कृष्णा बिष्ट
उत्तराखंड सरकार अपने पूर्व पेंशनर विधायकों को पेंशन की ही मद में अब तक ₹20 करोड़ से भी अधिक दे चुकी है।
आरटीआई में यह खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड सरकार अपने पूर्व पेंशनर विधायकों को वित्तीय वर्ष 2000-01 से लेकर 2017-18 तक 20 करोड़, 59 लाख,89 हजार,120 रुपए दे चुकी है।
वर्ष 2000-01 में जहां पूर्व पेंशनर विधायकों को ₹5लाख45हजार847 दिए जा रहे थे, वहीं इतने सालों में यह पेंशन की रकम 2017-18 में बढ़कर 3 करोड़ 87 लाख,94हजार,356 रुपए हो गई है।
अब तक साढे़ ₹20करोड़ से भी अधिक केवल पूर्व विधायकों की ही पेंशन में खजाने से जा चुका है।
सूचना के अधिकार में आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गोनिया ने यह खुलासा किया है।
गौरतलब है कि एक याचिकाकर्ता ने इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका डाली थी कि अगर 1 दिन के लिए भी कोई सांसद बन जाता है तो न केवल आजीवन पेंशन का हकदार हो जाता है बल्कि उसकी पत्नी को भी पेंशन मिलती है साथ ही वह जीवन भर एक साथी के साथ ट्रेन में फ्री यात्रा करने का भी हकदार हो जाता है, जबकि राज्य के राज्यपाल को भी आजीवन पेंशन नहीं दी जाती, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वर्तमान जजों को भी साथी या सहायक के साथ यात्रा का लाभ नहीं दिया जाता।
ऐसे में यह व्यवस्था आम लोगों के लिए बोझ है। यह व्यवस्था राजनीति को और भी लुभावना बना देती है। असल में देखा जाए तो यह खर्च ऐसे लोगों पर किया जाता है जो जनता का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे होते। इसलिए इस व्यवस्था को समाप्त किया जाना चाहिए।
देश में यदि कोई एक दिन के लिए भी सांसद बन जाता है तो फिर उसे भारत सरकार की ओर से पेंशन दिए जाने की व्यवस्था है, इसके खिलाफ की गई याचिका को मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
अहम सवाल यह भी है कि एक तरफ राज्य में हजारों कर्मचारियों को 10 से 12000 की तनख्वाह पर गुजारा करना पड़ता है वहीं पूर्व विधायकों पर सरकार इस तरह से खजाना लुटा रही है। जबकि अधिकांश पूर्व विधायक करोड़पति हैं।
एक तरफ सरकार पैसे की कमी का बहाना बना कर आए दिन नौकरियों मे आउटसोर्सिंग कर रही है और सरकारी विभागों का निजीकरण बढ़ा रही है, वहीं विधायकों पर खजाना लौटाया जा रहा है।
अहम सवाल यह भी है कि एक ओर आम नागरिकों से सिलेंडर की सब्सिडी न लेने की अपील की जा रही है वहीं पूर्व विधायकों पर खजाना लुटाया जा रहा है।
सरकारी कर्मचारी भले ही 58-60 साल तक सेवा करने के बाद पेंशन के हकदार बनते हैं, लेकिन विधायक शपथ लेने के बाद पेंशन लेने के पात्र हो जाते हैं।