उच्च शिक्षा निदेशक ने सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कैंपसो में प्राध्यापकों को लोन पर देने के लिए केवल बागेश्वर, पिथौरागढ़ एवम चंपावत कॉलेज के प्राचार्यों को ही आदेश जारी किया है। जबकि इसी विश्वविद्यालय के अन्य दर्जनों महाविद्यालयों को छोड़ दिया गया।
सिर्फ तीन कॉलेज को आदेश जारी करने वाले उच्च शिक्षा निदेशक डॉक्टर चंद्र दत्त सूंठा का कहना है कि उन्होंने ऐसा शासन के पत्र के अनुपालन में किया है। जब उनसे बाकी कॉलेज को छोड़ने का कारण पूछा गया तो उन्होंने मीटिंग में होने की बात कहते हुए फोन काट दिया।
इस आदेश से यही प्रतीत होता है कि सिर्फ सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के तीन कैंपस में से ही लोन पर प्राध्यापकों को विश्वविद्यालय को दिया जाएगा जबकि विश्वविद्यालय के अधीन सभी महाविद्यालयों के कार्मिकों से विकल्प मांगा जाना चाहिए था।
यह आदेश एक ऐसे ही आदेश के खिलाफ है, जिसमे केवल बागेश्वर और पिथौरागढ़ कैंपस के कर्मिकों को विश्वविद्यालय में समायोजन किए जाने के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में योजित वाद अमित जायसवाल बनाम उत्तराखंड सरकार के मामले में उच्च न्यायालय में सरकार द्वारा अपने पक्ष में रखे गए तथ्यों के आधार पर जारी किया है।
विश्वविद्यालय एक स्वायत्त निकाय है जो शीघ्रातिशीघ्र पदों में नियमित भर्ती कर सकता है, जबकि महाविद्यालयों में भर्ती लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती है जिसमे औसतन चार वर्षों का समय लग जाता है। विश्वविद्यालय गेस्ट फैकल्टी का चयन एक माह के अंदर भी कर सकता है लेकिन नीति निर्माता इसे विवादास्पद ही रहने देना चाहते है। इस विवाद से लगभग 10000 छात्रों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
पिथौरागढ़ में एक खेमा नया महाविद्यालय खोलने पर पुरजोर से लगा है। पिथौरागढ़ उत्तराखंड के सबसे अच्छे महाविद्यालय के रूप में जाना जाता था अब उसे कमजोर कर नया महाविद्यालय खोलने के पीछे की सोच समझ से परे है।
यह देखना आवश्यक होगा कि क्या लोन में सिर्फ पिथौरागढ़, बागेश्वर व चंपावत के प्राध्यापकों को ही लिया जाएगा ! सारी समस्या शासन, निदेशालय व विश्वविद्यालय के बीच समन्वय न होने के कारण पैदा हुई है।
निदेशालय अपनी ओर से कुछ प्रयास नहीं करता है। वह शासन द्वारा जारी आदेश पर एक लाइन लिखकर महाविद्यालयों को प्रेषित कर देता है।