सूबे की राजनीति में एक बार फिर गर्म हवाएं तैरने लगी है। राज्य की टांग खिंचाऊ शैली का फिर से निर्वहन होने लगा है। मन में दबी टीस अब जुबां के रास्ते सतह पर आ गई है। इस बार मामला पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बनाम वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का है। सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संसद में पटल पर प्रश्न रखा कि उत्तराखंड में अवैध तरीके से खनन हो रहा है और इससे आम जनता की सुरक्षा भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। सदन में उठाए गए इस मुद्दे ने राज्य के माहौल में सरगमों पैदा कर दी है। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं की गई। लेकिन जिस तरह से खनन सचिव बृजेश संत द्वारा तुरंत खनन विभाग की उपलब्धियों को बताया गया उसे त्रिवेंद्र सिंह के लिए जवाब मानना गलत प्रतीत नहीं होता है। प्रत्योत्तर में त्रिवेंद्र सिंह रावत कहावतों के मारक बाण के माध्यम से सरकार पर निशाना साधते नजर आए। फिलहाल अभी ठहराव है। यह ठहराव किसी आगामी राजनैतिक भूचाल का द्योतक हो सकता है।
गर्माई सियासत
हालिया वाकयुद्ध ने प्रदेश को फिर से राजनीतिक चर्चा के केंद्र में ला दिया है। वैसे भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के संसद में खनन में व्याप्त भ्रष्टाचार उठाने से मुख्यमंत्री धामी की कुर्सी को हिला कर रख दिया है। पूर्व में भी धामी के प्रिय माने जाने वाले आई.पी.एस. अधिकारी पूर्व प्रभारी पुलिस महानिदेशक अभिनव कुमार द्वारा रावत के बयानों पर सार्वजनिक तौर पर तीखी टिप्पणी की गई थी।
त्रिवेंद्र रावत के विधानसभा क्षेत्र को हर बार उनके विरुद्ध चुनाव में ताल ठोकने वाले एवं विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक उनकी आंखो में खटकने वाले व्यक्ति विशेष को धामी द्वारा देहरादून मेयर प्रत्याशी सौरभ थपलियाल की दौड़ में शिखर पर ला और खुद उनके लिये प्रचार-प्रसार में उतर साथ ही उन्हें अब तक के मेयर चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाने से भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के मन में ज्वालामुखी पनप रहा था।
संभवतः ऐसे ही कारण थे कि उनके हरिद्वार लोकसभा से सांसद चुनने पर उन्हें एक संवैधानिक मंच मिला तो उन्होंने अपने विरोधियों को भारतीय राजनीति के सुप्रीम मंच संसद के समक्ष अपनी पीड़ा को सर्वप्रथम सरकार को पटखनी देने एवं अभिनव कुमार को सबक सिखाने की नीयत से प्रदेश में नियमित डीजीपी की नियुक्ति का प्रश्न रखा। धामी सरकार में सांसद चुने जाने से पहले अपने आप को राजनीति एवं ब्यूरोक्रेसी के समक्ष त्रिवेंद्र किसी हद तक खुद को बड़ा उपेक्षित महसूस कर रहे थे। उसी का नतीजा हैं कि मंच मिलते ही उनके मन का ज्वालामुखी सरकार के विरूद्ध लावा बन संसद में उनके तेवरों के रूप में फटा।
धामी को सूबे के मुख्यमंत्री की कमान मिलते ही धामी की सहज कार्यशैली के चलते सूबे के नौकरशाह तुरंत सक्रिय हो गए। ऐसे में उन्होंने किसी की मानी या नहीं मानी, लेकिन धामी की मंशा पर खरे उतरने की होड़ में पूरी तरह से लगे रहे।
कौन है निशाने पर !
