रिपोर्ट- राजकुमार सिंह परिहार
अब तो अख़बारों में रेललाईन की खबर देखते ही चुनाव याद आने लगते हैं। बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के पुरखों ने जिस रेल लाइन का सपना देखा था, वह देश की आजादी और राज्य बनने के 21 साल बाद भी पूरा नहीं हो सका है।
एक सदी की लंबी अवधि के दौरान 24 फरवरी 1960 को पिथौरागढ़, 15 सितंबर 1997 को बागेश्वर और चंपावत अल्मोड़ा से अलग होकर जिले बन गए लेकिन 109 वर्ष बीतने के बाद भी रेल लाइन सपना ही है। तीन जिलों को जोड़ने वाली सामरिक महत्व की यह प्रस्तावित रेल लाइन सर्वे तक ही अटक कर रह गई है।
नवंबर 2020 में दूसरी बार रेल लाइन के लिए रेल मंत्रालय ने सर्वे कराया। फाइनल सर्वे रिपोर्ट इज्जतनगर रेल मंडल से रेलवे बोर्ड को सौंपी जा चुकी थी परन्तु आज भी मामला जस का तस बना हुआ है। 6 हजार 966 करोड़ 33 लाख रुपये की यह परियोजना कब मूर्त रूप लेगी, यह अब भी सवाल ही है।
अतीत में सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के अंग रहे बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चंपावत के लोगों ने अंग्रेजी शासनकाल में रेल लाइन का सपना देखा था। पहाड़ में रेल का सपना हमारी हुकूमतों ने नहीं, फिरंगी सरकार ने दिखाया था। इतिहास खंगालें तो वर्ष 1911-12 में अंग्रेजी हुकूमत ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का सर्वे कराया था। रेल लाइन निर्माण का खाका अंग्रेज तैयार कर रहे थे कि आजादी की ज्वाला और तेज भड़कने लगी। अंग्रेज बागेश्वर तक रेल नहीं पहुंचा पाए।
जैसा कि इतिहास में दर्ज है कि प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व 1888-89 तथा 1911-12 में अंग्रेजी शासकों ने तिब्बत तथा नेपाल के साथ सटे इस पर्वतीय क्षेत्र के लिए आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति, भू-राजनैतिक उपयोगिता और प्रचुर वन सम्पदा व सैनिकों की आवाजाही आसान बनाने के लिए रेल लाइन का सर्वे किया था। लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उपजे हालातों के चलते यह योजना खटाई में पड़ गई। आजाद भारत की सरकारों में इस बहुद्देशीय रेल लाइन का निर्माण का मुद्दा हाशिए पर रहा। वर्ष 2012 के रेल-बजट में पर्वतीय राज्य के जन आकांक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप प्रस्तावित टनकपुर -बागेश्वर रेलवे लाइन को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा देते हुए देश की चार रेल राष्ट्रीय परियोजनाओं में शामिल किया गया था।
मेरा अपना प्रदेश बनने के बाद से लगातार हर मुख्यमंत्री ने रेल मंत्री से दिल्ली में मुलाकात कर प्रस्तावित रेल लाइन की मंजूरी देने और टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का सर्वे कराने की मांग की थी व मांग की जाने की खबरें अख़बारों के माध्यम से जनता को परोसी जाती रही हैं। तब जब सूबे में चुनाव नज़दीक होते हैं। चाहे वह विधानसभा हो या लोकसभा। चाहे प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, दोनो ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।
देश की आजादी के बाद बागेश्वर के लोगों ने रेल लाइन के निर्माण की मांग उठानी शुरू कर दी थी। 80 के दशक में यह मांग परवान चढ़ी। बागेश्वर से लेकर पिथौरागढ़, चंपावत इलाके के लोग रेल लाइन निर्माण की मांग को लेकर लामबंद होने लगे। 2004 से बागेश्वर-टनकपुर रेल मार्ग निर्माण संघर्ष समिति के बैनर तले क्षेत्रवासी आंदोलन की अलख जगाए हुए है। वर्ष 2008 से लेकर लगातार तीन सालों तक जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन तक हो चुके हैं। जनांदोलनों के पुरोधा बागेश्वर निवासी स्वर्गीय गुसाईं सिंह दफौटी जी के नेतृत्व में हुए आंदोलन ने शासकों की चूलें हिला दीं। आंदोलन ने सत्ताधारी दल के साथ ही विपक्षी दलों को भी आंदोलन का समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया। जनदबाव में राजनीतिक दल बागेश्वर-टनकपुर रेल लाइन को चुनावी वादों में शामिल करने लगे। बागेश्वर के लोगों का संघर्ष चलता रहा।
वर्ष 2006-07 में रेलवे मंत्रालय ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का प्रारंभिक सर्वे कराया। वर्ष 2015-16 में इस परियोजना को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना में शामिल किया गया। वर्ष 2019-20 में फाइनल सर्वे कराया गया। 9 नवंबर 2020 को इज्जतनगर मंडल ने सर्वे रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी। एक साल का समय बीतने को हो गया है लेकिन रेल लाइन के लिए मोदी सरकार से धनवर्षा नहीं हो रही है। आज की खबर फिर एक बार जनता को निराश करने वाली है कि वर्तमान मुख्यमंत्री महोदय ने फाईनल सर्वे की मंज़ूरी पर आभार जताया। आंखिर कब तक यूँ ही सर्वे, फाईनल सर्वे के नाम पर जनता को ठगते रहेंगी सरकारें ? कब तक पहाड़ की जनता को गुमराह करते रहोगे सरकार ?