राजकुमार परिहार
दरअसल उत्तराखंड जैसे छोटे और पहाड़ी राज्य में फिलहाल कोई भी सख्त भू कानून लागू नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि यहां आकर कोई भी कितनी भी जमीन अपने नाम से खरीद सकता है। पहाड़ी राज्यों में सस्ते दामों पर जमीन खरीदकर उसे बाहरी लोग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। लोगों का आरोप है कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बाहरी हस्तक्षेप से यहां की संस्कृति को बड़ा खतरा है। इसीलिए अब एक सख्त भू कानून की मांग छिड़ गई है।
आज उत्तराखंड के लोगों की मांग है कि उन्हें हिमाचल जैसा भू कानून चाहिए। हिमाचल प्रदेश में एक सख्त भू कानून है, यहां गैर हिमाचली जमीन नहीं खरीद सकता है। यानी बाहरी लोगों की घुसपैठ पर पूरी तरह से रोक है।
उत्तराखंड में पिछले 21 साल से कोई भी भू कानून लागू नहीं है? जी नहीं, उत्तराखंड का जब गठन हुआ था तो यहां भू कानून भी लागू था, हालांकि ये इतना सख्त नहीं था। राज्य बनने के बाद पहले दो साल तक बाहरी लोग यहां 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे। लेकिन जब 2007 में भुवन चंद्र खंडूरी सीएम बने तो उन्होंने इसे घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया, इस फैसले का लोगों ने स्वागत किया।
उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता के बीच कई ऐसे मुद्दे हैं, जो कभी ठीक से सामने नहीं आ पाते हैं। इनमें पलायन, स्वास्थ्य व्यवस्थाएं और बदहाल शिक्षा व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दे शामिल हैं। लेकिन इस बार चुनाव से ठीक पहले एक और मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है और इसे उठाने वाले नेता नहीं बल्कि उत्तराखंड के हजारों-लाखों युवा हैं। ये मुद्दा है भू कानून का, युवाओं की मांग है कि उत्तराखंड में एक सख्त भू कानून जल्द से जल्द लागू किया जाए।
संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र को विशेष क्षेत्र के रूप में अधिसूचित (Special Notified Area)किया जाना आज समय की मांग है। समुदाय विशेष के धर्म स्थलों के निर्माण / स्थापना पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ-साथ संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र में भूमि के क्रय-विक्रय के लिए विशेष प्राविधान आवश्यक है। भू-कानून के साथ-साथ भूमि कानूनों में सुधार, चकबंदी आदि जैसे विषयों पर भी ठोस उपाय किए जाने आवश्यक है। इस हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाए जो इस संबंध में विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर नए कानून के प्रारूप को तैयार कर सके।
किसी भी प्रदेश के निर्माण के पीछे उसके इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, भाषा आदि के सरंक्षण की भावना छिपी होती है। अगर ये तत्व गायब हो जाएं तो वो प्रदेश आत्माविहीन माना जाएगा। लिहाजा, प्रदेश के भौतिक विकास के साथ-साथ इन सबके सरंक्षण की भी आवश्यकता है। वर्तमान में सोशल मीडिया में #उत्तराखंडमांगेभू_कानून व #uk_needs_landlaw हैशटैग के साथ युवाओं द्वारा एक व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के पीछे यही मूल भावना छिपी हुई है।
यह सुखद आश्चर्य की बात है कि उत्तराखंड में भू -कानून जैसे गंभीर विषय पर युवाओं द्वारा अभियान शुरू किया गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि उत्तराखंड की युवा पीढ़ी भू-कानून को लेकर संवेदनशील है और वो अपनी जड़ों को बचाने के लिए पूरी तरह से जागरूक हैं। युवाशक्ति देवभूमि की सभ्यता, संस्कृति, परंपरा व इतिहास के सरंक्षण के लिए चिंतित है। निःसंदेह युवाशक्ति की इस सक्रियता का परिणाम सुखद ही होगा।
लेकिन अपने कई गलत फैसलों के चलते सीएम की कुर्सी गंवाने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अध्यादेश लाकर इस कानून को लगभग पूरी तरह से खत्म करने का काम किया। यानी उत्तराखंड में जमीन खरीदने की सीमा को ही खत्म कर दिया गया। बीजेपी सरकार के इसी फैसले का अब विरोध शुरू हो चुका है, जिसका हर उत्तराखंडी को विरोध करना चाहिए।