जगदम्बा कोठारी
देहरादून।
4 जुलाई को नये नवेले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने अपने पहली ही कैबिनेट में सबसे पहले अतिथि शिक्षकों के सुरक्षित भविष्य के सम्बंध में ऐतिहासिक फैसला लिया था जिसकी चारों तरफ वाहवाही भी हुई थी, जिसमें तीन मुद्दे प्रमुख थे।
1 -अतिथि शिक्षकों के पद रिक्त नहीं माने जायेंगे।
2-गृह जनपद में वापिसी होगी।
3-वेतन 25हजार होगा।
इन घोषणाओं को सरकार ने विज्ञापनों के माध्यम से एक महीने तक प्रचार प्रसार भी किया, लेकिन अभी तक इस सम्बन्ध में स्थिति स्पष्ट नहीं है।
25हजार का वेतन कब से लागू होगा इसके बारे में स्थिति साफ नही है। अभी कई जनपदो में जनवरी और जून की छुट्टियों का वेतन नहीं मिला है जबकि अतिथि शिक्षकों ने ऑनलाइन शिक्षण कार्य करवाया था।
बाकि पद रिक्त की घोषणा और गृहजनपद में वापसी को सरकार ने सिर्फ पब्लिकसिटि का सस्ता माध्यम बनाया है। विधानसभा में समस्त कैबिनेट की बैठक मे मुख्यमंत्री की घोषणा का कोई औचित्य नहीं रहा है। क्या यह आगामी चुनाव के लिए अतिथि शिक्षकों के वोट खींचने मात्र का एक बहाना था या एक लॉलीपॉप, जिससे कि आगामी चुनाव में भी अतिथि शिक्षकों के वोटों को अपनी ओर खींचा जा सके।
जबकि प्रदेश की बीजेपी सरकार ने अपने पिछले चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि हम कैबिनेट में विधायी परीक्षण करके अतिथि शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित करेगें, मगर आज सब घोषणाएं झूठी और कोरी प्रतीत होती दिख रही हैं।
अतिथि शिक्षकों का भविष्य अभी भी मझधार में है ,आने वाले एक-दो महीनों के बाद चुनावी आचार संहिता लग जाएगी मगर अतिथि शिक्षकों का भविष्य अभी भी असुरक्षित है,।
वर्तमान सरकार इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही, कैबिनेट में जो 3 प्रस्ताव लाई थी , पहला ₹25000 मानदेय, दूसरा गृह जनपद वापसी और तीसरा अतिथि शिक्षकों के पद रिक्त नहीं माने जाएंगे , यह तीनों प्रस्ताव कैबिनेट में पास तो कर दिए थे मगर केवल एक ही प्रस्ताव बड़ी मुश्किल से जियो बनकर निकला केवल वेतन वाला बाकी जस के तस पड़े हुए हैं।
अभी तक अन्य दो प्रस्तावों का जो कि कैबिनेट में पास हो चुके थे उनका जिओ जारी नहीं हुआ जिस कारण अतिथि शिक्षक अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं , और सात सालों बाद भी अपने भविष्य के प्रति चिंतित हैं और अपने भविष्य को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।