हालांकि मुख्यमंत्री धामी का नाम सीधे-सीधे कहीं भी भ्रष्टाचार से नहीं जुड़ा है और ना ही सीधे-सीधे उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। पहले पूर्व प्रभारी पुलिस महानिदेशक से खफा होने एवं राज्य सरकार द्वारा उनको एवं उनके राजनैतिक कद को नजरअंदाज कर अभिनव कुमार को ही समर्थन जारी रखने की ही जो कसक थी वह भरी संसद में त्रिवेंद्र रावत द्वारा प्रदेश के विकास एवं जरूरतों की मांग को दरकिनार कर नियमित पुलिस महानिदेशक प्रदेश को मिले की बात अपने प्रश्न काल में रखी गई। इसी से साफ हो गया था कि प्रदेश में उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है। उसके बाद अब संसद में बेबाकी से अवैध खनन को लेकर जिस तरीके से उन्होंने राज्य सरकार को घेरा, उससे स्पष्ट था कि वो खनन को नहीं अपितु सीधे तौर पर मुख्यमंत्री को ही निशाना बना रहे हैं। वहीं धामी सरकार ने भी पलटवार करते हुए खनन सचिव बृजेश संत को आगे कर अपनी मंशा को सचिव के शब्दों के माध्यम से रावत एवं उनके समर्थकों को कड़ा संदेश देने की दमदार कोशिश की। इन्हीं दोनों संदभों से स्पष्ट हो गया कि अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं पूर्व मुख्यमंत्री, हरिद्वार सांसद अड़ियल त्रिवेंद्र सिंह में वाकयुद्ध के बाद खुला राजनैतिक द्वंद्व का बिगुल बज चुका हैं। हालंकि प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा एवं राज्य सभा सांसद नरेश बंसल सरकार की तरफदारी करने मैदान में उत्तर आये हैं।
अपना पदभार संभालने के बाद राज्य की परिस्थितियों से अनभिज्ञता के चलते केंद्रीय मंत्री टम्टा ने कहा कि ऐसा नहीं हैं, इस सरकार में गलत अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही भी हुई हैं, जेल भी गए हैं। सचिव बृजेश संत की मानें तो खनन से 300 करोड़ के राजस्व की प्राप्ति भी हुई हैं। इसको ही सरकार एवं उसके पैरोकार बड़ी उपलब्धि मान अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। जबकि सरकार कोई भी रही हो अगर खनन माफियाओं पर शिकंजा कानून के दायरे में रह कसा जाता तो यह राजस्व असल में जो मिल रहा हैं उससे कहीं अधिक लगभग पांच से सात हजार करोड़ रूपए होता। क्योंकि उत्तराखंड नदियों का प्रदेश है जहां मानसूनी नदियों का अंबार हैं।
सत्ता ही क्या विपक्ष, शासन-प्रशासन पुलिस सभी के तार खनन माफियाओं से जुड़े हैं। तभी खनन माफिया तय हद एवं मात्रा से कई गुना ज्यादा खनन कर रहें हैं। अवैध खनन की बात को संसद में त्रिवेंद्र रावत ने जब से रखा हैं मानो उन्होंने सांप की पूंछ पर पैर रख दिया हो।
‘त्रिदा’ के मन को दुखाने का सिलसिला कुछ इस तरह से आगे बढ़ा है। रावत के विधानसभा क्षेत्र डोईवाला में हमेशा विधायक की टिकट की ताल ठोकने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत को उसके क्षेत्र में चुनौती देने की कवायद करने की वजह से हमेशा उनकी आंखों में खटकने वाले सौरभ थपलियाल मेयर पद पर दावेदारी में धामी की पहली पसंद बने एवं धामी द्वारा उन्हें मेयर कुर्सी पर भी चढ़ा दिया गया। इसे भी धामी द्वारा त्रिवेंद्र को चुनौती देने की कवायद का ही हिस्सा माना जा रहा था। त्रिवेंद्र द्वारा संसद में अवैध खनन की बात के बाद खनन सचिव के बयान पर पलटवार करते हुए उनके द्वारा अपशब्दों का प्रयोग किया गया। बाद में त्रिवेंद्र ने अपने अपशब्दों को मुहावरों का आवरण पहना दिया।
