अमित पांडेय
जिज्ञासा बढी क्योंकि जन्मभूमि से संबंधित आयोजन था तो समय निकाल कर जाने का प्रोग्राम बनाया। फिर पता चला कि एंट्री के लिए सीधे नही जा सकते एक पास लेना है और उस की विधि है कि या तो 750 रुपये का या फिर 1000 रुपये का एडवांस पेमेंट कर के आप पास ले सकते है।
खैर अब दिमाग में ये तस्वीर साफ सी ही हो गई थी कि ये था कि ये कौथिक नही है एक प्रॉपर इवेंट है, जिसमे आप पैसे देकर अच्छे कलाकारों को सुनेंगे क्योंकि कलाकार देवभूमि से थे और उनको सुनना हमेशा से सौभाग्य ही माना जाता है इसलिए 1000 रुपये की टिकट बुक भी करा ली क्योंकि इसे स्टेज के पास बताया गया था और डायमंड कैटेगरी दी गई थी।
फिर एक टिकट पास आया जो कि ग्रीन कैटेगरी जिसकी कि ईमेल में 750 रुपये दिखाई गई थी। ईमेल पर ही सवाल पूछने पर जब कोई जबाब नही। तो लगा कि कोई बात नही थोड़ा गड़बड़ हुई होगी तो वेन्यू में जाकर ही आराम से बात की जा सकती है। वहाँ पहुँच कर पता चला कि 750 और 1000 में कोई भी अंतर नही है जो सीट मिल चुकी है उसी में बैठना होगा और एक ही सीट कई लोगों को आवंटित की जा चुकी थी। खैर इंतजार तो कार्यक्रम का ही था ,तो 10:30 पूर्व में तय समयानुसार पहुँच कर अपनी सीट पकड़ ली।
विलंब होते होते 1:30 बज गए लेकिन कार्यक्रम शुरू ही नही हो सका, लोगो के चेहरे पर थकान और निराशा के भाव साफ तौर पर देखे जा सकते थे लेकिन उत्सुकता से सभी भरे थे और कार्यक्रम के इंतजार में सीट से जुड़े बैठे थे।
1:30 बजे एक Announcement हुआ कि कार्यक्रम में आधे घंटे का विलंब और है तो आप कृपा कर भोजन ( लंच ) कर लें जिसकी व्यवस्था बाहर पंडाल में करी गई है। लोग भी बाहर जाने लगे तो एक भोजन के लिए भी एक अच्छी लाइन लग गई। जब करीब 200 मीटर की पंक्ति में लगने के बाद नंबर आया तो पंडाल स्वामी ने एक अच्छी से मुस्कुराहट के साथ 300 रुपये की मांग करी और बताया कि ये सब आपको खरीदना होगा, 300 रुपये की थाली है। अब मन मे कौतूहल सा था कि 300 रुपये में उत्तराखंड का भोजन मिलेगा तो वो भी ठीक है। भोजन को मैं कभी भी बुरा नही कहता क्योंकि भोजन का अपमान नही किया जा सकता। बस आप इसी बात से अनुमान लगा सकते है पीने के पानी तक की सही से व्यवस्था नही थी। 300 रुपये की थाली की तस्वीर में जरूर आपके साथ सांझा करूँगा।
भोजन उपरांत जब बैठे तो लगभग 2:10 पर कार्यक्रम की शुरुआत हुई। लोकगीतों से कलाकारों ने सभी का मन जीता भी।
कई घटनाएं ऐसी भी हुई कि मन सा ही उखड़ गया।
सामंत जी अपना गीत “लौट आ पहाड़” के बीच मे थे कि कार्यक्रम के एक विशिष्ट अतिथि पहुँच गए और आयोजको द्वारा उनको बीच मे ही रोक दिया। मैं सामंत साहब को व्यक्तिगत तौर पर नही जानता लेकिन ये एक कलाकार का अपमान मात्र ही लगा। ये कैसे जायज है?
साउंड सिस्टम की व्यवस्था या फिर लाइट की व्यवस्था से कलाकार अपना सामंजस्य ही नही बैठा पाए। कलाकारों और आयोजको के बीच जो कुछ भी घटित हुआ हो उससे प्रभावित तो आम श्रोता ही हुआ?
पैसे की माया से कौथिक को हाइप्रोफाइल इवेंट में बदल देना कैसे उचित?
कुछ Volunteers पूरी शिद्दत और मेहनत से भागादौड़ी में थे क्या उनको पूरा सम्मान मिला?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को मुख्य अतिथि के तौर पर दर्शाया गया था लेकिन वो कार्यक्रम में पहुँचे तक नही।
खैर अंत मे यही कहना है कि कौथिक के नाम पर होने वाली दिनदहाड़े लूट कैसे जायज है?
जिन्होंने सुखद अनुभव दिया जिसे में सुन पाया और देख पाया।
1) बाबा केदारनाथ जी का प्रसाद वितरण।
2) #Pandvas का बेहतरीन परफॉर्मेंस।
3) नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा उम्दा लोकगीतों का प्रदर्शन।
4) घरेलू उत्पाद #Fruitage का वहाँ दिखना साथ मे नींबू और गडेरी को प्रोत्साहन देना।