कृष्णा बिष्ट
‘मैं भी चौकीदार मुहिम में जहां देशभर से अब तक करीब 25 करोड़ लोग जुड़ चुके हैं, वहीं उत्तराखंड में एक चौकीदार ऐसा भी है, जिसे हताश होकर देहरादून के परेड ग्राउंड में धरने पर बैठना पड़ रहा है।
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दरअसल राजकीय संरक्षण गृह महिला अल्मोड़ा में प्रेमराम एक मई 2013 से संविदा कर्मचारी के रूप में अनुसेवक के पद पर तैनात है। इससे पहले वह राजस्व विभाग, तहसील सोमेश्वर में पीआरडी जवान के रूप में कार्य कर चुका है, किंतु अपर सचिव मनोज चंद्रन के 21 जून 2017 के आदेश के बाद प्रेमराम की नौकरी खटाई में पड़ गई।
प्रेमराम की सेवाओं को देखते हुए जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं उत्तराखंड मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा राज्य के कार्यालय सचिव द्वारा भी नियमित नियुक्ति हेतु जिला स्तरीय अधिकारियों को निर्देशित किया जा चुका है।
यही नहीं राज्यमंत्री रेखा आर्य ने भी प्रेमराम को चौकीदार के पद पर नियमित नियुक्ति देने का आदेश देते हुए अपर सचिव मनोज चंद्रन का उक्त आदेश पूर्णतया निरस्त कराते हुए प्रेमराम को पुन: सेवा में बहाल करने को कहा है, लेकिन इन तमाम पत्रों पर आज तक कोई सुनवाई नहीं हो पाई है। मजबूरन प्रेमराम 6 मार्च 2019 से परेड ग्राउंड में धरना व आमरण अनशन पर बैठे हैं, किंतु उनकी कोई सुनने वाला नहीं है।
प्रेमराम का कहना है कि घर में उसकी बूढी मां बीमार है। यदि उसके साथ कोई घटना होती है तो इसके लिए निदेशक योगेंद्र यादव को जिम्मेदार माना जाएगा। प्रेमराम ने मांग की है कि न्यायहित में उन्हें शीघ्र चौकीदार के पद पर नियमित नियुक्ति दी जानी चाहिए। प्रेमराम कहते हैं कि मोदी जी भी कहते हैं कि मैं चौकीदार हूं, लेकिन मेरी यह समझ में नहीं आ रहा है कि दस वर्षों तक सेवा करने के बाद मेरा प्रमोशन होने के बजाय मुझे हटा दिया गया।
मेरी नौकरी के अब करीब दो वर्ष शेष रह गए हैं, ऐसे में असली चौकीदार का उत्पीड़न किया जाना कहां का न्याय है !
कुल मिलाकर उत्तराखंड के इस वास्तविक चौकीदार की यह आपबीती शौकिया तौर पर मोदी मुहिम से जुड़ रहे चौकीदारों को पता चलेगा तो संभव है कि उनका चौकीदार बनने का नशा हिरन हो सकता है।