हालांकि खनन सचिव बृजेश संत द्वारा प्रदेश आईएएस संगठन को रावत की टिप्पणी को लेकर अपनी आपत्ति लिखित में दर्ज कराई है। इसको भी राजनीतिक गलियारों में सरकार का त्रिवेंद्र पर दबाव बनाने का पैंतरा माना जा रहा है। खनन की ओर त्रिवेंद्र सिंह का इशारा सिर्फ और सिर्फ इसलिए था क्योंकि धामी जहां से आते हैं वहां से सर्वाधिक राजस्व आता है। उसको लेकर शायद भले ही निशाना धामी न रहे हों लेकिन खनन विभाग को बोलकर अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री धामी को ही साधा है। प्रदेश में व्याप्त गर्माये राजनैतिक माहौल से यह तो साफ है कि प्रदेश राजनैतिक उठापठक के नजदीक है।
भाजपा के दोनों धड़े अपने-अपने ब्यानों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहें। अब मानो या ना मानो अपने दामन में रखे हर हथियार का प्रयोग इस राजनैतिक द्वंद्व में किया जा रहा है। सरकार की तरफ से नौकरशाही सामने लाकर बचाव और प्रहार किए जा रहे हैं।
वहीं त्रिवेंद्र द्वारा अपने प्लेटफार्म के रूप में संसद के माध्यम से जोरदार प्रहार किए जा रहे हैं। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। वैसे मौजूदा हालातों से तो नहीं प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार अवैध खनन पर लगाम लगेगी। चाहे आवाज संसद में उठे या फिर विधानसभा में।
लोकसभा सदन में अपनी हो राज्य सरकार पर अवैध खनन का आरोप लगाने वाले सांसद त्रिवेंद्र रावत का मुख्यमंत्री कार्यकाल खनन के लिए इतना दागदार रहा कि कैग ने भी इस पर गंभीर सवाल उठाए थे। पूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा हरिद्वार में अवैध खनन का मुद्दा संसद में उतए जाने से प्रदेश में भाजपा सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
यह स्थिति तब है जबकि धामी सरकार ने अवैध खनन की परिवहन और भंडारण पर प्रभावी रोक लगाते हुए पिछले 7 सालों में सर्वाधिक राजस्व अर्जित किया है। अवैध खनन के परिवहन और भंडारण पर रोक लगाने के लिए बाकायदा एक कंपनी को काम पर लगाया है, जिससे सरकार को राजस्व में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है। उत्तराखंड की राजनीति में अवैध खनन के आरोप किसी भी सरकार के लिए एक बड़े दाग की तरह होते हैं इसीलिए विपक्ष हमेशा अवैध खनन को एक राजनीतिक हथियार बनाकर इस्तेमाल करता है। लेकिन अपनी ही पार्टी के सांसद द्वारा इस हथियार का राज्य सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करने से सरकार खुद को असहज स्थिति में महसूस कर रही है।
त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में चरम पर था अवैध खनन
आंकड़े उठाकर देखा जाए तो हरिद्वार में सर्वाधिक अवैध खनन वर्ष 2018 से 2020 के बीच हुआ है। जब हरिद्वार में गंगा मे खनन पर पूर्णतया प्रतिबंध होने के दौरान भी पथरी से लेकर अन्य क्षेत्रों में बिना रखने की खनन सामग्री को क्रेशर से चोरी छुपे निकाले जाने का कार्य काफी चरम पर था। अकेले पथरी क्षेत्र में दर्जनों स्टैंड क्रेशरों से खुलेआम अवैध खनन अगस्त 2017 में पथरी थाने के तहत चौकी प्रभारी समेत 11 पुलिस कर्मचारी अवैध खनन में संलिप्त पाए गए थे। तत्कालीन एसपी कृष्ण कुमार वी के सामने स्टोन क्रेशर की कर्मचारियों ने मीडिया की मौजूदगी में एक भाजपा पदाधिकारी का नाम लिया
त्रिवेंद्र राज में खजाने को जमकर लगती थी चपत
यदि त्रिवेंद्र कार्यकाल की बात करें तो वर्ष 2017-18 में 620 करोड़ के राज्यों का लक्ष्य खनन विभाग द्वारा रखा गया था लेकिन मात्र 437 करोड़ रुपए का राजस्व सरकार को मिला बाकी राजस्व अवैध खनन की भेंट चढ़कर खनन माफिया और तत्कालीन नेताओं में बंट गया। इसी तरीके से वर्ष 2018-19 में 750 करोड़ का लक्ष्य रखा गया था लेकिन मात्र 451 करोड़ का ही राजस्व मिला। वर्ष 2019-20 में विभाग ने राजस्व का लक्ष्य नहीं बढ़ाया और पिछले साल का ही 750 करोड़ का लक्ष्य रखा, लेकिन मात्र 391 करोड़ का ही राजस्व मिला।
