देहरादून: उत्तराखंड में उपभोक्ता न्याय की स्थिति बेहद चिंताजनक होती जा रही है। उपभोक्ता मामलों के निस्तारण में हो रही देरी और राहत न मिलने से लोग उपभोक्ता आयोगों की शरण लेने से हिचकिचाने लगे हैं। जिन मामलों का निपटारा तीन माह के भीतर होना चाहिए था, वे भी दस वर्षों से अधिक समय से लंबित पड़े हैं।
यह खुलासा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट को उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग से प्राप्त सूचना से हुआ है। उन्होंने राज्य आयोग से राष्ट्रीय आयोग को भेजी गई रिपोर्ट की जानकारी मांगी थी, जिसके जवाब में आयोग ने केस निस्तारण से जुड़ी विस्तृत रिपोर्ट उपलब्ध कराई।
केस फाइलिंग में भारी गिरावट
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 में राज्य आयोग में केवल 29 केस फाइल हुए, जिनमें 26 प्रथम अपील और 3 उपभोक्ता शिकायतें शामिल हैं। वहीं, आयोग ने 12 उपभोक्ता केस और 290 प्रथम अपीलों का निपटारा किया। वर्ष के अंत तक 844 प्रथम अपील और 62 उपभोक्ता शिकायतें लंबित रहीं।
प्रदेश के 13 जिला उपभोक्ता आयोगों में 2024 में 682 केस दर्ज हुए, लेकिन केवल 282 (41%) मामलों का ही निपटारा हो सका। वहीं, 3,985 उपभोक्ता केस अब भी लंबित हैं।
10 साल से अधिक पुराने मामले भी लंबित
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य आयोग में लंबित 62 उपभोक्ता मामलों में से:
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9 केस 10 साल से अधिक समय से फैसले के इंतजार में हैं।
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18 केस 10 साल पुराने हैं।
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28 केस 7 साल पुराने हैं।
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1 केस 5 साल पुराना है।
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2 केस 2 साल पुराने हैं।
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3 केस 6 माह से 1 साल पुराने हैं।
प्रथम अपीलों की स्थिति भी चिंताजनक है। 844 लंबित अपीलों में से:
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35 10 साल से अधिक पुरानी हैं।
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106 10 साल पुरानी हैं।
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253 7 साल पुरानी हैं।
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161 5 साल पुरानी हैं।
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194 3 साल पुरानी हैं।
वर्षों में लगातार गिरती केस फाइलिंग
राज्य आयोग में दर्ज उपभोक्ता मामलों की संख्या लगातार घट रही है:
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2016 – 292 केस
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2017 – 169 केस
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2018 – 292 केस
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2019 – 468 केस
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2020 – 170 केस
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2021 – 205 केस
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2022 – 322 केस
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2023 – 116 केस
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2024 – सिर्फ 29 केस
जिला उपभोक्ता आयोगों में भी यही प्रवृत्ति देखी गई:
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2016 – 1,462 केस
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2017 – 1,086 केस
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2018 – 1,185 केस
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2019 – 1,365 केस
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2020 – 1,529 केस
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2021 – 1,434 केस
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2022 – 1,859 केस
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2023 – 970 केस
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2024 – सिर्फ 682 केस
न्याय में देरी से उपभोक्ताओं का विश्वास घटा
माकाक्स उपभोक्ता संस्था के केंद्रीय अध्यक्ष एवं सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट ने बताया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत सभी उपभोक्ता मामलों का निपटारा 3 माह के भीतर, जबकि प्रयोगशाला परीक्षण वाले मामलों का निपटारा 5 माह में किया जाना अनिवार्य है। लेकिन, उत्तराखंड में हजारों केस वर्षों से लंबित हैं, जिससे उपभोक्ताओं का विश्वास डगमगा गया है।
उन्होंने यह भी बताया कि अधिकतर फैसले उपभोक्ता के पक्ष में न जाकर कंपनियों और विपक्षी पक्षकारों के हित में होते हैं, जिससे उपभोक्ताओं का शोषण बढ़ रहा है। यही कारण है कि अब लोग उपभोक्ता आयोगों की शरण लेने से बच रहे हैं।
राष्ट्रीय और राज्य आयोगों को जल्द कदम उठाने की जरूरत
नदीम उद्दीन एडवोकेट ने राष्ट्रीय और राज्य उपभोक्ता आयोगों से अनुरोध किया है कि वे अपनी अधीक्षण शक्तियों का प्रयोग कर उपभोक्ताओं को शीघ्र न्याय दिलाने के लिए सख्त कदम उठाएं। इसके लिए माकाक्स उपभोक्ता संस्था भी राष्ट्रीय और राज्य आयोगों से जल्द हस्तक्षेप की मांग करेगी।