स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):- उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राज्य उपभोक्ता फोरम के 11 जिलों में अध्यक्ष और सदस्य के पद रिक्त होने के खिलाफ स्वतः संज्ञान संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए परीक्षा पैटर्न में यू.के.एस.एस.एस.सी.व अन्य से 4 अप्रैल तक जबाव दाखिल करने को कहा है। यू.के.एस.एस.एस.सी.ने इन पदों के लिये 19 जनवरी को विज्ञप्ति जारी की थी, जिसमें आयोग के अध्यक्ष पद के लिये भी लिखित परीक्षा और बहुविकल्पीय प्रश्नों के गलत उत्तर देने पर नैगेटिव मार्किंग का प्रावधान रखा गया। उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष पद के लिये केवल सेवानिवृत्त न्यायाधीश के आवेदन का प्रावधान है। मुख्य न्यायधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खण्डपीठ में यू.के.एस.एस.एस.सी.के बनाये इस प्रावधान को न्यायालय से नियुक्त न्यायमित्र ने रखा। न्यायमित्र ने कहा कि सेवानिवृत्त जजों के लिये परीक्षा में इस तरह का प्रावधान उचित नहीं है। यह सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं है ।
मामले के अनुसार न्यायालय ने एक समाचार पत्र में छपी खबर का संज्ञान लेते हुए इस मामले को जनहित याचिका के रूप में लिया। समाचारपत्र में
कहा गया था कि प्रदेश में राज्य उपभोक्ता आयोग के साथ, सभी जिला मुख्यालयों और जिला उपभोक्ता फोरम का गठन किया गया है, लेकिन 13 में से 11 जिलों में अध्यक्ष और सदस्य मौजूद नहीं हैं। इससे उपभोक्ता मामलों का निपटारा नहीं हो पा रहा है। उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, चमोली, पिथौरागढ़, टिहरी, पौड़ी, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर और चंपावत में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है। इसके अलावा हरिद्वार और देहरादून के कंज्यूमर फोरम निष्क्रिय साबित हुए हैं। हरिद्वार में उपभोक्ता फोरम के वादों की सुनवाई एक वर्ष से नहीं हई है और देहरादून में वाद पर अंतिम सुनवाई सितम्बर 2022 में हुई थी। हरिद्वार और देहरादून में उपभोक्ता फोरम के 1470 वाद लंबित हैं। समय पर वादों की सुनवाई नहीं होने से उपभोक्ताओं को समय पर न्याय नहीं मिल रहा है। यही हाल अन्य जिलों का भी है, इसलिए रिक्त पदों पर शीघ्र भर्ती की जाय।