राजेश्वर पैन्यूली,
लॉकडाउन मे फंसे उत्तराखण्ड प्रवासियों की समस्याओं को संभालने मे सरकार पूरी तरह से असफल साबित हुए वहीं विपक्ष भी बहुत देर से जागा!
सबसे पहले ये समझाना होगा कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत सारी शक्तियां कानूनी रूप से माननीय प्रधान मंत्री के पास राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority या NDMA) भारत सरकार के गृह मंत्रालय (MHA) के माध्यम से उनके पास आ चुकी है और आप भी देखते होंगे कि सरकार के सारे आदेश अब गृह मंत्रालय ही जारी करती है। मैं और मेरे साथी गिरीश शर्मा ने कानूनी सलाह लेकर तुरंत ही मार्च, 2020, मे उत्तराखण्डी कामगार कल्याण समिती बना कर सीधे PMO को पत्र लिखा और साथ ही साथ CM / CS आदि को भी सूचित किया कि प्रवासियों को घर पहुँचाना सरकार की जिम्मेदारी है।
कुछ साथी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर भी पहुंच गए।
विपक्षी दल सोये रहे। देर से जागे
वहीं प्रमुख विपक्षी ( Opposition ) राजनितिक पार्टी सिर्फ CM से पत्रव्यवहार करती रही और आम जनता को लगा कि CM ही सब कर सकता है। वो UP का उदाहरण भी देते रहे, ये बिना समझे की UP का निर्णय भी कानून के अनुसार सही नहीं था। पर क्यूंकि राजनीतिक निर्णय कई बार हो जाते हैं, उन्हे जनता के समक्ष गलत नहीं ठहराया जाता है, और खासकर तब जब वह सत्ताधारी पार्टी के ही हो। शायद इसलिये भी यह विषय चर्चा मे नहीं आया।
उसके बाद PMO को भी निर्देश जारी करने पड़े की सभी प्रवासियों को वापसी तय की ज़ाये। तब तक उत्तराखण्ड सरकार के पास ना कोई तैयारी थी ना ये ही पता था कि लगभग 2.00 लाख लोग वापस आयेंगे। सरकार की सोच तो बस 25-30 हजार लोगों की थी। कांग्रेस पार्टी ने भी काफी देर बाद देवभूमि मोबाइल ऐप की सहायता से बताया कि लगभग 30-40 हजार लोग होंगे।
सरकार के पास जो संख्या थी वो बस 30-40 हजार ही थी। जब कि वास्तविक संख्या उससे 5-6 गुना ज्यादा निकली। फिर आनन फानन मे सरकार ने जो पंजीकरण का तरीका प्रवासीयों की वापसी के लिये रखा वो बहुत ही दोषपूर्ण रहा।
पंजीकरण की व्यवस्था बेहद लचर
ज़िन प्रवासियों को वापसी आना था, उनके शिक्षा का स्तर, तकनीकी समझ, मानसिकता और संसाधनों की क्षमता का ध्यान ही नहीं रखा गया। जो फ़ोन लाइन दी गयी वो मुश्किल से एक दिन मे 200-300 कॉल हैंडल कर सकती थी। जब की कॉल 15-20 हजार आ रही थी। जिससे पंजीकरण प्रणाली ही पूरी तरह धराशाई हो गयी। उसके बाद नोडल ऑफिसर आदि के नंबर प्रसारित किये गये, बिना किसी तैयारी के, जिनको प्रवासियों ने सोचा कि ये पूछताछ अधिकारी (Enquiry Officer) के नंबर हैं। जबकी इतने वरिष्ठ अधिकारी पूरी व्यस्तताओं जैसे कि दूसरे राज्यों के अधिकारियों से बसों य़ा ट्रैन कैसे संचालन के बारे मे बात करना, ज़रूरी धन की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि तय करने के लिये “नोडल अधिकारी” थे। करना ये चाहिए था कि 150-200 लाइन का कॉल सेंटर तत्काल शुरू करते। कॉल सेंटर जवाब के साथ साथ अपने ही सिस्टम से प्रत्यक्ष पंजीकरण कर देता और वहीं स्थिति अपडेट बताता रहता तो लोगों की आशंकायें कुछ कम हो जाती।
