जगदम्बा कोठारी
रूद्रप्रयाग एक तरफ जहां सरकार इस लोकसभा चुनाव मे विकास के नाम पर वोट मांग रही है वहीं दूसरी तरफ विनाश के मुहाने पर खड़े इस गांव के ग्रामिणों ने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार कर मतदान करने से इनकार कर दिया है।
2007 से लगातार आपदा और भूस्खलन की मार झेल रहे जनपद के जखोली विकासखंड के पांजणा गांव ने इस बार लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला लिया है। वर्ष 2007 फिर 2012 और जून 2013 की आपदा मे गांव मे भीषण तबाही मची थी,जिसके बाद गांव की सैकडों नाली कृषि भूमी बाढ़़ मे बह गयी थी और भू धसाव के चलते गांव के सभी मकानों मे चौड़ी दरारें पड़ गयी थी जो कि तब से अब तक रहने योग्य नहीं हैं।
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आपदा के बाद प्रशासन ने गांव का दो बार भौगोलिक सर्वे करवाया। सर्वे की रिपोर्ट मे सामने आया कि पूरा गांव ही रहने योग्य नहीं है, तब प्रशासन ने गांव के सभी 148 परिवारों को विस्थापन की सूची मे रखा।लेकिन ग्रामिणों मे इस बात को लेकर रोष है कि 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार 148 मे से महज 16 परिवारों का ही विस्थापन कर सकी है शेष 132 परिवार आज भी मौत के साये मे जीने को मजबूर हैं।
ग्राम प्रधान पांजणा त्रीलोक सिंह रौंतेला ने बताया कि लगातार पिछले बारह सालों से पूर्व विधायक मातबर सिंह कण्डारी, हरक सिंह रावत समेत वर्तमान विधायक भरत चौधरी को कई लिखित पत्राचार कर विस्थापन की मांग की गयी है लेकिन आश्वासन के सिवा कोई कार्यवाही नहीं हुयी, मजबूरन गांव के सभी 148 परिवारों के 480 मतदाताओं ने सभी राजनीतिक दलों सहित लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का फैसला लिया है।
यहां बता दें कि पांजणा गांव दैवीय आपदा प्रभावित उत्तराखंड के पहले नम्बर का गांव है जहां पूरे गांव के 148 परिवारों का विस्थापन होना है।