प्रदेश के 12 जनपदों में पंचायत चुनाव संपन्न होने के बाद 2२ अक्टूबर तक सभी चुनाव परिणाम घोषित किए जा चुके हैं। तब से लेकर अब तक एक माह की अवधि पूर्ण हो गई है। इस बीच 7 नवंबर तक सभी 89 विकासखंडों में ब्लॉक प्रमुख तथा 12 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव संपन्न होने के बाद परिणाम भी घोषित हो गए हैं, लेकिन इस एक माह की अवधि में नवनिर्वाचित प्रतिनिधियों को राज्य सरकार द्वारा विधिवत रूप से काम करने के लिए जिम्मेदारियां नहीं सौंपी जा सकी हैं। पंचायतें आज भी प्रशासकों के हवाले हैं, जो कि 73वें संविधान संशोधन की भावना के विपरीत है।
पंचायत जनाधिकार मंच उत्तराखंड केसंस्थापक संयोजक जोत सिंह बिष्ट कहते हैं कि मुझे ज्ञात है कि ग्राम प्रधान के 86 तथा ग्राम पंचायत सदस्यों के 30,500 से अधिक पद अभी भी रिक्त हैं, जिन पर निर्वाचन की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद ही राज्य की सभी ग्राम पंचायतें विधिवत रूप से गठित हो सकेंगी। यदि राज्य सरकार एवं राज्य निर्वाचन आयोग के बीच में सामंजस्य बिठाकर बातचीत की जाती तो 22 अक्टूबर को पंचायत चुनाव के परिणाम घोषित होने की प्रक्रिया पूर्ण होने के एक सप्ताह के अंदर जिस तरह से ब्लॉक प्रमुख एवं जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव संपन्न कराने के लिए अधिसूचना जारी की गई थी, इसी तरह ग्राम पंचायत के रिक्त पदों के चुनाव संपन्न कराने के लिए उपचुनाव की अधिसूचना भी जारी की जानी चाहिए थी।
इन महत्वपूर्ण पदों, जिन पर चुनाव के बिना राज्य की लगभग 80 प्रतिशत से अधिक ग्राम पंचायतें गठित नहीं हो पा रही हैं, पर चुनाव लटकाने की राज्य सरकार की राजनैतिक पैंतरेबाजी तो समझी जा सकती है, लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग की उदासीनता किसी की भी समझ से परे है।
इन उपचुनाव को संपन्न न कराए जाने के कारण पंचायतें अभी भी प्रशासकों के रहमो-करम पर यानि अपरोक्ष तौर पर सरकार के हवाले हैं। बिना रिक्त पदों पर चुनाव कराए नवनिर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों को चार्ज दिलाना कानूनन संभव नहीं है। बिष्ट कहते हैं कि उनकी दृष्टि में यह बहाना राज्य सरकार की गैर जिम्मेदारी का प्रतीक है।
जोत सिंह बिष्ट कहते हैं कि मैं पूरे पंचायत चुनाव में आयोग की भूमिका पर भी पूरी नजर रखता रहा हूं और मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि आयोग ने अपनी जिम्मेदारी का सही तरीके से निभाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन 22 अक्टूबर के बाद आपके स्तर से सरकार को यह जताने का प्रयास मेरी जानकारी में नहीं आ रहा है कि पंचायत के रिक्त पदों, जिनमें 30,500 से अधिक ग्राम पंचायत सदस्य, 86 ग्राम प्रधान एवं चार क्षेत्र पंचायत सदस्य के पद हैं, के लिए शीघ्र चुनाव संपन्न कराया जाए। ऐसे में यह संदेश जा रहा है कि सरकार एवं आयोग ने कोर्ट के डर से 30 नवंबर से पहले पंचायत चुनाव संपन्न कराने का काम आधे-अधूरे तरीके से करके कोर्ट को यह दिखाने का प्रयास किया कि सरकार ने कोर्ट के निर्देश का पालन कर लिया है, लेकिन पंचायतों को प्रशासकों से निर्वाचित प्रतिनिधियों के हवाले करने का काम ईमानदारी से न किया जाना पंचायतों के हित में नहीं है।
बिट मांग करते हुए कहते हैं कि आयोग एक स्वतंत्र संस्थान के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करे। आयोग को चाहिए कि सरकार को पंचायत के रिक्त पदों को भरने के लिए अधिसूचना जारी करने हेतु यथाशीघ्र दबाव बनाकर राजी करे, ताकि प्रशासकों से पंचायतों का चार्ज निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में देकर संविधान की भावना के अनुरूप विधिवत रूप से पंचायत प्रतिनिधि अपना काम शुरू कर सकें।