लाने बुलाने पर स्पष्टता नही
वहीं बसों / ट्रेन की क्या व्यवस्था है, क्वारंटाइन कैसे होंगे, कानून व्यवस्था आदि बहुत सी दिक्कतें थी ज़िनकी तैयारिया भी समय से नहीं हुयी। जब तक मूल ( Basic ) तैयारियां की गयी 7-8 दिन लग गए।इस बीच, जनता की परेशानियों का ट्रेवल माफियो द्वारा, अधिकारियों की मिलीभगत से खूब फायदा उठाया गया। डरे और सहमे हुए प्रवासिंयो ने टैक्सी, बस आदि का 4-5 गुने अधिक किराया दिया।
यही अनावश्यक व्यय, यदि सरकार की कॉल सेंटर सपोर्ट सूचारू रूप से चलती तो 80-85 % तक कम हो सकता था। विपक्षी पार्टी के कुछ नेता भी सिर्फ चुनिंदा लोगों के लिये सिफारिश करते रह गए, जब की पूरा का पूरा सरकारी तंत्र ही नाकारा साबित हो चुका था। ये सब सरकार की असफलता है। उत्तराखण्ड कांग्रेस के अधिकतर वरिष्ठ नेताओं को भी यह बात बहुत देर से समझ आयी कि प्रदेश किस मुसीबत मे फंस चुका हैं और प्रवासियों की सुरक्षित वापसी के लिये प्रमुख विपक्षी दल के रूप मे उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हैं। विपक्ष भी सीधे सीधे सरकार से पूछने से कतराते रहे कि गुजराती प्रवासियों को किस कानून के तहत ले जाया गया था, क्या इस देश मे दो कानून हैं ?
अभी भी प्रवासियों की समस्या कम नहीं हुई हैं। अभी भी अधिकांश को विश्वास नहीं की उनके मोबाइल पर बस नंबर, ट्रेन नंबर आदि खुद आयेंगे? अभी भी नहीं पता कि क्यूँ पुलिस स्टेसन मे पंजीकरण करना ज़रूरी हैं ? और अगर नहीं हो पा रहा तो किससे पूछें ?
वैसे मैं व्यक्तिगत रूप से उम्मीद करता हूँ कि अधिकारी अब काफी सहज हो गये और शायद अगले 3-4 दिन मे अधिकतर बचे हुए पंजीकृत प्रवासियों को पता होगा कि वो कब और कैसे अपने गांव पहुंचेगे। हाँ ! अभी भी सरकार को पंजीकरण ( Registration) की प्रक्रिया मे बहुत सुधार की आवश्यकता हैं। प्रदेश मे एक शहर से दुसरे शहर कैसे जाए, यह भी पता कर पाना बहुत मुश्किल हैं।
अभी, प्रवासियों के दिक्कतों की कहानी खत्म नहीं हुई है। अभी तो ˈक्वॉरन्टीन मे बहुत सी व्यावहारिक दिक्कतें आ रही हैं। उसके बाद रोजगार आयेगा। कहने को तो सरकार कह रही कि लोन देंगे / सब्सिडी देंगे, पर ये सब सिर्फ हवा हवाई बातें हैं। सरकार के पास कोई रोड मैप नहीं, कोई SOP तय नहीं, कोई जमीनी सर्वे नहीं है, कोई विषय विशेषज्ञों की टीम नहीं है।
और विपक्षी पार्टी सिर्फ मांगे कर रही कि क्षतिपूर्ति करो आदि आदि। पर क्या सरकार के पास धन और अन्य संसाधन हैं? ये कोई नहीं पूछ रहा है और न बता रहा, मतलब अभी बुरे दिन खत्म या कम नहीं हुए है। मेरे अनुमान के अनुसार सरकार को रूपए. 25-30 हजार करोड़ तत्काल चाहिये होंगे। पर आयेंगे कहाँ से? वो भी बताया जा सकता है? पर सरकार पूछने की जरुरत समझे तब ना।
और सरकार, अगर आज भी, ठीक से मिलान करे, की कितने आधिकारिक पास जारी हुए और कितने लोग प्रदेश मे वापस आये है, उसी से पता चल जायेगा कि भ्रष्टाचार कितना बड़ा है?
आज अगर गणना की जाए तो लगभग 40% लोग ग़ैरक़ानूनी पास / अनुमति से राज्य मे आये होंगे और कम से कम रुपये. 02-03 करोड का भ्रष्टाचार हुआ होगा। वो भी ऐसी त्रासदी के समय , ठीक सरकार की आँखों के नीचे, जो की बहुत शर्मनाक है।