उत्तराखंड में जीरो टोलरेंस सिर्फ कहने भर का रह गया है। हकीकत यह है कि अच्छे अफसरों के लिए यहां काम करने का माहौल दिन-प्रतिदिन खराब होता जा रहा है। यही कारण है कि अफसर एक-एक करके यहां से खिसक रहे हैं।
अब तीन आईएएस नितेश झा, राधिका झा और सेंथिल पांडियन को केंद्र से बुलावा आने वाला है। यह तीनों अफसर सेंटर में संयुक्त सचिव पद के लिए इंपैनल्ड हुए हैं। यह राज्य पर एक तरह से दोहरी मार है। एक तरफ कई अफसर सेवानिवृत्त हो रहे हैं तो कुछ उत्तराखंड में काम करने का सही माहौल न होने के कारण दूसरे प्रदेशों में प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। अब तीन अफसरों के सेंटर में जाने से उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेसी पटरी से उतर गई है।
कुछ सेवानिवृत्त, कुछ प्रतिनियुक्ति पर
रणवीर सिंह और चंचल तिवारी मार्च में सेवानिवृत्त हो चुके हैं तो ज्योति यादव को ईमानदारी से काम करने के कारण इतना प्रताड़ित किया गया कि वह प्रतिनियुक्ति पर मध्य प्रदेश चली गई।
इनके अलावा छह अन्य अफसर भी केंद्र अथवा अन्य राज्यों में प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। इनमें राघव लंगर, श्रीधर बाबू अदान्की, बीबीआरसी पुरुषोत्तम, सचिन कुर्वे, अनूप बलवान, डॉक्टर सुखबीर सिंह संधू, डॉक्टर राकेश कुमार शामिल हैं।
कुछ जाना चाहते हैं पर परमीशन नही
इसके अलावा कई ऐसे अफसर हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री के नजदीकी और ताकतवर नौकरशाह ओमप्रकाश जैसे अफसरों द्वारा काम नहीं करने दिया जा रहा है। यह अफसर भी उत्तराखंड से जाना चाहते हैं लेकिन इन्हें सरकार से परमिशन नहीं मिल रही है। ऐसे अफसरों में हरवंश सिंह चुघ जैसे अफसर भी शामिल हैं जो उत्तराखंड में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण यहां से जाना तो चाहते हैं लेकिन परमिशन न मिलने के कारण नहीं जा पा रहे।
उत्तराखंड से अफसरों के इस पलायन के कारण राज्य की गुड गवर्नेंस पॉलिसी दिन प्रतिदिन खत्म होते जा रही है।
एक तरफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने कंधों पर 45 से अधिक विभागों का बोझ लादा हुआ है, वहीं अफसरों का दिन प्रतिदिन पलायन हो रहा है। देखना यह है कि इस स्थिति में कैसे और कब तक सुधार आता है !