उत्तराखंड भाजपा:
तीरथ सिंह रावत पार्टी में बढ़ता कद, अब किस के लिए चुनौती !
– भूपत सिंह बिष्ट
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत को हाल ही में लोकसभा चुनाव 2019 के तहत हिमाचल राज्य का प्रभारी नियुक्त किया है। काफी अर्से से तीरथ सिंह रावत अन्य नेताओं के साथ दायित्व की प्रतीक्षा सूची में थे। एक बार उड़ीसा राज्य की चर्चा भी चली और कई बार ऐसा लगा कि लाल बती देकर तीरथ को राज्य की राजनीति में वापस भेजा जा सकता है।
2017 के विधान सभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष रहने के बावजूद दलबदल कर आए सतपाल महाराज से अपना टिकट खोने पर तीरथ सिंह रावत की राजनीति को समाप्त समझने वाले आलोचक काफी मुखर रहे हैं। जबकि सरल, सौम्य और मृदुभाषी तीरथ सिंह रावत सक्रिय राजनीति में आने से पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तहसील प्रचारक रहे और विद्यार्थी परिषद में पूर्णकालिक होकर श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्र संघ अघ्यक्ष, एबीवीपी के राष्ट्रीय मंत्री के रुप में आज भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ सक्रिय टीम के सदस्य रहे। उमा भारती के साथ भाजपा युवा मोर्चे के मंत्री पद पर रहने के बाद ही एमएलसी सीट पर चुनाव लड़े और दिग्गज हरक सिंह रावत को पराजित कर उत्तर प्रदेश विधान परिषद में पहुंचे हैं।
55 वर्षीय तीरथ सिंह रावत नव निर्मित उत्तराखंड भाजपा संगठन में सभी महती दायित्व जैसे प्रदेश चुनाव प्रभारी, प्रदेश महामंत्री प्रदेश अध्यक्ष पदों पर आसीन रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश उच्च सदन में विधान परिषद के सदस्य, प्रदेश की पहली कार्यवाहक सरकार में शिक्षा, कारागार व निवार्चन मंत्री, अध्यक्ष, आपदा प्रबंधन से लेकर चौबटाखाल विधान सभा से निवर्तमान विधायक भी रह चुके हैं।
अमित शाह की टीम में त्रिवेंद्र रावत भी राष्ट्रीय सचिव के रुप में झारखंड राज्य के प्रभारी रह चुके हैं और इसी निकटता के चलते तमाम विरोधाभासों के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनाये गए। विगत पांच सालों में भाजपा की त्रिमूर्ती मुख्यमंत्री जनरल खंडूडी, भगत सिंह कोशियारी व रमेश पोखरियाल निशंक सांसद बनने के बावजूद केंद्रीय शासन में हाशिए पर रहे हैं। खंडूडी और कोशियारी 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए उदासीन बने हुए हैं और निशंक प्रदेशा राजनीति के दमदार खिलाड़ी बने हुए हैं।
त्रिवेंद्र रावत के लिए सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल राज्य निर्माण के पहले से कड़ी चुनौती का सबब रहे हैं और आज भले ही यह सब भाजपा में केंद्रीय नेताओं द्वारा शामिल कराये गए हैं लेकिन पुराने संघी विचारकों के लिए किरकिरी बने हुए हैं। येन, केन – प्रकरेण सत्ता हासिल करने के फार्मूले से कांग्रेसियों व अन्य दलों के चर्चित नेताओं को भाजपा में शामिल कराया गया था और अब यह माना जा रहा है कि घुटन महसूस करने पर ये लोग खुद ही किनारा कर लेंगे। हरक सिंह रावत के विधान सभा में स्व. नारायण दत तिवारी जी की स्मृति में दिये गए बयान का यही निहितार्थ निकाला जा रहा है।
राजनीति में वरिष्ठता क्रम में संगठन मंत्री के रुप में त्रिवेंद्र सिंह रावत अग्रणी हैं और तीरथ सिंह रावत उन के कनिष्ठ रहे हैं। धन सिंह रावत को विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक पद से भाजपा में प्रवेश कराने और आगे बढ़ाने का प्रारम्भिक श्रेय तीरथ सिंह रावत को है। लेकिन आज धन सिंह रावत तेजी से सर्वोच्च पद पर आसीन होने के लिए अपने केंद्रीय सम्पर्कों का आलम्बन पा चुके हैं।
टीम अमित शाह में शामिल तीरथ सिंह रावत को अब भाजपा में राष्ट्रीय पहचान मिल चुकी है। पिछले एक साल से जनरल खंडूडी की उदासीनता के चलते गढ़वाल लोकसभा सीट के लिए सक्रिय दावेदारी कर रहे तीरथ सिंह रावत अभी भी खुद को मैदान में मान रहे हैं। उत्तराखंड की विषम राजनीति में शोर्य डोभाल को पैराशूट और सुविधापरस्त नेता बताने वाले तीरथ सिंह रावत याद दिलाते हैं कि उनका एमएलसी चुनाव का दायरा अधिकांश गढ़वाल संसदीय क्षेत्र को कवर करता है और हरक सिंह रावत को हराकर वो अपना जनाधार और सम्पर्क साबित कर चुके हैं।
उत्तराखंड भाजपा में तीरथ सिंह रावत फिर से चर्चा में आ गए हैं और उनका कद फिलहाल प्रदेश से बाहर बढ़ रहा है। तीरथ का नाम अब उन नेताओं में शुमार हो चुका है जो प्रदेश में फिर से अपनी पारी धमाके से शुरु करने की कुव्वत रखते हैं। तीरथ सिंह रावत अब सुविज्ञ हैं कि उन का राजनीति से विदाई गीत लिखने में कौन से धड़े सक्रिय रहे और अब उन से कैसे निपटना है।