इधर चैंपियन प्रकरण और उधर मोदी मैजिक से उठा भरोसा। काम न होने से चिंतित भाजपा विधायकों की बैठकें शुरू
आगामी विधानसभा चुनाव में हार के डर से भाजपा विधायकों में आपसी मीटिंग में का दौर शुरू हो गया है। आखिरी वक्त में अब विधायक किसी तरह से बिगड़ी हुई स्थितियों को ठीक करने के लिए समीक्षा करने लगे हैं।
कल विधायक निवास में मीटिंग के बाद जल्दी ही एक और मीटिंग रखी गई है।
मीटिंग में विधायकों ने अपनी-अपनी उपेक्षा को लेकर जमकर भड़ास निकाली और अफसरों द्वारा उनके विकास कार्यों को तवज्जो न दिए जाने पर भी गंभीर चर्चा की।
अपने क्षेत्रों में काम ना होने से विधायकों को डर सता रहा है कि आखिर वह किस मुंह से चुनाव में वोटरों का सामना करेंगे!
अफसरों द्वारा उपेक्षित किए जाने का रोना मंत्री-विधायक पहले भी सार्वजनिक मंत्रों मंचों से रोते रहे हैं। यहां तक कि कई बार विधायकों को अपनी इज्जत कराने तक के लाले पड़ गए तो कई बार अफसरों ने विधायकों की जगह खुद ही उद्घाटन समारोह करके विधायकों की प्रासंगिकता ही सवालों के घेरे में खड़ी कर दी।
यहां तक कि विधायकों को अफसरों के फोन उठाने के भी लाले पड़ गए।
मोदी मैजिक के भरोसे प्रचंड बहुमत लेकर सत्ता में आए भाजपा विधायक पिछले 3 वर्षों में जनता के बीच करिश्माई नेतृत्व की छाप छोड़ने में बुरी तरह फ्लॉप साबित हुए।
पूरे 3 साल तक कभी अफसरों की मनमानी तो कभी विभिन्न गुटों में होने का पुराना ठप्पा लिए विधायकों को भाजपा नेतृत्व से भी कोई खास तवज्जो नहीं मिल पाई। यही कारण था कि अफसरों की मनमानी बढ़ती गई और विधायक तीन सालों में जनता के काम नहीं करा पाए।
चैंपियन प्रकरण से बैकफुट पर भाजपा
अब अचानक से उत्तराखंड को अपने गुप्तांग पर बिठाने वाले चैंपियन को 6 साल से निष्कासित करने के बाद भाजपा ने एक साल में ही वापस पार्टी में ले लिया है। इससे भाजपा आम आदमी पार्टी और कांग्रेस सहित यूकेडी के भी निशाने पर है और इससे भाजपा बुरी तरह बैकफुट पर है।
चैंपियन को पार्टी में लेने के बाद पहाड़ों में भाजपा को नुकसान होना तय है। आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को जल्दी से ठंडा नहीं होने देना चाहती।
बंशीधर के बयान से डरे विधायक
दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने सार्वजनिक रूप से बयान दे दिया कि इस बार मोदी मैजिक के भरोसे भाजपा की नैया पार नहीं होगी, बल्कि विधायकों को मेहनत करनी होगी।
इस बयान का भी भाजपा की छवि पर बेहद विपरीत असर पड़ा है। भाजपा के तमाम विधायकों को क्षेत्र में काम न कराने के चलते हार का खौफ सताने लगा है।
पूरी सत्ता मुट्ठी में रखने का खामियाजा
पूरे 3 साल तक मंत्रिमंडल में विस्तार न होने के कारण कम से कम तीन वरिष्ठ विधायक मंत्रिमंडल में शामिल होने से रह गए। यदि मंत्रिमंडल में 3 विधायक शामिल हो गए होते तो वे अपने आसपास की 1-2 सीटों को भी भाजपा के पक्ष में प्रभावित करने की स्थिति में रहते, लेकिन सारी सत्ता को अपनी मुट्ठी में रखने की भूख भाजपा नेतृत्व को अब आखिरी दौर में भारी पड़ती भी दिख रही है।
लगभग 40 से भी अधिक विभाग अपने पास ही रखने के कारण मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ना तो इन विभागों में काम करा पाए और ना ही इन विभागों के भ्रष्टाचार पर रोक लगा पाए और ना ही जनता को इन विभागों का फायदा दिला पाए।
कोरोना के चलते मुख्यमंत्री खुद कई बार क्वारंटाइन में अपना कार्यकाल बिता चुके हैं। जीरो टॉलरेंस की पोल भी मुख्यमंत्री के ही रिश्तेदारों के स्टिंग ऑपरेशनों और बैक डोर भर्तियों ने खुद ही खोल दी है। पूरे तीन साल तक भाजपा कोई ऐसा काम नहीं करा पाई जो भाजपा की अगली बार सत्ता वापसी के प्रति आश्वस्त करती हो। यही कारण है कि भाजपा के विधायक खुलेआम बिगड़ती स्थितियों की समीक्षा करने के लिए फ्रंट फुट पर आने को मजबूर हो गए हैं देखने वाली बात होगी कि आगामी बैठक में कितने विधायक शामिल होते हैं और इन विधायकों की मीटिंग का क्या परिणाम निकलता है