उत्तरकाशी। जहां इस वैश्विक आपदा में हर कोई कुछ न कुछ प्रयास कर रहा है, वहीं आपदा प्रबंधन जन मंच उत्तरकाशी के सहयोगी संगठन जाड़ी संस्थान, रिलायंस फाउंडेशन, रेणुका समिति, भुनेश्वरी महिला आश्रम द्वारा भी समाज में निरंतर जागरूकता, जरूरतमंदों को राशन, सरकार के साथ गांव स्तर के मुद्दों की पैरवी का कार्य किया जा रहा है।
इस क्रम में इन सहयोगी संगठनों द्वारा एक अभिनव प्रयोग किया गया, जिसमे गांव मेें रबी के सीजन में तैयार मटर को बाजार के साथ जोड़ने का था, ताकि उपभोक्ताओं को ताजी सब्जी की उपलब्धता हो और साथ ही किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य प्राप्त हो सके। रणनीति बनाई गई और संगठन के सदस्यों ने खेत से लेेकर उपभोक्ता तक पहुंचने की योजना पर तुरंत कार्य शुरु किया।
इस प्रक्रिया के तीन प्रमुख पहलू रहे, जिसमें साथी संगठनों ने मिल कर कार्य किया-
1 किसानों के साथ संवाद और उनको ये भरोसा कि हम इस कठिन घड़ी मेें आपको मदद करेंगे
2 प्रशासन के साथ तालमेल बैठा कर गाड़ी की परमिशन और स्टोरेज की व्यवस्था करना
3 संस्थागत प्रक्रिया से बाजारीकरण की संभावनाओं को तलाशना, ताकि बाजार में भीड़ का दबाव कम हो सके और उपभोक्ता को उसके घर पर ही ताजी सब्जी की उपलब्धता हो सके।
मुख्य विकास अधिकारी, निम, आईटीबीपी, कलेक्टरेट, व्यापार मंडल एवम् सब्जी मंडी आदि में संपर्क किया गया। परिणाम स्वरूप एक गांव से शुरु हुए इस प्रयोग में आज डूंडा ब्लॉक के 10 गांव के लगभग 55 किसान जुड़ चुके हैं और लगभग 50 कुंतल मटर एवम् 10 कुंतल आलू का बाजारीकरण किया जा चुका है। चूंकि ये आपदा के समय एक मॉडल की टेस्टिंग है।इसका उद्देश्य किसी भी रूप में लाभ कमाना नहीं है, अतः यह भी तय किया गया कि गाड़ी भाड़ा, लेबर, पैकेजिंग मटेरियल आदि के खर्चे काट कर जो भी धनराशि बचेगी, उसे सहकारिता के माध्यम से किसानों के खाते मेें हस्तांतरित कर दिया जाएगा। किसानों ने बताया कि इस मुसीबत के समय ये धनराशि उनके लिए बहुत मददगार साबित होगी।
संगठन के अध्यक्ष द्वारिका सेमवाल ने बताया कि अभी हम इस प्रयास को तब तक जारी रखेंगे, जब तक किसानों की समस्त बाजार योग्य फसल की बिक्री न हो जाए।
रिलायंस फाउंडेशन के कमलेश गुरुरानी कहते हैं कि खेती हमारी आर्थिकी की रीढ़ है और इस कठिन समय में किसानों के लिए हमारे द्वारा किए जा रहे प्रयास निश्चित रूप में उनके लिए मददगार साबित होंगे।
रेणुका समिति के संदीप उनियाल ने बताया कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि किसान को हम सब खर्चे काट कर 28 से 30 रुपया प्रति किलो उनके घर मेें देने में सफल होंगे।
इस मॉडल का एक दूसरा पहलू ये भी रहा कि जो मटर की फसल बाजार मेें 60 प्रति किलो जा रही थी, उसको भी 40 रुपया प्रति किलो में नियंत्रित करने में कुछ हद तक मदद मिली।
चूंकि यह प्रयोग यह प्रयोग किया जा रहा था कि क्या ऐसे मॉडल भी ऐसी आपदाओं में मदद कर सकते है? लेकिन आज हम कह सकते है कि हां शायद ऐसे मॉडलों पर इस समय काम करने की आवश्यक्ता है।