ग्रामीणों ने दिखाया विभाग को आईना। 15 वर्षों से ध्वस्त पड़े गूल की स्वयं की मरम्मत

ग्रामीणों ने दिखाया विभाग को आईना। 15 वर्षों से ध्वस्त पड़े गूल की स्वयं की मरम्मत

 

– 15 वर्षों से सिंचाई गुल की नहीं हुई मरम्मत

रिपोर्ट- सूरज लडवाल
चम्पावत। जिले के पाटी ब्लॉक अन्तर्गत ग्राम पंचायत करौली के सुविधा विहीन तोक स्यूतुड़ा में वर्ष 2005 में लघु सिंचाई विभाग से बनी सिंचाई गूल की विभाग ने 15 वर्ष बीत जाने पर भी सुध नहीं ली। अब इसे विभागीय लापरवाही कहें या ग्रामीणों का दुर्भाग्य। ग्रामीणों के मुताबिक लगातार विभागीय पत्राचार के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात रहा। बताते चलें कि, बीते इन 15 सालों में विभाग द्वारा कोई भी कदम न उठाए जाने पर ग्रामीण समय-समय पर सिंचाई गूल की मरम्मत करते रहते हैं। इस बार भी ग्रामीणों ने विभाग को आइना दिखाते हुए लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबी सिंचाई गूल की मरम्मत की है।

इस मरम्मत कार्य में मोहन बिनवाल, हरीश बिनवाल, मुकेश बिनवाल, महेश, रमेश, पार्वती, पनुली देवी, हरी देवी, जानकी देवी सहित दर्जन भर लोगों ने लगातार पन्द्रह दिन कार्य किया और अपने खेतों की सिंचाई के लिए काम चलाऊ व्यवस्था बनाई है। ग्रामीणों का कहना है कि, अभी उन्होंने कामचलाऊ व्यवस्था बनाई है। लेकिन सिंचाई गुल का बाँध पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ है। जिसे रिपेयर करने के लिए उनके पास बजट की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। ग्रामीणों ने एक बार फिर विभाग से व्यवस्था सुधारने के लिए गुहार लगाई है। विभाग की लापरवाही से परेशान व पस्त हो चुके ग्रामीणों का कहना है कि, अगर शीघ्र सिंचाई गुल व सिंचाई बाँध की मरम्मत नहीं जाएगी तो अब ग्रामीण विभागीय अधिकारियों का घेराव करेंगे।

सिंचाई गुल की हालत खस्ता होने के कारण पानी की कमी से लगातार खेती को भारी नुकसान हो रहा है और उपजाऊ भूमि लगातार बंजर होने की कगार पर पहुँच रही है और सदियों से लगातार सेवा दे रहा घराट (पानी से चलने वाली चक्की) भी बंद पड़ चुका है। सड़क से अछूते इस सुविधा विहीन तोक के ग्रामीणों का कहना है एक ओर जहाँ सरकार पलायन रोकने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर यहाँ बीते 15 वर्षों से किसी भी प्रकार की सरकारी योजना नहीं बनी है। सरकारों की बेरुखी और जनप्रतिनिधियों का सिर्फ चुनाव में वोट माँगने आना देखकर अब ग्रामीण खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि, अगर शीघ्र सिंचाई गुल व सिंचाई बाँध को दुरुस्त नहीं किया जाता है तो उन्हें मजबूरन पलायन करना पड़ेगा। अगर ग्रामीण पलायन करते हैं तो राज्य सरकार की ” पलायन रोको ” नीति पर बट्टा जरूर लगेगा और राज्य में पलायन के आँकड़ों में वृद्धि होगी।इतना ही नहीं इस पलायन का जिम्मेदार सीधे तौर पर संबंधित विभाग, जनप्रतिनिधि और सरकार को माना जाएगा।

Read Next Article Scroll Down

Related Posts