कर्ज लेकर घी पीने की कहावत उत्तराखंड सरकार पर बिल्कुल फिट बैठती है। यदि पिछले एक साल के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो उत्तराखंड ने 119% ज्यादा उधार लिया है। इस महीने का वेतन और पेंशन भी उत्तराखंड सरकार तब दे पाई, जब बाजार से 500 करोड रुपए का उधार लिया।
उधारी पर प्लस-माइनस ज्ञान
पिछले साल 1 सितंबर 2019 तक के अनुसार उत्तराखंड ने 1600 करोड़ रुपए उधार लिए थे, जबकि 1 सितंबर 2020 तक उत्तराखंड 3500 करोड़ रुपए उधार ले चुका है
उधार लेने में यह वृद्धि 119% है। जबकि हिमाचल और उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष उधार लेने में बेहद कमी आई है।
उत्तराखंड के मुकाबले पड़ोसी उत्तर प्रदेश की यह उधारी माइनस 145 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश ने 13000 करोड़ रुपए उधार लिए थे, जबकि इस वर्ष 1 सितंबर 2020 तक मात्र 7500 करोड़ रुपए उधार लिए हैं।
यह आंकड़े एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट द्वारा सार्वजनिक किए गए हैं।
यूपी-हिमाचल,बिहार के मुकाबले पटरी से उतरा उत्तराखंड
केवल चालू वित्तीय वर्ष में 1 सितंबर तक की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 42% और जबकि उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश ने 69 प्रतिशत कम उधारी ली है।
अहम सवाल यह है कि आखिर उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति पटरी से कैसे उतर गई !
यह उत्तराखंड की सबसे बड़ी असफलता है। यहां तक कि बिहार ने भी इस वित्तीय वर्ष मे पहली सितम्बर तक पिछले वर्ष के मुकाबले 19% कम उधार लिया है।
यहां डबल इंजन का डबल नुकसान !
डबल इंजन के फायदे गिना कर सत्ता में आई त्रिवेंद्र सरकार इतनी अक्षम है कि केंद्र से अपनी जीएसटी की क्षतिपूर्ति तक मांगने का साहस नहीं कर पा रही है।
अकेले जीएसटी की क्षतिपूर्ति का बाइस सौ करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने उत्तराखंड को देना है, लेकिन हालत यह है कि इसी वित्तीय वर्ष में अब तक सरकार बाजार से सोलह सौ करोड़ रूपए उधार ले चुकी है।