वर्ष 2020-21 में भी सरकार ने राजस्व के खनन का लक्ष्य नहीं बढ़ाया और उसे पिछले दो वर्षों की भांति 750 करोड़ का ही लक्ष्य रखा लेकिन इस वर्ष भी सरकार को मात्र 506 करोड़ का राजस्व मिला। 2021-22 में फिर से सरकार ने राजस्व का लक्ष्य नहीं बढ़ाया लेकिन इस वर्ष भी लगभग 200 करोड़ तक का ही राजस्व राज्य सरकार को मिल पाया। बाकी अवैध खनन माफिया व नेताओं का रैकेट खनन की चोरी से लगातार फलता फूलता रहा। बाकायदा अवैध खनन के चलते तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत ने अपने खुद के क्षेत्र के डीएफओ को अवैध खनन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए वन मुख्यालय से अटैच कर दिया था। 2019 में हरिद्वार के लक्सर कोतवाली क्षेत्र की बाण गंगा नदी में अवैध खनन का काला कारोबार खुलकर भला फूला।
अपना कार्यकाल भूल धामी को घेरने में जुटे त्रिवेंद्र
हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा भाजपा सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाकायदा मीडिया में भी सरकार को घेरा और कहा कि अवैध खनन से राज्य के खजाने को राजस्व की हानि होती ही है लेकिन पर्यावरण को भी नुकसान होता है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि हमारे प्रधानमंत्री पर्यावरण के प्रति बहुत जागरुक है और यह पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं। अवैध खनन मुद्दे का इस्तेमाल पार्टी के भीतर अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त बढ़ाने के लिए किए जाने से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कोई प्रतिक्रिया नहीं आई किंतु लगातार इस तरह के बयानों से सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता रहा है।
यूं तो त्रिवेंद्र रावत सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं चूकते। पिछले दिनों भी राज्य में कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार को गिरती हुई घिवेंद्र सिंह रावत ने मीडिया में बयान दिया था कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब हो गई है।
सवाल उठाने वाले खुद घेरे मे
भले ही कालग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खनन प्रेमी मुख्यमंत्री का तमगा देते हों अथवा पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत वर्तमान सरकार पर अवैध खनन करने का लेबल लगते हों लेकिन हकीकत यह भी है कि राष्ट्रीय लेखा परीक्षा विभाग ने बाकायदा वर्ष 2015-16 से लेकर 2021 तक की एक पूरी लेखा परीक्षा रिपोर्ट तैयार की है जो अवैध अवैध खनन पर गंभीर सवाल खड़े करती है और संयोग वर्ष यह कार्यकाल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर सवाल खड़े करने वाले दो मुख्य राजनेताओं हरीश रावत और त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री कार्यकाल का ही है।
त्रिवेंद्र कार्यकाल में मातु सदन संतों की गई थी जान
त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में मातृ सदन की साध्वी पद्यावती ने 62 दिन तक अवैध खनन के खिलाफ अनशन किया था, जिससे वह गंभीर रूप से बीमार हो गई थी। उसी दौरान मातु सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने इस बात पर कड़ा आक्रोश जाहिर किया था कि सितंबर 2020 में सरकार ने झूठा आश्वासन देकर उनका अनशन समाप्त कराया था। अवैध खनन से बुरी तरह निराश होकर वर्ष 2020 में मातु सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने 3 अगस्त से अनशन करने का भी निर्णय लिया था। वह इससे पहले भी अनशन पर बैठे थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन्होंने वर्ष 29 मार्च 2020 को अपने अनशन पर विराम लगाया था। अवैध सानन के मुद्दे पर त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में ही मातृ सदन सोत आंदोलन करते हुए मौत के मुंह में समा चुके हैं। 