मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत रिस्पना नदी के तट पर मिशन रिस्पना पुनर्जीवन अभियान के तहत एक ही दिन में दो लाख से अधिक पौधारोपण करने का गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड बनाने के दावे कर रहे हैं।
आज इसके लिए गड्ढे खोदे जाने का अभियान था। किंतु हकीकत यह है कि मौके पर मौजूद लगभग डेढ़ सौ स्वयंसेवियों के साथ मुख्यमंत्री ने गड्ढा खोदने की शुरुआत की। किंतु जैसे ही मुख्यमंत्री कार्यक्रम का श्रीगणेश करने के बाद रवाना हुए, उनके साथ आए ITBP के जवान तथा प्रशासनिक अमला भी वृक्षारोपण स्थल से चलता बना। आज कार्यक्रम के इस हश्र से लगता नहीं कि दो लाख पौधारोपण किए जाने का लक्ष्य पूरा भी हो पाएगा। ऐसे में आशंका है कि कहीं यह अभियान मात्र फोटो सेशन और जुमलेबाजी तक सीमित न रह जाए !
पर्वतजन ने अपने विश्लेषण में मुख्यमंत्री के इन दावों की पड़ताल की तो यह निष्कर्ष निकला कि यह अभियान एक बड़ी जुमलेबाजी से कम नहीं है।
इस अभियान को जुमलेबाजी कहने के कुछ ठोस आधार हैं।
जहाँ पेड़ लगेंगे वहीं रिवर फ्रंट का टेंडर
पहला तथ्य यह है कि रिस्पना नदी के किनारों पर जहां वृक्षारोपण कराने के लिए आज गड्ढे खोदे जा रहे हैं, वही जगह रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम के लिए चिन्हित और चयनित हो चुकी है।
जिस जगह पर पेड़ लगाए जा रहे हैं, नदी किनारे की उसी जगह को तैयार करके गरीबों के लिए आशियाने और कमर्शियल स्पेस तैयार करने की एमडीडीए ने योजना बना ली है। और इसके लिए “एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट” भी कॉल हो चुका है। एनबीसीसी नामक कंपनी ने इसके लिए पंजीकरण भी करा दिया है।
सवाल यह है कि अगर वाकई सीएम रिस्पना के किनारे इस वृक्षारोपण के लिए गंभीर हैं तो फिर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम के लिए जगह कहां बचेगी !
नदी पुनर्जीवन की बात कहना ही जुमलेबाजी
दूसरा तथ्य यह है कि इस अभियान को लेकर रिस्पना पुनर्जीवन जैसी बात कहना ही अपने आप में बहुत बड़ी जुमलेबाजी है। पुनर्जीवन उस नदी का होता है जो नदी मर चुकी है नदी का क्षेत्र वन विभाग के अंतर्गत आता है और वन विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक रिस्पना नदी कभी मरी ही नहीं। वह आज भी एक जीवित नदी है। रिस्पना नदी में जितना पानी 1970 में बहता था, उतना ही आज भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब रिस्पना नदी का पानी पेयजल के लिए टैप नहीं होता था और अब अपने उद्गम स्थान से 3 जगहों पर देहरादून के लिए रिस्पना का पानी टैप किया जाता है।
इतना अधिक पानी पहले ही टैप कर लिए जाने से नदी में पर्याप्त जल बच ही नहीं पाता। लेकिन यह बात कोई भी नहीं बताता।
असली दुश्मन “रिस्पना-अतिक्रमण” पर मौन
तीसरा तथ्य यह है कि अगर यह वाकई जुमलेबाजी नहीं है तो रिस्पना नदी लगातार अतिक्रमण की शिकार हो रही है। कई जगह पर रिस्पना नदी चार-पांच फुट रह गई है। इस सरकार मे अतिक्रमण हटाने के लिए कोई कार्यवाही कभी नहीं की गई।
रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम के तहत 2 साल पहले नदी के किनारे अतिक्रमण से बचाए जाने के लिए दीवारें बनाई जा रही थी, लेकिन वर्तमान सरकार बनते ही राजनीतिक दबाव में यह दीवार बनाई जानी रोक दी गई। यदि दीवार बन जाती तो उससे आगे नदी को अतिक्रमण किया जाना असंभव हो जाता।
रिस्पना जनभावना का दोहन।टैक्नीकल विशेषज्ञ नदारद।
चौथा तथ्य यह है कि रिस्पना पुनर्जीवन अभियान में केवल जनभावनाओं को राजनीतिक कारणों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें राजनीतिक तथा प्रशासनिक अमला ही शामिल है। लेकिन न तो इसे पुनर्जीवित करने के संबंध में कोई स्टडी की गई और न ही किसी तकनीकी विशेषज्ञ से पूछा गया।
वन विभाग की राय को किया दरकिनार
पांचवा तथ्य यह है कि वन विभाग की राय को भी दरकिनार कर दिया गया। कुछ समय पहले वन विभाग ने इससे संबंधित मीटिंग में सुझाव दिया था कि नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी से नदी के पुनर्जीवन से संबंधित सुझाव और स्टडी करा ली जाए। लेकिन मुख्यमंत्री ने खुद ही इस नदी के लिए तकनीकी राय लिए जाने से मना कर दिया।
यदि वाकई सीएम इसे जुमलेबाजी तक सीमित नहीं रखना चाहते तो उन्हें तकनीकी पहलू को नजरअंदाज करने की क्या जरूरत थी !
