नीरज उत्तराखंडी
मोरी नैटवाड़ जल विद्युत परियोजना निर्माण कंपनी सतलुज व उसकी सहयोगी जेपी कंपनी की लापरवाही और नियम विरुद्ध गैर जिम्मेदाराना रवैया से पर्यावरण की धज्जियां उड़ाई जा रही है। इससे एक ओर जहां एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, वहीं नदी की खूबसूरती को भी बिगाड़ा जा रहा है।
मोरी नैटवाड़ जल विद्युत परियोजना निर्माण कंपनी द्वारा सुरंग निर्माण का कार्य किया जा रहा है। इस निर्माण कार्य के दौरान निकलने वाला मलबा नदी में डंप किया जा रहा है। हकीकत यह है कि नदी से महज 20 से 30 मीटर दूरी पर डंपिंग जोन बनाया गया है।
सवाल यह है कि जिस नदी के संरक्षण के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स के माध्यम से काम चल रहा है, वहीं डंपिंग यार्ड की दीवारें धंसने और क्षतिग्रत होने से नदी में निर्माण का मलबा गिराया जा रहा है।
सवाल यह भी है कि निर्माण निरीक्षण के लिए जिम्मेदार लोग मौके पर जाने की जहमत ही नहीं उठाते हैं। ऐसे में इसे भी एक राज के रूप में देखा जा रहा है।
भारत सरकार के उपक्रम (मिनी रत्न) सतलुज जल विद्युत निगम तथा उसकी निर्माण सहयोगी जेपी कंपनी के गले में वन, श्रम, पर्यावरण नियमों और कायदे कानूनों की घंटी अखिर बांधेगा कौन! साथ ही उन्हें यह कौन समझाए कि एनजीटी और कोर्ट के आदेशों के तहत इस क्षेत्र में ऐसी गतिविधियां वर्जित हैं।
कुल मिलाकर मोरी नैटवाड़ जल विद्युत परियोजना निर्माण कंपनी की लापरवाही और गैर जिम्मेदार हरकत की वजह से पर्यावरण की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इससे एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का धड़ल्ले से उल्लंघन किया जा रहा है। यदि ऐसा नहीं होता तो नदी से महज 20 से 30 मीटर दूरी पर डंपिंग जोन नहीं बनाया जाता।