11 अक्टूबर 2018 को बचाकायदा मातृ सदन के स्वामी शिवानंद महाराज ने सीधे-सीधे आरोप लगाया था कि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की हत्या हुई है। उनकी मौत के बाद मातृ सदन के साधु गोपाल दास अनशन पर बैठ गए थे और गंगा निर्मलता के लिए 20 अप्रैल 2019 को 189 दिनों से अनशनरत मातु सदन के साथ बहुचारी आत्मबोधानंद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा था, लेकिन सरकार ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। 22 जून 2018 को अनशन पर बैठने से पहले स्वामी सानंद ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था लेकिन तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने इसके बावजूद गंगा में अवैध खनन पर रोक नहीं लगी। अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के संसद में दिए गए बयान को राजनीतिक नजरिये से देखा जा रहा है और उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पुष्कर सिंह धामी घेरने के रूप में देखा जा रहा है। यदि त्रिवेंद्र सिंह रावत अवैध खनन को रोकने के लिए अपनी सरकार में ही गंभीर होते तो संभवतः आज स्थिति कुछ और होती। अवैध खनन को लेकर अब तक अधिकांश सिर्फ राजनीति ही होती रही है, किंतु अवैध खनन पर लगाम लगाने में भाजपा और कांग्रेस की दोनों ही सरकारें असफल साबित हुई हैं। वर्तमान में इतना जरूर हुआ है कि अवैध खनन से माफिया के पास जा रहे धन का एक बड़ा हिस्सा अब सरकार राजस्व का खजाना बढ़ा रहा है। हाल ही में खनन के परिवहन और भंडारण का कार्य एक निजी कंपनी को देने के बाद सरकार के राजस्व में बढ़ोत्तरी हुई है, हालांकि सरकार को यह भी समीक्षा करते रहनी होगी कि उक्त निजी कंपनी से अधिक से अधिक राजस्व बटोरा जा सके। इसके अलावा आगे भी यह देखने वाली चात होगी कि धामी सरकार अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के हमले से बचने के लिए अवैध खनन पर लगाम लगाने के लिए और क्या व्यवस्था करती है।”
त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल में अवैध खनन पर कैग ने भी खड़े किए सवाल
त्रिवेंद्र सरकार में अवैध खनन का कितना बोलबाला था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कैग ने बाकायदा अवैध खनन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी और उसको भी केवल यही बताया था कि यह तो एक छोटा सा जांच का हिस्सा है। त्रिवेंद्र सरकार के दौरान वर्ष 2019 की राष्ट्रीय लेखा परीक्षा रिपोर्ट में रिवर बेड माइनिंग करने वालों से शुल्क की वसूली में धोखाधड़ी और घोटालों को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे। यहीं नहीं, बल्कि वर्ष 2021 की ऑडिट रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि राज्य सरकार की एजेंसियों ने ठेकेदारों को बिना ट्रॉसिट पास के लगभग 37.5 लाख मैट्रिक टन खनन सामग्री उपयोग करने दिया। 2021 की ऑडिट रिपोर्ट में बाकायदा सवाल उठाया गया है कि नदियों से लाखों टन बजरी, रेत और बोल्डर अवैध रूप से निकाले गये, जिससे पर्यावरण और राजकोष दोनों को घाटा हुआ। वर्ष 2021 की ऑडिट रिपोर्ट में तत्कालीन सरकार पर गंभीर सवाल खड़े करती हुई ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार रिवर बेड माइनिंग करने वालों से किसी प्रकार की पेनल्टी वसूलने में भी विफल रही है, जो कम से कम 104.008 करोड़ रुपए होती है।
सदन में अपनी ही सरकार की घेराबंदी
