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आबकारी में खाता न बही

July 2, 2017
in पर्वतजन
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आयुक्त तथा अन्य उच्चाधिकारियों को मासिक रिपोर्ट करना आवश्यक नहीं समझते
आबकारी निरीक्षक तथा जिला आबकारी अधिकारी

प्रमोद डोभाल

आबकारी विभाग में ऐसा लगता है कि अधिकारी भी किसी नीम मदहोशी में रहते हैं। आबकारी विभाग के विभिन्न मैनुअल में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार काम करना या तो उन्हें आता नहीं या फिर वे करना नहीं चाहते। उत्तरांचल एक्साइज मैनुअल वोल्यूम 1 पेज ४९० के पैरा नंबर ३ में यह साफ लिखा है कि सहायक आयुक्त कमिश्नर प्रत्येक माह के ७ तारीख से पहले एक रिपोर्ट आबकारी आयुक्त को सौंपेगा। जिसमें प्रत्येक एक्साइज इंस्पेक्टर द्वारा पिछले माह किए गए कार्यों का पूरा ब्यौरा होगा। मैनुअल में लिखा है कि यह रिपोर्ट सहायक आबकारी आयुक्त अपनी टिप्पणी के साथ आबकारी कमिश्नर को सौंपेगा।
इस संवाददाता ने जब आबकारी आयुक्त कार्यालय से उक्त रिपोर्टों तथा सहायक आबकारी आयुक्त द्वारा की गई टिप्पणियों की छायाप्रति आरटीआई में लेनी चाही तो पता चला कि अधिकांश जिला आबकारी अधिकारियों को इसकी जानकारी ही नहीं है कि उनके यहां ऐसा कोई मैनुअल भी है।
देहरादून के जिला आबकारी अधिकारी मनोज कुमार उपाध्याय ने तो ऐसी कोई जानकारी होने से ही इंकार कर दिया, जबकि चंपावत की जिला आबकारी अधिकारी दीपाली शाह ने यह कहते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया कि ये सूचनाएं देहरादून के आबकारी आयुक्त कार्यालय से ही मिल सकती हैं।
यही हाल नैनीताल, ऊधमसिंहनगर, बागेश्वर से लेकर टिहरी और चमोली के जिला आबकारी कार्यालयों का भी है। पौड़ी के जिला आबकारी अधिकारी ने यह तो स्वीकार किया कि उनके जिले से यह रिपोर्ट नियमित रूप से प्रेषित की जाती है, किंतु रिपोर्ट क्या भेजी जाती है, इसका पता नहीं लग सका।
मैनुअल के अनुसार कार्य न करने से आबकारी विभाग पर सवाल तो खड़े होते ही हैं। आबकारी विभाग राजस्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण विभाग है। ऐसे में लापरवाह कार्यशैली से सरकार को राजस्व का चूना लगना स्वाभाविक है। तिमाही भेजे जाने वाली यह रिपोर्ट यदि उच्चाधिकारियों तक नहीं पहुंचेगी तो जिले स्तर पर कई सेक्टरों में बंटे आबकारी विभाग की सटीक समीक्षा मुमकिन नहीं है। ऐसे में जिलों में आबकारी विभाग की प्रगति पर इसका असर पडऩा लाजिमी है।
रिपोर्ट भेजने में ही नहीं, बल्कि अवैध शराब की रोकथाम करने में ही यह विभाग अपने आप को ही लाचार महसूस करता है। आबकारी इंस्पेक्टरों को जो हथियार मुहैया कराए जाते हैं, उन्हें चलाने के लिए पूरी टे्रनिंग भी नहीं दी जाती। ऐसे में शराब तस्करों में आबकारी इंस्पेक्टरों का कितना खौफ होगा, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।


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