स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने देहरादून की राजपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार के जाति प्रमाणपत्र के मामले में राजकुमार को नोटिस जारी करते हुए सरकार और राजकुमार से चार सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं। वैकेशन जज न्यायमूर्ति एन.एस.धनिक की एकलपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले में सुनवाई की ।
मामले के अनुसार, देहरादून निवासी बालेश बवानिया ने राजकुमार के जाती प्रमाणपत्र को उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुनौती दी है।
उनका आरोप है कि राजकुमार ने 2011 में फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के आधार पर अपना जाति प्रमाणपत्र प्राप्त हासिल किया।
शिकायतकर्ता की जांच के बाद प्रमाणपत्र को 2012 में निरस्त कर दिया गया था। फिर कुछ दिन बाद ही राजकुमार ने दोबारा नया जाति प्रमाणपत्र हासिल कर लिया और वर्तमान समय में भी झूठे प्रमाण देकर जाति प्रमाणपत्र हासिल कर लिए।देहरादून के खुड़बुड़ा मोहल्ला निवासी बालेश बवानिया का कहना है कि उन्होंने इस सम्बंध में डी.एम.को शिकायती पत्र सौंपकर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की तो डी.एम.ने एस.डी.एम.को इसकी जांच सौंपी दी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के अनुसार नियमानुसार राज्य में 1950 से पहले से रह रहे व्यक्ति को जाति प्रमाणपत्र प्राप्त करने का अधिकार है। यदि आवेदक का परिवार 1950 से पहले दूसरे राज्य में रहता है तो वहीं से प्रमाणपत्र हासिल करने का अधिकारी होगा। याचिका में यह भी कहा गया है कि जिलाधिकारी ने जाँच एस.डी.एम.से कराई जो कि विधि विरुद्ध है। जाति प्रमाणपत्र जारी करने और उसकी जाँच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी माधुरी पाटिल के केस में कई अहम दिशा निर्देश दिए है ।
निर्णय में कहा गया है कि स्टेट कास्ट स्क्रूटनी कमेटी द्वारा ही जाती प्रमाणपत्र की जांच की जाएगी और यह सरकार के साशनादेश में भी उल्लेखित है। जिलाधिकारी ने इसकी जांच कमेटी से न कराकर उप जिलाधिकारी से कराई। याचिका में न्यायालय से यह प्राथर्ना की गई है कि उनका जाति प्रमाणपत्र निरस्त किया जाय और इसकी जाँच स्टेट कास्ट स्क्रूटनी कमेटी से कराई जाय।