“मैं आज एक बहुत ही गंभीर और संवेदनशील विषय की और आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता है। उत्तराखंड के देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों में रात के समय अवैध रूप से संचालित खनन संबंधित है। यमुना न केवल कानून और पर्यावरण सुरक्षा के लिए खतरा जनता जा रहा है बल्कि आम जनता की सुरक्षा को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
यह देखा गया है कि राज्य सरकार और प्रशासन के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद खनन माफियाओं द्वारा रात के समय ट्रकों का अवैध संचालन पड़ल्ले से किया जा रहा है। इन ट्रकों में भारी मात्रा में ओवरलोडिंग की जाती है और बिना किसी वैध अनुमति के परिवहन किया जाता है।
इन अवैध गतिविधियों के कारण राज्य में सड़कों और अन्य बुनियादी ढांचे को भारी क्षति हो रही है जिससे आम नागरिकों के लिए आवागमन कठिन हो गया है। सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि इन वाहनों के लापरवाह और तेज गति से संचालन के कारण सड़क दुर्घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। कई निर्दोष लोगों की जान जा चुकी है और कई घायल हुए हैं।
ट्रक चालकों के द्वारा ट्रैफिक नियमों की अनदेखी, नशे की हालत में वाहन चलाना और स्थानीय प्रशासन से मिली भगत के चलते स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। यह आवश्यक है कि सरकार तत्काल इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान दे और प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करे। मैं केंद्र सरकार और उत्तराखंड राज्य प्रशासन से आग्रह करता हूं कि अवैध खनन गतिविधियों को रोकने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया जाए। रात के समय ट्रकों के संचालन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए और सख्ती से उसकी निगरानी की जाए। ओवरलोडिंग रोकने हेतु सभी मुख्य मार्गों पर चेक पोस्ट लगाए जाएं और दोषी ट्रक मालिकों पर खतरन्यक कठोर दंद्यात्मक कार्रवाई की जाए। इस मामले में संलिप्त अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए और लापरवाही बरतने वालों पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाये।”
——— त्रिवेंद्र सिंह रावत, सांसद, हरिद्वार
अवैध खनन का आरोप झूठः खनन सचिव
मेरा यह मत है कि अवैध खनन राज्य में बढ़ा है, यह कहना पूर्णतः निराधार, असत्य और भ्रामक हैं। मेरा यह मानना है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि जो खनन का राजस्व है उसमें तीव्रता से वृद्धि हुई है। यह राजस्व पिछले वर्ष की तुलना में सवा दो गुणा है। वर्ष 2002 से 2025 तक खनन से इतना राजस्व पहले कभी नहीं हुआ हैं। यह पहली बार हुआ हैं कि फाइनेंस ने जो टारगेट दिया, हमने पूरा किया है। बल्कि 200 करोड़ से ऊपर राजस्व लाए हैं। इसे विभाग की उपलब्धि कहा जा सकता है। इससे यह सिद्ध होता है कि अवैध खनन पर प्रभावी नियंत्रण लगा है। इसके लिये हमने नियमों का सरलीकरण किया है और दंडात्मक कार्रवाई बढ़ा दी गई है। हम नई-नई तकनीकी का प्रयोग कर रहें है। टास्क फोर्स तहसील जिला और राज्य स्तर पर गठित है। जो लगातार निगरानी रख रही है कि किसी तरह का अवैध खनन न हो। रात में खनन से भरे ट्रकों के चलने का प्रश्न है तो स्टोन क्रेशर प्लांटों पर जब तैयार माल निकलता है तो वैध प्रपत्र के साथ निकलता हैं। ट्रक रात में इसलिए ज्यादा चलते हैं क्योंकि दिन में भारी वाहनों की शहरों के अंदर अनुमति नहीं हैं। इसके पीछे कारण यह भी हैं कि हमारा प्रदेश धार्मिक पर्यटन के लिये भी महत्वपूर्ण प्रदेश है। यात्रा पर्यटन के लिये आये यात्रियों के लिये भी यातायात बाधित न हो और दुर्घटनाओं की संभावनाएं न्यूनतम हो।
——— बृजेश संत, सचिव, खनन, उत्तराखंड शासन