प्रोफेसर से पर्यावरणविद बने जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद का आज निधन हो गया। जीडी अग्रवाल विगत 112 दिनों से अनशनरत थे और कल ही जल त्यागने के बाद उन्हें प्रशासन ने स्वास्थ्य कारणों से एम्स में भर्ती करा दिया था। सानंद ने 22 जून को अपना आमरण अनशन शुरू किया था
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार प्रोफेसर जीडी अग्रवाल अनशन से उठना चाहते थे लेकिन उन्हें दबाव डालकर अनशन पर बिठाए रखा गया। यदि जीडी अग्रवाल के निकट संबंधी इस संबंध में आगे आते हैं तो मातृ सदन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
जीडी अग्रवाल मातृ सदन के स्वामी शिवानंद की प्रेरणा पर ही अनशन पर बैठे थे। इससे पहले स्वामी शिवानंद के शिष्य निगमानंद की भी अनशन पर रहने के दौरान मौत हो गई थी। इससे एक बड़ा प्रश्नचिन्ह स्वामी शिवानंद पर भी लगता है कि आखिर वह आमरण अनशन के लिए प्रेरित ही क्यों करते हैं और यदि वह कानूनन सही हैं तो कोर्ट से उन्हें कोई राहत क्यों नहीं मिलती !
इस तरह से मातृ सदन के दो-दो संतो की आमरण अनशन के दौरान मौत से यह सवाल भी खड़ा होता है कि यदि मातृ सदन की मांगें जायज हैं तो कोर्ट के रास्ते इसका हल क्यों नहीं निकलता ! अथवा सरकार और शासन प्रशासन इस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं करती ! और यदि अनशन का उनका यह तरीका गलत है तो मातृ सदन पर सरकार अथवा प्रशासन कोई कार्यवाही क्यों नहीं करता !
हरिद्वार में खनन लंबे समय से इस तरह के आंदोलनों का मुख्य मुद्दा बना हुआ है, किंतु दो-दो संतों की मौत के बाद इस बात पर बहस तेज हो गई है कि आखिर यदि अनशन ही एकमात्र रास्ता है तो मातृ सदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद खुद अनशन पर क्यों नहीं बैठते !
हालांकि शिवानंद ने जीडी अग्रवाल की मौत के लिए सरकार को दोषी ठहराया है।
उत्तराखंड सरकार के सामने एक बड़ी मुश्किल यह है कि यदि वह हरिद्वार में खनन बंद करती है तो सहारनपुर और बिजनौर से खनन सामग्री खरीदनी करनी पड़ेगी जो काफी महंगी बैठेगी और इसका फायदा उत्तर प्रदेश के खनन माफिया जमकर उठाएंगे।
यदि हरिद्वार की नदियों में खनन नहीं हुआ तो इन नदियों का जलस्तर शहर की आबादी क्षेत्र से भी ऊपर उठ सकता है जो की बाढ़ की संभावनाओं को जन्म दे सकता है।
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल कानपुर की उसी धरती के रहने वाले थे,जहां गंगा सर्वाधिक मैली है किंतु उन्होंने कानपुर में गंगा प्रदूषण पर सवाल उठाने के बजाय कभी उत्तरकाशी में गंगा नदी पर बांध बनाने का विरोध किया तो कभी हरिद्वार मे गंगा को लेकर अनशन पर बैठ गए, जबकि उत्तराखंड के बजाय गंगा का प्रदूषण कानपुर में ज्यादा प्रासंगिक मुद्दा है।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले उत्तरकाशी में जब स्वामी सानंद बांध के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठे थे तो केंद्र सरकार को कई निर्माणाधीन परियोजनाएं बंद करनी पड़ी थी इसका उत्तराखंड को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। बहरहाल देखना यह है कि गंगा के मुद्दे पर आंदोलन जारी रखने के लिए अब मातृ सदन किस चेहरे को अनशन के लिए आगे करता है।