रिपोर्ट – राजकुमार सिंह परिहार
हर कोई जीवन में एक अच्छी नौकरी के लिए कड़ी मेहनत करता है जिसके लिये पहाड़ का युवा महानगरों की ओर रूख करता है। लेकिन आज हम एक व्यक्ति के बारे में बताएंगे, जो महानगरों की दिनचर्या छोड़ पहाड़ के लिये आज किसी रोल मॉडल से कम नही है।
दरअसल आज हम बात कर रहे हैं बागेश्वर जनपद के काण्डा ब्लॉक के दिगोली गाँव निवासी 42 वर्षीय कुन्दन सिंह बोरा की जिनका रोज़गार क़ोरोना के चलते छिन गया पर उन्होंने हिम्मत नही हारी और परिवार के साथ अपने गाँव दिगोली पहुंचकर पत्नी दीपा बोरा संग मिलकर शुरू किया गाय पालन व दूध डेयरी व्यवसाय। कहते हैं ना, दुनिया में अगर जोश और होश से काम लिया जाये तो इंसान पहाड़ों को चीर सकता है। आप अगर कुछ भी पाना चाहते हैं, तो वह आपको एक झटके में नहीं मिलती। आपको उसके लिए लड़ना पड़ता है और जब तक इंसान अपनी सोच को बड़ा नहीं करेगा, तब तक वह अपनी ज़िंदगी में कुछ भी बड़ा हासिल नहीं कर पाएगा। जहां कोविड के चलते बड़े बड़ों की हिम्मत जवाब दे गई वहीं एक बार अपनी मेहनत व लगन से सब कर दिखाया कुन्दन व उसकी पत्नी दीपा ने। जो क्षेत्र के युवाओं के लिये आज एक उदाहरण बन बैठे हैं।
♦️पन्द्रह सालों से मुंबई में ऑटो चलाते थे-
कुन्दन सिंह बोरा बताते हैं कि वह पिछले पन्द्रह सालों से मुंबई में ऑटो चलाने का काम करते थे। जिससे होने वाली कमाई से वह अपना परिवार चलाते थे। उनका जीवन हंसी खुशी चल रहा था फिर कोविड के चलते उनका रोज़गार छीन गया। जिसके बाद परिवार का भरण पोषण करना बहुत मुश्किल हो गया था। जून माह में अभिनेता सोनू सूद के सहयोग से मैं और मेरा परिवार घर वापस आ पाया। मेरे परिवार में मैं मेरी पत्नी दीपा देवी 32 वर्ष, पुत्र श्रेयश दस वर्ष है जो कक्षा पांच में पढ़ाई कर रहा है व एक पुत्री श्रेया 13 वर्ष की है जो कक्षा आठवीं में पढ़ाई कर रही है।
♦️बहन से गाय उधार लेकर की शुरुआत –
कुन्दन सिंह बोरा व उनकी पत्नी दीपा बताते हैं कि पिछले वर्ष जब वह गांव वापस अपने परिवार के साथ पहुंचे तो उनकी माली हालत कुछ ख़ास नही थी जिसके चलते उन्होंने यहीं रहकर कुछ काम करने की सोची। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने फिर जून माह में अपनी बहन से एक गाय उधार में लेकर अपना यह डेयरी व्यवसाय प्रारम्भ किया। वह बताते हैं कि आज उनके पास 12 दूध देने वाली गायें व 6 बछिया हैं।
वह बताते हैं कि आज से पहले मैंने व मेरी पत्नी ने इस तरह कभी घर का काम नही किया था। परन्तु मुझे खुशी हैं कि आज मेरे इस कदम में मेरी पत्नी भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी है। हम दोनो लगातार दिनरात मेहनत करते हैं। जिसके चलते अभी आज 55 से 60 लीटर गाय का दूध हम अपने गाँव से लगभग 15 किमी दूर काण्डा व उसके आस-पास डोर टू डोर लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं।
♦️डेयरी फ़ार्मिंग का सपना है –
कुन्दन सिंह बोरा व उनकी पत्नी दीपा बताती हैं कि आज पहाड़ों में गाँव के लोग गाय व गोबर से नफ़रत करने लगे हैं। हमें यह काम करता देख अक्सर लोग ये कहते नजर आते हैं कि “आप कैसे कर लेते हैं”। यह बेहद चिंतनीय है कि हमारा समाज आंखिर किस ओर बड़ रहा है। वह बताते हैं कि उनका सपना है कि वह डेयरी फ़ार्मिंग करें व उसके माध्यम से अपने आस-पास के गावों में भी रोज़गार के अवसर पैदा कर सके। जिससे आने वाले समय में पहाड़ों से होने वाले पलायन की समस्या से भी छुटकारा पाया जा सके। वह कहते हैं कि जब हमारे लोगों को हमारे ही गावों में अपने घर पर रहकर रोज़गार मिलने लगेगा तो कोई क्यूँ घर से दूर जाना चाहेगा।
♦️अभी तक जनप्रतिनिधियों ने नही दिखाई कोई दिलचस्पी –
