवाड़े की निष्पक्ष जांच कर सके। जिसके बाद चौकाने वाले बड़े मामले सामने आने की पूरी उम्मीद है, जिनको कि एसआईटी अपनी जांच में शामिल ही नहीं कर रही है।