आबकारी महकमे में अपने ही लुटेरे
मठाधीश संयुक्त आबकारी आयुक्त और गैंग सक्रिय
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के विभाग में किसकी चल रही !
क्या आबकारी आयुक्त सुशील कुमार को जानकारी नही है !
मुख्यालय के अफसरों का गैंग सिस्टम पर भारी !
ईडीपी मार्च में ले ली, मंजूर क्यों नही की !
पारदर्शिता तार तार सीएम अब तक क्यों सो रहे !
आखिर मौन सहमति क्या भ्रष्टाचार की मंजूरी है !
प्रचलित ब्रांड गायब डेनिस गैंग रिटर्नस का कारनामा !
राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की ईडीपी पर कुंडली क्यों है !
इसे आबकारी विभाग के अधिकारियों की लापरवाही कहें या शातिर तरीका कि जो अब तक हर तरीके से लुट रहे ठेकेदारों के बाद अब बांड वितरक कंपनियां इन डेनिस समर्थक अफसरों के रडार पर आ गई है।
ठेकों के बाद कंपनी प्रतिनिधियों पर हंटर चलने जा रहा है। सोची समझी रणनीति अफसरों की उनके व्यक्तिगत लाभ के लिये सटीक साबित हुई। अफसरों को पता था लंबे लाॅकडाउन के बाद एकाएक ग्राहक बाजार में टूटेंगे। ठेके साफ होने के बाद करीब-करीब हर ठेके से डिमांड एफएल टू पंहुचेगी, जहाँ से समय से उचित ब्रांड मिलेंगे ही नही।
बाजार में मदिरा के प्रचलित ब्रांड उपलब्ध नहीं है, जिससे ग्राहकों को डेनिस शराब के समय का एहसास हो रहा है। वहीं दुकानदारों को ब्रांड नहीं मिलने से प्रतिदिन तथा उनको प्रतिदिन लाखों रुपए का नुकसान हो रहा है। वहीं उपभोक्ता को भी पसंद की शराब नहीं मिल पाने से या कम गुणवत्ता की शराब या विभाग की पसंद की शराब पीने की मजबूरी हो गई है।
सामान्यतः नई आबकारी नीति के फरवरी में आने के बाद से ही विभागीय अधिकारी नये वर्ष की शराब की आपूर्ति की तैयारी करते हैं, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ।
इस संबंध में दिनांक 25 अप्रैल से 27 अप्रैल 2020 को विभिन्न समाचार पत्रों में समाचार भी प्रकाशित हुआ था कि “शराब की नई रेट लिस्ट वायरल”।
उक्त में विभाग के एक संयक्त आबकारी आयुक्त का बयान भी प्रकाशित हुआ था’ रेट लिस्ट सही है यह लिस्ट कुछ बॉटलिंग प्लांट ने मांगी होगी, शायद इस बीच लीक होने के बाद वायरल हो गई।
जब रेट लिस्ट के अप्रूवल वाला पत्र जिलाधिकारी को प्रेषित किया जाना था तो एमआरपी की लिस्ट जिसमें 19/3/20 की तिथि अंकित है के 26/4/20 को लीक होने का क्या औचित्य है !
उक्त में लीक होने लायक क्या था ! यह समझ से परे है ! जब यह लिस्ट 19 मार्च 2020 को तैयार हो गई थी तो तभी सप्लायर्स को दे दी जानी चाहिए थी, जिससे वह नई एमआरपी से शराब की आपूर्ति कर पाते, लेकिन विभाग ने इस लिस्ट को दबाए रखा तथा कुछ बॉटलिंग प्लाट को ही लिस्ट दी, अन्य सप्लायर को नहीं दी। जिस कारण शराब की आपूर्ति बाधित हो गई, क्योकि उक्त आपूर्तिकर्ता समय से शराब का उत्पादन नहीं कर पाए।
इसके अतिरिक्त दुकानदारों को बेचने को शराब न मिलने से उनके द्वारा दुकान छोड़ने तक की बात कही जा रही है।
एमआरपी लिस्ट डिस्टलरी वालों की रिक्वेस्ट पर आबकारी आयुक्त द्वारा अनुमोदित की जाती है फिर उन्हें ही उक्त उक्त लिस्ट देने में क्या आपत्ति थी ! व क्या वायरल हो गया यह रपष्ट नहीं है। अप्रूव्ड लिस्ट देने में पिक एंड चूज क्यों अपनाया गया ! यह सवाल भी अनुत्तरित है।
फिलहाल जो भी हो, इससे सरकार को revenue की हानि हो रही है, यह भी कहा जा रहा है कि जो विभाग में पहुंच रखता है, उस आपूर्तिकर्ता को तो लिस्ट दे दी गई जिससे कि वह अपना माल भरकर बेच सके अन्य सप्लायर को जिनके कि ब्रांड अधिक प्रचलित हैं, उनको समय से नहीं दी गई।
डिस्टलरी के सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि अभी आपूर्ति में और समस्या आएगी।
उनके द्वारा अपनी नई आपूर्ति दर जोकि विभाग द्वारा निर्धारित शतों के अनुरूप है, काफी समय पूर्व विभाग में जमा कर दी है लेकिन विभाग अकारण उसे स्वीकृत नहीं कर रहा है, जिस कारण उनके द्वारा भविष्य में मदिरा की आपूर्ति करने में समस्या आएगी।
डिस्टिलरी की प्रस्तावित दर नियमों के अनुरूप है तो उसे स्वीकृत करने अगर नियमों के अनुरूप नहीं है तो उसे अस्वीकृत करने में विभाग को क्या आपत्ति है, यह स्पष्ट नहीं है।
अनावश्यक विलंब करने के कारण के संबंध में विभिन्न चर्चाएं की जा रही है, जिसका सहज ही अर्थ लगाया जा सकता है। जब आबकारी विभाग आपूर्ति हेतु एमआरपी अप्रूव करेगा, उसके बाद संबंधित कंपनी उस एमआरपी को अपने बोतल के लेवल पर छापेगी, फिर शराब की भराई करेगी जिसमें समय लगना स्वाभाविक है। फिलहाल आबकारी विभाग की इस नूरा कुश्ती से फायदा तो किसी व्यक्ति विशेष को हो सकता है लेकिन राज्य सरकार जो कि कोविड 19 के कारण राजस्व की कमी से जूझ रही है,उ उसको और हानि होने की पूर्ण संभावना है।