कुन्दन सिंह बताते हैं कि इस व्यवसाय के लिये मैं पूर्व में विधायक रहे बलवन्त सिंह भौर्याल जी के पास दो बार जाकर मिला। तो उन्होंने बताया कि आपके लिये मोदी जी ने 52 योजनाएँ संचालित की हुई हैं, परन्तु वह एक भी योजना दिलाने में असमर्थ रहे। फिर उन्होंने एक मनरेगा के माध्यम से पैंतीस हजार रुपए की लागत वाली गौशाला स्वीकृत की जो मेरे द्वारा नही ली गयी। जिसके निर्माण में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, मेरे पास समय का अभाव होने के कारण यह स्थगित करना ही उचित लगा। फिर अभी कुछ दिन पूर्व जीत के बाद धन्यवाद के लिए क्षेत्र में आये विधायक सुरेश गाड़िया से मुलाक़ात नही हो पायी उन्होंने अगली बार आने का संदेश भिजवाया है। चुनाव के समय पूर्व विधायक ललित फ़र्स्वाण भी घर पर आये हुए थे उन्होंने भी हर सम्भव सहयोग का भरोसा जताया था। वह बताते हैं कि अभी कुछ दिन पहले पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐंठनी भी काण्डा के अपने साथि ब्लॉक स्तरीय नेताओं के साथ यहाँ पहुंचे थे तो उन्होंने बड़ी प्रशंसा करते हुए कहा कि “आप बहुत सराहनीय कार्य कर रहे हैं। आप आज के युवाओं के लिये प्रेरणा के श्रोत हैं आपको नमन करता हूँ। हमारा हर सम्भव प्रयास रहेगा कि सरकार व जिला प्रशासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ आप लोगों तक पहुँचाने का प्रयास करेंगे।” कुन्दन बताते हैं कि अभी तक उन्हें किसी का कोई सकारात्मक सहयोग प्राप्त नही हुआ है।
♦️30 से 35 हजार प्रति माह कमा रहे हैं –
कुन्दन सिंह व उनकी पत्नी दीपा बताते हैं कि उनके यहाँ घास, बांज, हरी घास इत्यादि तो आसानी से मिल जाता है परन्तु चना, मक्का व पशु आहार उन्हें हल्द्वानी से मंगाना पड़ता है। वह बताते हैं महीने में 60 से 70 हजार रुपए का इस पर खर्च आ रहा है उसके बाद भी हम दोनो पति-पत्नी के लिये 30 से 35 हजार प्रति माह बच जाते हैं। जिसके चलते आसानी से हमारे परिवार की दिनचर्या चल जाती है।
♦️ज़िंदगी का मकसद जानना ज़रूरी –
कुन्दन सिंह व उनकी पत्नी दीपा पहाड़ के युवाओं को संदेश देना चाहते हैं कि आप अपनी ज़िंदगी का मकसद जानिए और अपने आस-पास हो रही चीज़ों से कुछ सीखिए। आलोचना करने वाले लोग आपको बहुत मिलेंगे लेकिन आपको घबराना नहीं है बल्कि हर चीज़ों और उन सभी लोगों से सीख लेनी है, जो आपको सफल होते नहीं देखना चाहते हैं। जीवन जीना और सफल होना अगर इतना आसान होता, तो आज सभी सफल और खुश होते।वह कहते हैं कि हमारे पहाड़ के लोगों को हमारे आस-पास ही मौजूद सम्भावनाओं को समझना होगा और उसी में रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने होंगे, तभी हम सब शान्तिपूर्वक अपनो के बीच रह सकेंगे। पलायन को भी काफी हद तक स्वरोज़गार के माध्यम से कम किया जा सकता है। आज के नये युवाओं को अपने लिये रोज़गार करना चाहिये न कि दूसरे के लिये।
बस हम यही कहेंगे कि “एक लक्ष्य निर्धारित करिए और आगे बढ़ते रहिए, सफलता आपको ज़रूर मिलेगी अगर आपकी मेहनत 100% है”।
♦️अभिनेता सोनू सूद मेरे लिये किसी मसीहा से कम नही –
कुन्दन सिंह बोरा व उनकी पत्नी दीपा बोरा बताते हैं कि “अभिनेता सोनू सूद उनके परिवार के लिये भगवान साबित हुए हैं । वह बताते हैं कि यदि वह नही होते तो आज हम कहां व किस हाल में होते उसका अंदाज़ा भी नही लगा सकते हैं। कुन्दन बताते हैं कि वह हमारे जैसे हज़ारों लोगों के लिए एक फ़रिश्ता बनकर सामने आये हैं तभी हम आज अपने-अपने घरों में सकुशल पहुंच पाये हैं, वर्ना आज हम कहीं मुंबई की सड़कों पर भीख मांग रहे होते। उनके द्वारा ही हमको बस के माध्यम से हल्द्वानी (उत्तराखंड) भेजा गया। जिसके लिये मैं उन्हें अपने व अपने परिवार की ओर से दिल से धन्यवाद देता हूँ। ईश्वर उन्हें खूब तरक़्क़ी दे। आज सोनू सूद के आशीर्वाद से ही मैं अपने पहाड़ में यह डेयरी फ़ॉर्मिंग कर रहा हूँ वर्ना तो शायद हम घर भी न आ पाते।”