थराली, मई 2025/गिरीश चंदोला
थराली क्षेत्र में इन दिनों रिवर ड्रेजिंग की आड़ में पिंडर नदी को बेरहमी से खनन माफियाओं द्वारा छलनी किया जा रहा है। पतित पावनी माँ गंगा की सहायक नदी पिंडर में एनजीटी (NGT) के नियमों को सरेआम ताक पर रखकर अवैध खनन कार्य किया जा रहा है, और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है।
सिमलसैंण गाँव के समीप पिंडर नदी में बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा खनन किया जा रहा है, जिससे न केवल नदी के प्रवाह को प्रभावित किया जा रहा है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। गंगा को बचाने की सरकारी मुहिम भी इस अवैध गतिविधि के चलते नाकाम साबित होती नजर आ रही है।
खनन के पीछे कौन जिम्मेदार?
प्रश्न उठता है कि इतनी भारी मशीनों को खनन कार्य के लिए अनुमति किसने दी? यदि अनुमति मिली है, तो क्या वह एनजीटी के तय मानकों के अनुरूप है? और यदि अनुमति नहीं दी गई है, तो खनन माफियाओं को किसका संरक्षण प्राप्त है, जो उन्हें किसी कार्यवाही का डर नहीं है?
स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता भी जनता के बीच आक्रोश का कारण बन रही है। लोग पूछ रहे हैं कि जब नियमों का उल्लंघन खुलेआम हो रहा है, तो प्रशासन कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रहा?
उपजिलाधिकारी ने क्या कहा?
इस पूरे मामले में थराली के उपजिलाधिकारी पंकज भट्ट ने जानकारी देते हुए कहा कि,
“रिवर ड्रेजिंग के दौरान केवल छोटी मशीनों के इस्तेमाल की अनुमति है, जिसकी स्वीकृति शासन से प्राप्त की गई है। भारी मशीनों से खनन की कोई अनुमति नहीं दी गई है।”
लेकिन सवाल यह है कि यदि अनुमति नहीं है, तो ऐसी भारी मशीनें कैसे काम कर रही हैं? क्या यह सीधे तौर पर प्रशासनिक लापरवाही नहीं है?
भविष्य में संकट की आशंका
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस तरह का अवैध खनन जारी रहा, तो भविष्य में थराली सहित पिंडर घाटी भारी भू-स्खलन, जल संकट और पारिस्थितिक असंतुलन जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ सकती है।
जनता की मांग
स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो वे जनांदोलन करने को विवश होंगे।
अब देखना यह है कि क्या प्रशासन आंखें खोलकर अवैध खनन पर लगाम लगाएगा या खनन माफियाओं के सामने कानून की धाराएं कमजोर पड़ती रहेंगी?