उत्तराखंड राज्य में आबकारी विभाग द्वारा नवीनीकृत ना होने वाली शराब की दुकानों के लिए लॉटरी के द्वारा आवंटन की व्यवस्था की थी।
इस हेतु पूरे राज्य में दुकानों की कीमतें फिक्स कर लॉटरी आमंत्रित की थी तथा यह कहा था कि विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा की गई लॉटरी से लगभग 150 करोड़ रुपए की प्राप्ति होगी।
आज संपूर्ण प्रदेश में मात्र 3000 से कम लॉटरी हेतु आवेदन पत्र प्राप्त हुए। जिससे मात्र 10 करोड़ की इनकम हुई है। अतः विभाग का वादा प्रथम चरण में ही झूठा साबित हो गया है, तथा सरकार को करोड़ों की चपत लगने की पूरी संभावना है।
अभी भी विभाग के लोग दिनांक 13 मार्च को लॉटरी प्राप्त करने की समय सीमा समाप्त होने के बाद भी नियम विरुद्ध 14 मार्च तक लॉटरी प्राप्त करते रहे तथा यह पूछे जाने पर कि कितने आवेदन पत्र कितनी दुकानों में आए हैं किसी को भी नहीं बता पाए।
स्पष्ट है कि अभी भी पर्दे के पीछे विभाग का गोलमाल जारी है। फोन पर उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से मालूम चलता है कि 175 मदिरा की दुकानों हेतु कोई भी आवेदन पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। अर्थात हजारों करोड़ रुपए की दुकानें बिकने से रह गई हैं। अब इन दुकानों को तोड़कर दो किया जाएगा। अर्थात 300 सौ दुकानें हो जाएगी।
सरकार का यह कहना कि हम दुकानों की संख्या कम कर रहे हैं, अपने आप में झूठा सिद्ध हो जाएगा। क्योंकि पिछले साल 488 दुकानें थी। इस साल 614 प्लस 175 कुल 789 दुकानें हो जाएंगी। उसके बाद भी यह गारंटी नहीं है कि सरकार को पूरा पैसा मिल पाएगा। वह भी तब जब सरकार ने अपने चहेते ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए नियम विरुद्ध लॉटरी हेतु फोटो कॉपी लगाने की सुविधा दी। यह सुविधा पिछले साल की नकल थी, जबकि एक ठेकेदार एक दुकान ले सकता था। इस साल एक ठेकेदार एक दुकान का ड्राफ्ट लगाकर 2 दुकानें ले सकता है। अर्थात वह धरोहर धनराशि दो दुकानों की बिना जमा करे उन दुकानों के लिए लॉटरी डाल सकता है।
यह जांच का विषय है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि एक जनपद में एक ठेकेदार दो दुकान ले सकता है, तथा प्रत्येक दुकान की धरोहर धनराशि ढाई प्रतिशत है अर्थात उसे 10करोड़ की दुकान जो कि जनपद की सबसे बड़ी दुकान है के लिए 25लाख रुपए धरोहर धनराशि के रूप में जमा करना पड़ेगा। इसकी धरोहर राशि की फोटो कॉपी करा कर अन्य दुकानों हेतु भी आवेदन कर सकेगा।
लेकिन बात यहां पर उठती है कि इस साल एक आदमी दो दुकान ले सकता है। अब यदि उसके नाम पर दो दुकान खुल जाती हैं तो उसके पास धरोहर धनराशि तो एक ही दुकान की है, दूसरी दुकान के लिए है ही नहीं। उदाहरण के लिए वह पहली दुकान के अलावा 5 करोड़ की दुकान लेता है तो उसे अलग अलग धरोहर धनराशि जमा करनी चाहिए थी, जो उसके द्वारा नहीं की गई।
यदि वह दोनों दुकानों को खोलने की स्थिति में लेने से मना कर देता है तो सरकार को कुल 3750000 रुपए धरोहर धनराशि के जमा करने चाहिए थे। उसके पास मात्र ₹2500000 ही है तो इस प्रकार सरकार को पहले दिन ही साढे बार लाख का चूना लग जाएगा।
यह तो मात्र एक उदाहरण है। धनराशि का अमाउंट बहुत बड़ा हो सकता है। आखिर यह सब किस को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया ! यह भी एक जांच का विषय है।
यह शायद पहला मामला होगा, जहां बिना धरोहर धनराशि के लॉटरी करा दी गई।
इस वर्ष आबकारी नीति में लॉटरी कराए जाने की व्यवस्था डालना भी अपने आप में संदिग्ध है कि यह किसको फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है ! जांच का विषय बनता है।
गत वर्ष तक टेंडर की व्यवस्था थी, जिसके तहत ठेकेदार एक निश्चित धनराशि से ऊपर दुकान के पोटेंशियल के आधार पर दुकान की कीमत निर्धारित करता था, तथा सरकार को उस दुकान पर अधिकतम राजस्व प्राप्त होता था। इस बार यह नहीं किया गया। जिससे सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ है।
कहा जा रहा था कि इस नुकसान की भरपाई लॉटरी से प्राप्त आवेदन पत्रों की धनराशि से हो जाएगी, जोकि कम लॉटरी प्राप्त होने से फेल हो गया।
गत वर्ष ठेकेदारों द्वारा निर्धारित धनराशि से अधिक धनराशि कोट किए जाने से सैकड़ों करोड़ अधिक प्राप्त हुए। जाहिर है कि यह सलाहकार की विवादित आबकारी नीति का परिणाम है।