राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की राज्य को लेकर सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। बलूनी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख भी हैं। चुपचाप काम करना अल्पभाषी अनिल बलूनी की पहचान है। पहाड़ के मुद्दों पर उनकी मुखरता और संवेदनशीलता तो हम सब देखते रहे हैं किंतु कैंसर जैसी बीमारी से लड़कर लौटे बलूनी की भीगी आंखों ने बहुत कुछ कहा, जो लोगों ने पिछले दिनों देखी।
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राज्यसभा के अपने छोटे से कार्यकाल मे नैनी दून जनशताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन चलाकर उन्होंने अपनी क्षमताओं का नमूना पेश कर दिया था। मसूरी की पेयजल योजना पर काम चल रहा है, नैनीताल पेयजल योजना के प्रयास जारी है, आइटीबीपी के सीमांत अस्पतालों में राज्य के नागरिकों का इलाज हो रहा है, राज्य को एनडीआरएफ की एक अलग बटालियन आवंटित हुई है, सांसद निधि से आईसीयू की स्थापना आज कोरोना महामारी से लड़ने में मददगार साबित हुई है। काशीपुर-धामपुर नई रेल लाइन जो कुमाऊं गढ़वाल के बीच यात्रा के दो घण्टे बचायेगी, पर फैसला अंतिम चरण में है।
आज से नौ माह पूर्व बलूनी को कैंसर का पता चला, उनकी कोशिश थी कि वे इस निजी लड़ाई को निजी तौर पर चुपचाप लड़ेंगे। उपचार के दौरान उनके उपलब्ध न होने पर जब टिप्पणियां होने लगी तब बलूनी ने दिसम्बर में अस्पताल से वीडियो जारी कर जानकारी दी। इंसान की भावुकता और उसके आंखों से आंसू उसके मन की पीड़ा को व्यक्त करते हैं।
बलूनी उत्तराखंड के बड़े नामों को अपने अभियान से जोड़कर ‘अपना वोट-अपने गांव’ द्वारा दीर्घकालिक मुहिम चला रहे हैं। उन्होंने अपना वोट भी अपने गांव स्थानांतरित करा दिया है।उन्होंने प्रवासियों से लुप्त होते लोकपर्व ‘इगास’ को अपने गांव में मनाने की अपील की थी और कहा कि वे खुद भी इस अवसर पर अपने गांव में रहेंगे तब इस अपील पर राजनीति भी हुई। एक तरफ जहां बलूनी मृत्युशैया पर पड़े थे, दूसरी तरफ विरोधी इगास के विरोध पर मुखर थे। उन्होंने लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी तक को झांसे में लेकर इगास को महत्वहीन बताने का बयान दिलवा दिया जबकि शेष सभी लोककलाकार इगास को अपने गांव में मनाने की अपील कर रहे थे। बलूनी की अनुपस्थिति में उनके मित्र सम्बित पात्रा ने उनके गांव जाकर इगास मनाई।
हाल ही एक इंटरव्यू में देश के बड़े पत्रकार दीपक चौरसिया ने इगास को लेकर बलूनी से पूछा तो वे भावुक हो गये ( वीडियो देखें ) उन्होंने कहा कि अपनी बीमारी के कारण वे इस बार इगास मनाने नहीं जा पाये, अगली इगास अपने गांव में धूमधाम से मनायेंगे। बात पूरी करते करते बलूनी भावुक हो गये।उनके असहज होने पर दीपक चौरसिया को सवाल बदलना पड़ा। बलूनी की नम आंखे उनकी बीमारी की विवशता थी या इगास पर क्षुद्र राजनीति इसे वे ही जानते होंगे लेकिन उनके संकल्प ने उन्हें और मजबूत किया है।