कभी यमुना नदी और इस घाटी में पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास का समय बिताया तो कभी इसके तट पर उत्तर भारत का सबसे बड़ा व ऐतिहासिक शहर हरीपुर हुआ करता था
प्रेम पंचोली
सरकारों को सिर्फ गंगा ही दिखाई देती है। इस सरकारी पक्षपात को यमुनाघाटी के लोग ‘नमामि यमुने’ के नाम से दूर करने का प्रयास करेंगे। इसलिए बाकायदा ‘यमुना सेवा समिति’ का गठन भी कर दिया गया है।
मकर सक्रांति के अवसर पर यमुना के तट पर हरीपुर स्थित में जौनसार क्षेत्र के लोगों ने ‘महायज्ञ’ का आयोजन किया। तय किया गया कि अगले वर्ष तक यहीं पर यमुना जी की विशाल मूर्ती स्थापित की जायेगी। हरबर्टपुर से यमुनोत्री तक के सभी घाटों का सौन्दर्यकरण स्थानीय लोगों की सहभागिता से आरम्भ कर दिया जायेगा।
ज्ञात हो कि अन्य नदियों के जैसा यमुना नदी का भी अपना इतिहास रहा है। कभी इसी यमुना नदी और इस घाटी में पाण्डवो ने अपना अज्ञातवास का समय बिताया तो कभी इसी यमुना नदी के तट पर उत्तर भारत का सबसे बड़ा व ऐतिहासिक शहर हरीपुर हुआ करता था। जो 1059 में बिन्दुसार बांध के टूटने पर समाप्त हो गया। आज भी उसके अवशेष हरीपुर से लेकर कालसी तक के 10-20 किमी के दायरे में नव निर्माण के दौरान लोगो को मिल जाते हैं। इस बात का जिक्र महाभारत में पढऩे को मिलता है। यही नहीं सम्राट अशोक से लेकर ह्वेनसांग ने भी इसी जगह पर यमुना नदी के तट पर कालसी-हरीपुर आदि क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया। इस यमुना क्षेत्र में लोगों ने कई उतार-चढाव देखे। पाण्डव का अज्ञातवास को देखा तो राजा विराट का शासनकाल भी। यही नहीं इस क्षेत्र में कई बार दैत्यों और देवताओं के युद्ध ने इस क्षेत्र को इतिहास में समेटा। जिसका उदाहरण मौजूदा वक्त में इस क्षेत्र के आराध्य देव ‘महासू देवता’ हैं। महासू देवता की पूजा संपूर्ण यमुना घाटी में होती है। महासू देवता के मंदिर भी यमुना और टौस नदी के ही किनारे पर विद्यमान हैं। यमुना के पानी का ही महत्व है कि यमुनाघाटी में जितने भी तीर्थ स्थल हैं, वे सभी ऐतिहासिक रूप से ही स्थापित हैं। कहीं पर भी आज तक कोई अतिक्रमण स्थानीय लोगों द्वारा इन स्थलों पर नहीं किया गया है, बजाय इनके मार्फत लोगों ने इन सभी जल धाराओं के संरक्षण का काम किया है। भले आज यमुना और टौंस नदी पर एक दर्जन से अधिक जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित है, दो परियोजनाएं निर्माणाधीन है, परंतु आस्था का तिलिस्म इस कदर है कि लखवाड़ बांध को 32 वर्ष पूर्व ही निर्माण पर रोक लगानी पड़ी।
कुल मिलाकर लोक सहभागिता की यह ‘नमामी यमुने’ योजना कब इस नये विकासीय मॉडल पर सवाल खड़ा कर दे, यह समय की गर्त में है। इस संकल्प के साथ लोगों ने कहा कि वे यमुनोत्री से लेकर हरबर्टपुर तक लगभग 180 किमी. के दायरे में यमुना नदी पर सभी धार्मिक स्थलों का सुदृढ़ीकरण लोक आस्था के अनुरूप करेंगे।
उल्लेखनीय हो कि कालिन्दी पर्वत से निकलने वाली धारायें अलग-अलग विभक्त होकर विकासनगर, डाकपत्थर यानि हरीपुर के पास में सभी संगम बनाती है। कालिन्दी पर्वत से यमुना की एक जल धारा जो आगे चलकर यमुनोत्री में विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात होती है। वहीं इसी पर्वत से दो धारायें और निकलकर जो तिब्बत होते हुए हिमाचल के किन्नौर और डोडरा-क्वांर क्षेत्र से गुजरती हुई बाद में उत्तराखंड की सरहद पर रुपिन, सुपिन नाम से बहती है, जो उत्तरकाशी के नैटवाड़ में संगम बनाती है। इसके बाद इस नदी को टौंस के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इन्हीं नदियों की एक सहायक नदी है, जिसे हिमाचल के किन्नौर क्षेत्र में ‘गिरी गंगा’ के नाम से जानते हैं। बाद में यह नदी जब उत्तराखंड की सरहद पर पंहुचती है तो लोग इसे पाभर नदी के नाम से कहते हैं, जो टौंस नदी में संगम बनाती हुई यही डाकपत्थर कालसी में यमुना नदी से संगम बनाती है।
दिलचस्प यह है कि जहां-जहां से कालिन्दी पर्वत से निकलनी वाली धारायें बहती है, चाहे वे अनेकों प्रकार के नाम से क्यों न जानी जाती हो, मगर इसके बहाव क्षेत्र के लोगों की संस्कृति एक समान है। इस क्षेत्र में मरोज नाम का एक त्यौहार होता है, जो प्रत्येक वर्ष के जनवरी माह के पहले सप्ताह में संपन्न होता है। इस दिन लोग अपने-अपने घरो में बकरों को काटते हंै और उस बकरे के मांस को काट-काटकर सूखने के लिए घरो में टांग देते हैं। बाद में उनके घर-पर आने वाले मेहमानों को इस सूखे हुए मांस को अच्छे से पकाकर परोसते हैं। यह त्यौहार हिमांचल के किनौर, लाहुल-स्पीती, उत्तराखण्ड की सम्पूर्ण यमुनाघाटी मनाती है। तात्पर्य यह है कि कालिन्दी पर्वत से निकलनी वाली धारायें जहां-जहां बहती है वहां-वहां की संस्कृति एक समान है। यहां के गीत, नृत्य भी कमोवेश एक जैसे ही है। भले नाम अलग-अलग हो सकते हैं। यमुना की धारा का महत्व है कि आज भी इस क्षेत्र में लोगो में परस्पर सौहार्द के मजबूत संबंध दिखाई देते हैं।
- अगर आस्था को लोगों ने महत्व दे दिया तो यमुना नदी पर प्रस्तावित और निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं पर पड़ेगा असर।
- इस पहल से नदी संरक्षण के सरकारी दावे की खुलेगी पोल।
- इस महायज्ञ के बहाने लामबंद होने लग गये हैं यमुनाघाटी के लोग।
- सह भी संकल्प लिया गया कि लोक आस्था पर ठेस पंहुची तो होगा जन आन्दोलन।
- यमुना सेवा समिति यमुनाघाटी में गांव-गांव बनाने लग गयी है समितियां।
- यमुना नदी के आस-पास 500 से अधिक गांव हैं हरबर्टपुर से यमनोत्री तक।
- हरबर्टपुर से यमुनोत्री महज 180 किमी. है।