रिपोर्ट /नमन चंदोला
आपने पिछले लंबे समय से व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्टों को 5G पर भ्रामक जानकारी शेयर करते देखा होगा। आइए आज जानते हैं आखिर क्या है यह 5G और क्यों 5G को लेकर इतना विवाद हो रहा है।
5G यानी 5th generation 2018 में बहुत सी टेलीकॉम कंपनियां 5Gप्लान को अपनाने के लिए आगे आईं।
लेकिन इन सब बातों के पीछे एक संशय और चिंता का सबब यह भी था कि इस तकनीक के आने से ब्रेन कैंसर और ट्यूमर के चांस बढ़ जाएंगे, क्योंकि 5G काफी ज्यादा फ्रिक्शन जनरेट करती है और यह तकनीक अभी प्रचलन में भी नहीं है।
तो आइए सबसे पहले जानने की कोशिश करते हैं कि क्या है 5G ?
5G के संबंध में जो थ्योरी दी गई हैं उसके अनुसार यह तकनीक 4G की तुलना में 10-100 गुना स्पीड तक मुहैया कराती है।क्योंकि 5G, 3G और 4G की तुलना में higher frequency waves का इस्तेमाल करती है।
5G उसी समय में ज्यादा यंत्रों को इंटरनेट की पहुंच तक बढ़ाता है लेकिन 3G और 4G से faster speed में।और 4G टावर्स जोकि सिग्नल को 360 डिग्री एंगल में प्रोवाइड कराते हैं।5G एंटीना 4G नेटवर्क की तुलना में दिशात्मक होता है।अर्थात 4G की तरह 5G 360 डिग्री एंगल में सिगनल्स प्रोवाइड नहीं कराता, बल्कि यह दिशात्मक होने के साथ क्षेत्र में मौजूद अन्य संकेतों के साथ कम हस्तक्षेप करता है।
यह कम विलंबता दर भी प्रदान करता है। इसके साथ हम डिवाइस के बीच वास्तविक समय प्रतिक्रिया को करीब देखने की उम्मीद कर सकते हैं ,जिसे 1- मिलीसेकंड विलंबता पर टाल दिया जाता है जबकि 4G, 50 – मिली सेंकेड पर स्टेंड करता है।
इसके अतिरिक्त 4G की तुलना में इसमें अधिक घुमाव मौजूद होता है। जिससे आप अन्य नेटवर्कों की तुलना में ज्यादा डिवाइसों को इससे कनेक्ट कर सकते हैं ( जैसे कि router)।
क्या 5G मनुष्य और पर्यावरण केे लिए सुरक्षित है?
मुद्दा जो 5G के साथ उठा वह है इसकी extremely high frequency (अत्यंत उच्च आवृत्ति) जो कि 30 Ghz से 300 Ghz के बीच स्थित है।क्योंकि Higher frequency के कारण waves विशाल दूरी तय नहीं कर सकते इसलिए इसके एंटीना नजदीक लगाए जाते हैं ताकि साफ और सही नेटवर्क स्पीड ग्रहण की जा सके। इसमें लगने वाले एंटीना जरुरत से ज्यादा लगेंगे। शायद उस से भी ज्यादा जिसकी हमने कल्पना ना कि हो।
अब सवाल यह है कि, क्या इतनी ज्यादा तादात में लगने वाले ये एंटीना क्या हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकर हैं?
वायरलेस कंपनियां यहां तक कि गवर्नमेंट एजेंसियां जैसे centres for disease control and prevention
और The United States environmental protection एजेंसियों के अनुसार 5G से निकलने वाली रेडियो तरंगें सुरक्षित हैं।5G नेटवर्क microwaves और millimeter wavelength radiation का use करता है जो कि non- ionizing मानी जाती है।यह ऐसी कोई भी ऊर्जा उत्पन्न नहीं करती जिससे हमारी cells को सीधे नुकसान पहुंचे।
ionizing radiation खतरनाक होती है यह परमाणुओं को भी अलग कर सकती है और यह cells को नुकसान पहुंचाने और कैंसर जैसे जानलेवा रोग का कारण भी बन सकती है।
हालांकि विश्व के विभिन्न देशों के 215 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने युनाइटेड नेशन्स से अपील की है कि, तुरंत विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के फैलाव को कम करें जो कि वायरलेस स्रोतों से उत्सर्जित है,चाहे वह non ionizing ही क्यों न हो।
इन वैज्ञानिकों द्वारा एक पत्र FCC (federal communications commission) को भी लिखा गया है जिसमें मुख्यत: कहा गया है कि, 5G नेटवर्क को विकसित करने से पहले स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा का ध्यान रखा जाए।और ऐसा करने वाले वे ही नहीं थे बेल्जियम सरकार ने ब्रसेल्स में 5G टेस्ट विकिरण चिंतन के बाद रोक दिए।
नीदरलैंड के मेंबर्स ऑफ पार्लियामेंट ने सरकार से 5G टेस्ट की जांच करने को कहा है।जबकि स्विट्जरलैंड मनुष्यों पर 5G के असर पर नजर बनाए हुए हैं।इन सब के बावजूद FCC को चिंता का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है।
हालाँकि संस्था (FCC) यह सुनिश्चित कर रही है कि इस नवीन प्रौद्योगिकी को जल्द से जल्द लागू किया जाए।इस बीच पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने 5G को एक ऐसी दौड़ घोषित कर दिया था जिसे उनके अनुसार जीतना ही होगा।
तो इन सब का परिणाम क्या है?कौन सही है और कौन गलत है?
