इन्द्रेश मैखुरी
पिथौरागढ़ के लक्ष्मण सिंह महर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में छात्र-छात्राएँ बीते 17 जून से किताबों और शिक्षकों की मांग के लिए आंदोलन कर रहे हैं. यूं तो किसी भी शिक्षण संस्थान में यदि छात्र-छात्राएँ प्रवेश ले रहे हैं तो शिक्षक और पुस्तकें उन्हें स्वाभाविक तौर पर हासिल होनी चाहिए. लेकिन 20-25 दिन के आंदोलन के बाद पिथौरागढ़ के आंदोलनकारी छत्र-छात्राओं को जो हासिल हुआ,वो उत्तराखंड के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डा.धन सिंह रावत के कुछ बयान हैं.
मंत्री जी फरमाते हैं कि वे जांच करवाएँगे कि आंदोलन कर कौन रहा है ? ये छात्र-छात्राएं शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे हैं,कोई उग्रता नहीं,कोई हिंसा नहीं. तब काहे बात की जांच,मंत्री जी ? क्या इस बात की कि इन्होंने किताबों की बात क्यूँ उठाई, शिक्षकों का मसला क्यूँ उठाया ? क्या इन्हें यह करना चाहिए था कि चुपचाप बिना किताबों,बिना शिक्षकों के कॉलेज जाते और घर चले आते ?
फिर मंत्री जी का दूसरा बयान आया कि पिथौरागढ़ कॉलेज में 101 प्राध्यापक और 15 लाख किताबें हैं.
यदि पिथौरागढ़ के उक्त महाविद्यालय की वेबसाइट के इस लिंक पर जा कर देखें -http://lsmgpgcollege.org/index.php?mod=content&page=226 – तो शिक्षकों की संख्या की हकीकत भी सामने आ जाएगी. 1963 में स्थापित पिथौरागढ़ के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में 24 विषय हैं. उक्त 24 विषयों को पढ़ाने के लिए 89 प्राध्यापक हैं. 89 प्राध्यापकों में से 29 गेस्ट फ़ैकल्टी हैं यानि स्थायी अध्यापकों की संख्या मात्र 60 ही है. मंत्री जी ने बाकी 40 कहाँ से गिन लिए,ये वो ही बेहतर जान सकते हैं !
वैसे प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में प्राध्यापकों की स्थिति उत्तराखंड सरकार के उच्च शिक्षा निदेशालय की वैबसाइट पर जा कर देखी जा सकती है. उक्त वैबसाइट के लिंक https://www.directorateheuk.com/addons/docs/upload/all_posts_at_a_glance_03.2017.pdf पर अंकित जानकारी के अनुसार राजकीय महाविद्यालयों में प्रवक्ताओं के 2071 पदों में से 981 पद रिक्त हैं. पिथौरागढ़ में छात्र-छात्राएँ पुस्तकों की मांग कर रहे हैं. राज्य के उच्च शिक्षा निदेशालय की साइट पर अंकित है कि प्रदेश के राजकीय महाविदयालयों में पुस्तकालयाध्यक्ष के स्वीकृत 25 में से 25 पद रिक्त हैं.
देश भर में डिजिटल इंडिया के हव्वे के बीच उच्च शिक्षा निदेशालय की यह साइट अपने आप में बड़ा अजूबा है. उक्त साइट पर दी गयी सूची पर यह अंकित है कि पदों और उनके सापेक्ष नियुक्ति का यह विवरण 10 फरवरी 2017 को अपडेट किया गया है. मंत्री जी, आपका निदेशालय दो साल से साइट तक अपडेट तक नहीं कर रहा है और आप फर्जी आंकड़े जारी कर वाजिब मांगों के लिए आंदोलन करने वाले छात्र-छात्राओं को धमका रहे हैं !
पिथौरागढ़ के उक्त छात्र आंदोलन में छात्र-छात्राएं कुलपति को बुलाये जाने की मांग कर रहे थे. लेकिन उच्च शिक्षा राज्य मंत्री खुद ही उनके मुक़ाबले में आ गए. कुलपति के जिक्र से यह भी याद आया कि जिस कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पिथौरागढ़ का कॉलेज सम्बद्ध है,उस समेत प्रदेश के अधिकांश विश्वविद्यालय स्थायी कुलपतियों के बिना ही चल रहे हैं. पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से लेकर भरसार के उद्यानिकी विश्वविद्यालय तक सब कुलपति विहीन हैं. हे.न.ब गढ़वाल विश्वविद्यालय जो प्रदेश का एकमात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय है,वह दो साल से बिना स्थायी कुलपति के है.
