अनुज नेगी
देहरादून।राजाजी टाइगर रिजर्व की गोहरी रेंज में समय समय पर वनकर्मियो द्वारा किये गए कुछ न कुछ कारनामे सामने आते ही रहते है। हाल ही में एक आरटीआई में एक नया खुलासा हुआ है। राजाजी टाइगर रिजर्व की गोहरी रेंज से सम्बंधित एक ईको विकास समिति की फ़ाइल के बारे में जब जानकारी मांगी गयी तो इस रेंज में वर्षो से तैनात बाबू (दीवान) ने फ़ाइल विभाग कार्यालय में संगृहीत न होने की जानकारी दी।
आरटीआई के तहत गोहरी रेंज में कुछ वर्ष पूर्व तोली पुण्डरासु एको विकास समिति को भंग किया गया था,इस समिति द्वारा पार्क से सटे नीलकंठ छेत्र में कई कार्य करवाए गए थे।इन कार्यों व इस समिति के भंग होने की जानकारी मांगे जाने पर रेंज द्वारा केवल एक लाइन में जवाब दे दिए गया।लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर वो फ़ाइल कहां गायब हो गयी !
क्या किसी ने रेंज से उसे चुराया या फिर जानबूझकर उसे नष्ट किया गया ! वहीं इस फ़ाइल के खो जाने के बाद इस क्षेत्र की तोली पुंडरासु ईको विकास समिति का गठन नही किया जा रहा है,जिसके चलते इस छेत्र में लोग लाभान्वित इस योजना के तहत लाभान्वित नही हो पा रहे है।
वहीं इस सम्बन्ध में विभाग ने क्या कार्यवाही की! क्या विभागीय दस्तावेज के चोरी होने/या फिर संगृहीत न होने पर कोई कार्यवाही बनती है या नहीं इसका जवाब किसी के पास नही है।
वर्षो से एक ही रेंज में तैनात है रेंज क्लर्क दीनदयाल कुकरेती
आरटीआई का जवाब देने में माहिर यह रेंज क्लर्क पिछले कई वर्षो से गोहरी रेंज में तैनात है !इस रेंज में जो भी रेंज अधिकारी आता है वो इन्ही को अपनी पसंद बताता है।वर्ष दो हजार पांच से इस रेंज की सेवा में जुटे है।आखिर ऐसी कौन सी पंहुच है जो ट्रांसफर होने के बाद भी कुछ समय के भीतर इन्हे गोहरी खींच लाती है, मगर विभाग के आला अफसरों को इसकी चिंता कहां ! इनकी सेवा का विवरण पढ़ आप इनकी पंहुच का अंदाजा लगा सकते है।
(१) दीनदयाल कुकरेती.. जुलाई 2005 से जुलाई 2009
(२) दीनदयाल कुकरेती ….. जुलाई 2010 से जनवरी 2015
(३) दीनदयाल कुकरेती ….. अक्टूबर 2016 से वर्तमान तक
इनके अलावा कई ऐसे वन कर्मी है जो वर्षो से एक ही रेंज में तैनात है जो साम-दाम- दंड- भेद के बलबूते एक स्थान पर जमे हुए है , मगर आखिर में फिर वही सवाल की इन्हे हटाने का दम किसी में नहीं।
84 कुटी प्रकरण में नहीं हुई जांच शुरू अब तक
वंही 84 में वन आरक्षी पत्र प्रकरण की विधिवत जांच शुरू नहीं हो सकी है। सूत्रों की माने तो विभाग ने इस मामले में वन आरक्षी को मोतीचूर अटैच्ड कर मामले को ठन्डे बस्ते में डाल दिया है। सूत्रों की माने तो पूर्व पार्क निदेशक आखिरी तक इस प्रकरण में कार्यवाही से बचते रहे थे,अब गेंद पार्क के नए निदेशक के पाले में है।नए निदेशक द्वारा वर्ष 2015 से अब तक विस्तृत जांच करवाई जाए तो सरकारी राजस्व घोटाले के कई मामलों का खुलासा हो सकता है, मगर अंत में एक बार फिर सवाल वही खड़ा होता कि आखिर कार्यवाही करे तो करे कौन !