स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में देहरादून की नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के मामले में मृत्युदंड सजायाफ्ता ने पोक्सो न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि वो उस दौरान घायल था और ऐसा नहीं कर सकता था । न्यायालय में सोमवार को इस मामले में अभियुक्त और मैडिकल टीम मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के सम्मुख उपस्थित होंगे ।
देहरादून की नाबालिग के साथ दुष्कर्म मामले में पॉसो अदालत से मृत्युदंड के आदेश को अभियुक्त ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी । अभियुक्त ने दुष्कर्म और हत्या करने के लिए देहरादून की पॉक्सो न्यायालय के हत्यारे को फांसी की सजा दिए जाने के खिलाफ अपील दायर की । उन्होंने कहा कि घटना के दौरान वो बुरी तरह से घायल थे और ऐसा कर ही नहीं सकते थे, उन्हें झूठा फंसाया गया है।
आरोपी के अधिवक्ता ने न्यायालय से प्रार्थना कर कहा कि आरोपी की निचली अदालत में मैडिकल जाँच हुई ही नहीं थी । सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने सी.एम.ओ.देहरादून को निर्देश दिए थे कि अभियुक्त की मैडिकल जाँच के लिए एक मैडिकल बोर्ड का गठन कर 7 दिसम्बर को उसकी सम्पूर्ण मैडिकल जाँच कराई जाए ।
मामले के अनुसार देहरादून के त्यूणी रोटा खड्ड के पास दो फरवरी 2016 को क्षेत्रवासियों को एक शव पेड़ पर लटका दिखा जिसकी सूचना पुलिस को दी गयी। पुलिस ने शव की पहचान नवी में पढ़ने वाली एक नैपाली मूल की छात्रा के रूप में की । क्षेत्रवासियों और परिजनों ने पुलिस को बताया कि छात्रा को देहरादून निवासी टैक्सी ड्राइवर मोहम्मद अजहर अपनी मोटर साइकिल में एक जनवरी 2016 को ले जाता देखा गया। पुलिस ने जब उसके घर मे छापा मारा तो वह फरार था। गहन खोजबीन के बाद आरोपी को हिमांचल के सिरमौर से 5 जनवरी 2016 को गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त ने पुलिस के सामने यह बयान दिया कि उसने पहले नाबालिक के साथ दुष्कर्म किया और बाद में उसके शव को पेड़ में लटका दिया। जिससे लोगो को पता नही चल सके कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ। उसने बचने के लिए मामले को सुसाइड का रूप दिया। उसके दुपट्टे से शव को पेड़ पर लटका दिया। डी.एन.ए.जांच में भी इसकी पुष्टि हुई।
अभियुक्त को देहरादून की पॉक्सो कोर्ट की विशेष न्यायाधीश रमा पांडे ने 12 दिसम्बर 2018 को फांसी की सजा सुनवाई और उसे 70 हजार का रुपये का अर्थदण्ड भी लगाया । पॉसो कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि 50 हजार रुपये मृतक के परिजनों को और 20 हजार रुपये राजकीय खजाने में जमा किया जाए। इस आदेश के खिलाफ अभियुक्त ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की।