प्रदेश का तेजतर्रार बताए जाने वाले मंत्री महोदय, यदि छात्र-छात्राओं की बेहद सामान्य मांगों को देख कर बौखला रहे हैं और धमकाने वाले अंदाज में बयान दे रहे हैं तो स्पष्ट है कि छात्र-छात्राओं के उक्त आंदोलन ने प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग और उसके बड़बोले मंत्री की नाकामी और नकारेपन की पोल खोल दी है. महाविद्यालय ड्रेस कोड,तिरंगा झण्डा और शौर्य दीवार से ही नहीं चलते मंत्री जी,सबसे पहले वहाँ छात्र-छात्राओं को पढ़ाने वाले प्राध्यापक,पुस्तकें,पुस्तकालय, प्रयोगशाला चाहिए होती हैं. आधारभूत ढांचा बड़बोले बयानों और हवाई घोषणाओं से नहीं बनता. उसके लिए दृष्टि,दूरदर्शिता और इच्छाशक्ति चाहिए होती है.
निश्चित ही छात्र-छात्राओं का पुस्तकों और शिक्षकों के लिए आंदोलन बेहद वाजिब है और इसका समर्थन किया जाना चाहिए. उत्तराखंड में छात्र राजनीति में छात्र-छात्राओं के ऐसे वाजिब सवालों के लिए संघर्ष करने वाली धारा की निरंतर उपस्थिति रही है. साल भर पहले हे.न.ब गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर(गढ़वाल) में छात्र संगठन आइसा ने पुस्तकालय छात्र-छात्राओं के लिए सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक खुले इसके लिए लंबा आंदोलन चलाया. जब ज्ञापन,बातचीत से मांग हल नहीं हुई तो वहाँ आंदोलनरत छात्र-छात्राओं ने पुस्तकालय भरो का नारा दिया. उन्होंने पुस्तकालय को छात्र- छात्राओं से भर दिया,जिन्होंने शाम 5 बजे बाद भी पुस्तकालय से बाहर जाने से इंकार कर दिया. फलतः विश्वविद्यालय को छात्र-छात्राओं की मांगों के आगे झुकते हुए पुस्तकालय को रात 8 बजे तक खुले रहने का आदेश जारी करना पड़ा.
बीते कुछ महीनों से भी गढ़वाल विश्वविद्यालय के सभी छात्र संगठन,छात्र संघ की अगुवाई में विश्वविद्यालय की सेवा से हटाये गए आउटसोर्स सुरक्षा कर्मियों और सफाई कर्मियों की बहाली,परीक्षाएं समय पर आयोजित किए जाने और परीक्षा परिणाम समय पर घोषित किए जाने,नियमित पठन-पाठन आदि तमाम मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं. इस आंदोलन से निपटने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र नेताओं पर मुकदमा दर्ज करवा दिया. फिर छात्र नेताओं के खिलाफ विश्वविद्यालय प्रशासन हाई कोर्ट चला गया. उच्च न्यायालय,नैनीताल ने छात्रों के वैध तरीके से आंदोलन करने के अधिकार को मान्यता दी और निर्देश दिया कि छात्र संघ शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर सकता है. विश्वविद्यालय ने उक्त आदेश की व्याख्या यह कि केवल छात्र संघ के 4 पदाधिकारी ही आंदोलन कर सकते हैं. छात्र- छात्राओं ने फिर धरना दिया तो विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय में अदालत की अवमानना का मुकदमा दाखिल कर दिया.
कुल मिला कर देखें तो छात्रों की बेहद वाजिब मांगों के लिए छात्र-छात्राओं को मंत्री की धमकियों से लेकर अदालत की अवमानना के मुकदमें तक का सामना करना पड़ रहा है. आम तौर पर भाषणों पर युवाओं को देश का भविष्य बताया जाता है. पर वही भावी पीढ़ी जब अपने बेहतर भविष्य के लिए संसाधनों की मांग करती है तो वर्तमान कर्णधारों के लिए उनके पास देने को धमकी और फर्जी मुकदमों के अलावा कुछ नहीं है !
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