सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम निर्णय देते हुए फैसला सुनाया कि दिव्यांग भी अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों की तरह ही लाभ के हकदार हैं, क्योंकि वह भी ज्यादा नहीं तो उतने ही सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं।
हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट के आदेशों को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने कहा कि जो दिव्यांग 50% तक अक्षम है वह भी उतना ही पिछड़ा है, जितना एससी/एसटी समाज का व्यक्ति।
गौरतलब है कि एक याचिकाकर्ता ने फाइन आर्ट में एडमिशन लेने के लिए एप्टिट्यूड टेस्ट में छूट दिए जाने के लिए आवेदन किया था।
इसमें कॉलेज के प्रावधानों को चुनौती दी गई थी, किंतु हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कॉलेज के प्रोस्पेक्टस के अनुसार योग्यता परीक्षा के लिए एससी/एसटी को 35% अंक होने चाहिए इसलिए दिव्यांगों के लिए भी यही पैमाना लागू होगा। पहले दिव्याज्ञों को भी सामान्य की तरह 40% अंक जरूरी थे।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों के लिए उनकी तरह का एक अलग कोर्स बनाए जाने की भी जरूरत बताई।
गौरतलब है कि दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी में भी अनमोल भंडारी नाम के युवक ने के एक याचिका वहां के प्रावधानों को चुनौती देते हुए लगाई थी और कहा था कि वहां पर sc-st उम्मीदवारों के लिए 10% छूट दी जाती है, लेकिन दिव्यांगों को केवल 5% की छूट दी जाती है। इसलिए दिव्यांगों को भी 10% के अंकों की छूट दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने इसको भेदभाव पूर्ण माना था तथा दिव्यांगों को भी 10% छूट दिए जाने का फैसला दिया था।
कोर्ट ने विभिन्न रिपोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्णय का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया कि ऐसा कोई कारण नहीं है जिससे दिव्यांगों को एससी/एसटी के मुताबिक रियायत न दी जाए।
कोर्ट का यह भी कहना था कि दिव्यांगों का आरक्षण क्षैतिज आरक्षण होता है जो सभी श्रेणियों में कटौती करता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे सभी तरह के व्यक्तियों में समानता आएगी।