भूपेंद्र कुमार
-और आखिरकार देहरादून के जिला आबकारी अधिकारी मनोज को राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह ने ₹17000 जुर्माना लगा दिया है। जिला आबकारी अधिकारी मनोज उपाध्याय के कार्यालय में इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार में सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगा रहे दारू के ठेकेदारों से संबंधित सूचनाएं मांगी थी किंतु विडंबना देखिए कि शराब माफिया के संरक्षक बनते जा रहे मनोज उपाध्याय को जुर्माना देना मंजूर रहा लेकिन जनहित की सूचनाएं देना नहीं। आखिर सूचना भी देनी पड़ी और जुर्माना भी।
गौरतलब है कि 25 सितम्बर को राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह ने सिक्योरिटी जमा न करने वाले शराब की दुकानदारों के नामों की सूची देने के आदेश दिए थे तथा सूचना न देने पर प्रतिदिन के हिसाब से ढाई सौ जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी थी। साथ ही पूछा था कि आखिर जुर्माना क्यों ना लगाया जाए किंतु उपाध्याय कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।
आखिरकार उपाध्याय को सूचना देनी ही पड़ी,साथ ही जुर्माना भी। एक नवंबर को राज्य सूचना आयुक्त ने जिला अधिकारी को निर्देश दिए हैं कि यदि उपाध्याय जुर्माने का भुगतान नहीं करते तो इनके वेतन से जुर्माने की धनराशि काटकर राजकोष में जमा करा दी जाए।
बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसा कौन सा कारण है कि मनोज उपाध्याय सिक्योरिटी मनी जमा न कराने वाले दुकानदारों के नाम नहीं बताना चाहते थे !
इससे पहले भी यह सूचना न देने पर अपीलीय अधिकारी तथा जिला अधिकारी देहरादून ने 12 मार्च 2018 को मनोज उपाध्याय की इसी बात पर कड़ी भर्त्सना की थी और सख्त चेतावनी देते हुए सूचना उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे किंतु समय पर सूचना न मिलने के कारण यह संवाददाता राज्य सूचना आयुक्त की अदालत में चला गया था।
पाठकों को यह भी बता दें कि पिछले सत्र में कम राजस्व पर दुकानों का आवंटन करने और अन्य लापरवाही बरतने के कारण मनोज उपाध्याय को निलंबित भी किया जा चुका है और उन्हें चार्जशीट भी सौंपी गई है, इसके बावजूद मनोज उपाध्याय अपने पद पर टिके हुए हैं। ऐसे कई दुकानदार हैं जिन्होंने अभी तक भी सिक्योरिटी मनी जमा नहीं कराई है।
आखिर क्या कारण है कि एक अधिकारी चार्जशीट होने के बावजूद उसी पद पर तैनात है और जनहित की सूचनाएं देना भी उसे गवारा नहीं !
आखिर जीरो टोलरेंस की सरकार मनोज उपाध्याय के खिलाफ कोई कार्यवाही ना करके जीरो टोलरेंस का कौन सा अध्याय लिख रही है!