तथ्य यह है कि वन अधिकारियों ने पिछली एक ओपन मीटिंग में मुख्यमंत्री को कहा था कि इसमें पुनर्जीवन जैसी बात कहना उचित नहीं है, क्योंकि यदि पुनर्जीवित करने के नाम पर दो लाख पेड़ों का प्लांटेशन किया गया तो वह लोग ऑडिट में फंस सकते हैं कि आखिर कितना पुनर्जीवीकरण किया गया और कितना नदी रिचार्ज हुई ! विभाग के अधिकारियों के अनुरूप इसे पुनर्जीवीकरण किया जाना संभव नहीं है।
सबसे खास ओमप्रकाश ही “नद-भक्षी”
छठा सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जिस प्रशासनिक अमले को लेकर मुख्यमंत्री नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान चला रहे हैं, उन्हीं लोगों ने देहरादून की नदियों पर दसियों बीघा जमीन कब्जा रखी हैं। नदी की जमीनी भक्षण करने वाले यह “नदभक्षी अफसर” नदी तथा जंगलात की जमीनों पर अपनी गिद्ध दृष्टि रखते हैं।
उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री के सबसे खास और ताकतवर ब्यूरोक्रेट ओम प्रकाश ने राजपुर रोड स्थित जाखन के पास अपने घर से लगती हुई कॉलोनी का एक बड़ा सा पार्क तो कब्जाया हुआ ही है साथ ही सामने बहती नदी की 20 बीघा से अधिक जमीन अपने कब्जे में ले ली है।
नदी की जमीन को कब्जा कर ओम प्रकाश ने ट्वायलेट बाथरुम बनवा रखा है और उस पर अन्य निर्माण किए जाने की भी तैयारी कर रखी है।
फिलहाल इस जमीन के काफी बड़े हिस्से पर पर पुश्ते आदि लगाकर समतल किया गया है। तथा बाकायदा उद्यान विभाग से माली प्रेम सिंह बिष्ट को अवैध रूप से इस जमीन में जोत रखा है। अगर मुख्यमंत्री का सबसे पावरफुल अफसर एक ओर रिस्पना नदी के पुनर्जलीकरण करने के नाम पर मुख्यमंत्री के साथ फोटो खिंचवाता है और दूसरी ओर नदी की 20 बीघा जमीन को कब्जा करता है। ऐसे अभियान को जुमलेबाजी नहीं तो और क्या कहेंगे !
ओम प्रकाश ने नदी की जमीन पर कब्जा कर रखा है। यह न सिर्फ राजस्व विभाग और नगर निगम सहित एमडीडीए के संज्ञान में है बल्कि मुख्यमंत्री भी इस बात से भली भांति वाकिफ हैं। उसके बावजूद अपने चहेते कब्जेदार अफसर पर कार्यवाही न करके मुख्य मंत्री भी नदी भूमि पर अवैध कब्जेदारों को संरक्षण और शह दे रहे हैं।
पर्वतजन से ओमप्रकाश की जमीन पर काम कर रहे माली ने यह बात स्वीकार की, कि यह जमीन ओमप्रकाश ने कब्जा रखी है। माली की शिकायत है कि उसकी आयुर्वेद विश्वविद्यालय में तैनाती है, फिर भी उससे ओमप्रकाश की इस कब्जाई हुई जमीन पर काम कराया जा रहा है। और उसका शोषण भी किया जा रहा है। पाठकों की जानकारी के लिए एक बार फिर से बता दें कि जब तक मुख्यमंत्री के सबसे खास अफसर ही नदी की जमीन को कब्जाए बैठे हैं, तब तक देहरादून की नदियों के अतिक्रमण मुक्त होकर सुंदर स्वच्छ और निर्मल होने की बात कहना सबसे बड़ी जुमलेबाजी है।
पाठकों को एक बार फिर से याद दिला दें कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम अभी तक सिर्फ धरातल पर इसलिए नहीं उतर पाई क्योंकि इस स्कीम को शुरू करने के लिए नदी को कब्जा मुक्त कराना बहुत जरूरी है।
किंतु जब नदी पर ओम प्रकाश ने कब्जा कर रखा है तो कौन अफसर अतिक्रमण हटाने की हिम्मत करेगा !
कुछ समय पहले राजस्व विभाग, नगर निगम और एमडीडीए की संयुक्त टीम ने जब ओमप्रकाश की कब्जाई हुई जमीन का सर्वे करना चाहा तो उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके टीम को दौड़ा दिया था।
तब से रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम का काम भी ठप पड़ा हुआ है। मुख्यमंत्री कभी एक रसायन पाइप के माध्यम से नदी में छिड़कते हुए फोटो सेशन कराते हैं तो कभी वृक्षारोपण अभियान जैसी खबर छपवाकर सस्ती सुर्खियां बटोरते हैं। किंतु जब तक वह ओमप्रकाश जैसे “नदभक्षी” अफसरों पर कोई कार्यवाही नहीं करेंगे और उन्हें अपनी बगल में लेकर घूमेंगे, “ऋषिपर्णा” और “जीरो टॉलरेंस” जैसे शब्द किसी जुमलेबाजी की तरह ही नजर आएंगे ।