हालांकि 5G में आयनकारी विकिरण नहीं होता है फिर भी कुछ विशेषज्ञों को संदेह है कि इस तकनीक से विकिरण कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव तनाव के माध्यम से कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा जा सकता है।
यह जैविक तंत्र प्रदाह की ओर ले जाता है और कैंसर, मधुमेह और अन्य बीमारी का कारण माना जाता है। लेकिन इन सबकि अभी तक कोई प्रमाणिकता नहीं है।
हालांकि पहले की तुलना में 5G तकनीक सुरक्षित लगती है लेकिन यह जानने के लिए भी निश्चित रूप से पर्याप्त डेटा नहीं है?अगर आप चिंतित हैं कि यह मानव शरीर के लिए हानिकर हैं तो आप इसके खिलाफ कोर्ट में पेटीशन डाल सकते हैं।
हाल ही में फिल्म अभिनेत्री जुही चावला ने भी एक ऐसी पेटीशन डाली थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इससे आप समझ सकते हैं कि अफवाहों का कोई आधार नहीं है।
हालांकि हम अभी और बारीकी से जानकारी जुटाएंगे ।किसी नई तकनीक को अपनाने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हमें व्यावहारिक निर्णय लेने चाहिए।जैसा कि आप जानते ही हैं कि कुछ लोगों ने कोरोना को अफवाह बताया है और कहा है कि 5G तकनीक की वजह से यह सब कुछ हो रहा है या कोरोना इस तकनीक की वजह से आया है।
तो उन लोगों से सवाल है कि अगर सबकुछ 5G तकनीक से हो रहा है तो फिर अफ्रीका के बहुत से देश जहां 2G तकनीक भी सही से नहीं है (जैसे कोंगो रिपब्लिक) वहां कोरोना कैसे पहुंचा?या वहां हालात क्यों खराब हुए?
वर्डहेल्थऑर्गेनाइजेशन ने भी स्पष्ट किया है कि,कोई भी वाइरस रेडियो वेव्स और मोबाइल नेटवर्क से होकर नहीं गुजर सकता।अमेरिकन नेशनल बायोलोजिकल सेंटर के अनुसार दो तरह के दावे अधिक मात्रा में हुए हैं।
1- पहला दावा है कि 5G शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को घटा सकती है और इस प्रकार यह लोगों को वायरस को पकड़ने के लिए अधिक संवेदनशील बनाता है।
2- दूसरा दावा है कि वायरस किसी तरह 5G तकनीक के उपयोग के माध्यम से संचारित किया जा सकता है।
इन दोनों दावों का जवाब देते हुए डाक्टर साइमन क्लार्क (associate professor in cellular microbiology at the university of reading) कहते हैं कि दोनों ही कथन पूरी तरह बकवास हैं।
वे कहते हैं कि रेडियो तरंगें छोटी हैं और वे इतनी मजबूत नहीं हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकें।
5G और मोबाइल फोन में प्रयुक्त रेडियो तरंगें कम आवृत्ति और विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम की हैं जो कि हमें दिखने वाली रोशनी से कम शक्तिशाली हैं ये तरंगें मानव शरीर के सेल्स को डेमेज करने के लिए प्रयाप्त शक्तिशाली नहीं हैं।इससे अधिक आवृत्ति और स्पेक्ट्रम सूर्य की किरणों और चिकित्सा सहायक उपकरण में होता है (जैसे एक्स-रे)।
एडेन फिन्न (professor of paediatrics at the University of Bristol) के अनुसार यह पूर्ण तरह से असंभव है कि 5G से वाइरस संचारित हो।
फिन्न के अनुसार वाइरस और विद्युत चुंबकीय तरंगें जो कि मोबाइल फोन और इंटरनेट कनेक्शन को जोड़ती हैं दोनों अलग अलग चीजें हैं।
मोबाइल फोन रेडियो फ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड (RF EMF), ट्रांसमिट और रिसीव करता है।और जो 5G को 4G से तेज बतलाता है वह है बीम फोर्मिंग तकनीक जो अलग-अलग उपयोगकर्ता को बिना किसी हस्तक्षेप के रेडियो फ्रीक्वेंसी इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड (RF EMF) आवृत्तियां मुहैया कराता है।
5G वर्तमान में उपयोग की जाने वाली आवृत्तियों के अतिरिक्त उच्च EMF आवृत्तियों (जो कि 24GHz से अधिक है) का उपयोग करता है।इन सब से पता चलता है कि कोई भी प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव वायरलेस तकनीक के संपर्क से आकस्मिक रूप से जुड़ा नहीं है।
एक तथ्य जो इस पूरी जांच में सही साबित हुआ वह है ऊतकों का गर्म होना।ऊतकों का गर्म होना रेडियो आवृत्ति क्षेत्रों और मानव शरीर के बीच संपर्क का मुख्य तंत्र है।वर्तमान 5G तकनीक में प्रयुक्त रेडियो आवृत्ति तरंगें मानव शरीर के तापमान को नगण्य रुप से बढ़ाता है।
जैसे-जैसे आवृत्ति बढ़ती है शरीर के ऊतकों में कम प्रवेश होता है और ऊर्जा का अवशोषण शरीर की सतह तक सीमित हो जाता है (मुख्य रुप से त्वचा और आंख)।इससे आपकी त्वचा में कुछ एलर्जी या आंखों का लाल होना दिख सकता है जो कि अल्प समय के लिए हो सकता है और हानिकारक नहीं है।
हां यह बात जरूर है कि अगर यह पूर्ण एक्सपोजर अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों से नीचे रहे तो इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए कोई परेशानी उत्पन्न नहीं होगी।इसलिए यह आश्वस्त होकर कहा जा सकता है कि, यह विकास है ना कि विनाश।