आज मुख्यमंत्री सज धज कर विधानसभा पहुंचे लेकिन उनके स्वागत को विधानसभा में एक भी मंत्री नहीं पहुंचा।
यह एक तरह से मंत्रियों का खुला ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ था। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत आजकल नेतृत्व परिवर्तन को लेकर खासे परेशान हैं और दिल्ली में भी अपना असफल शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। पुलवामा शहीदों की श्रद्धांजलि के बहाने दिल्ली में 57 विधायकों को बुलाए जाने के बावजूद मात्र सात आठ विधायक ही उनके निमंत्रण पर वहां शामिल हुए थे।
अब विधानसभा में पहले ही दिन एक भी मंत्री द्वारा उपस्थिति दर्ज नहीं कराने के कारण विधानसभा में जनसुनवाई फ्लॉप शो साबित हुई। लगभग 3 दर्जन लोग अपनी समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री से मिले, जिनमें सरकारी अधिकारी आदि ही ज्यादा थे।
गौरतलब है कि इससे पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा दफ्तर में मंत्रियों की ड्यूटी लगाई थी कि वे कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे, लेकिन एक आध महीने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह आदेश भी हवा में उड़ा दिया गया था।
इसके अलावा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के जनता दरबार भी बढती वीरानगी के चलते लगभग समाप्त हो चले हैं। फरियादियों की फरियादें फिजूल जाने से धीरे-धीरे भाजपा दफ्तर में बुलाए जाने वाले जनता दरबार और मुख्यमंत्री के व्यक्तिगत जनता दरबार में फरियादियों की संख्या घटती चली गई और ये समाप्त हो गये।
अकर्मण्यता के चलते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी पर आए संकट को डैमेज कंट्रोल करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रत्येक सप्ताह के बुधवार और बृहस्पतिवार को यह ऐलान किया था कि स्वयं मुख्यमंत्री और मंत्री विधानसभा में बैठकर जनता की समस्याओं को सुनेंगे लेकिन पहले दिन ही सभी मंत्रियों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के फरमान को आइना दिखा दिया।
इससे पता चलता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के हुकुम का इकबाल कितना बुलंद रह गया है।