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किस्सा सारा कुर्सी का

March 3, 2017
in पर्वतजन
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भाजपा और कांग्रेस एक बार फिर बदलाव और विकास जैसी विभिन्न यात्राओं के नाम पर जनता से समर्थन हासिल करने सड़कों पर उतर चुकी है, लेकिन असली मकसद कुर्सी है।

राजीव थपलियाल

भगवान कृष्ण की ईजाद राजनीतिक यात्राओं का दौर उत्तराखंड में बदस्तूर जारी है। फर्क यह कि द्वापर युग में राजपुरुष श्रीकृष्ण ने ‘लोकहित’ के लिए इन यात्राओं को अंजाम दिया था, जबकि कलियुग के लोकपुरुष ‘राजलोभ’ में सियासी यात्राओं में जुटे हैं। सूबे की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय सतत विकास यात्राओं के माध्यम से सत्ता  में अंगद का पैर जमाने की इच्छा लिए हुए रहे तो दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता पर विराजमान भाजपाई सूरमा परिवर्तन यात्राओं के जरिए खुद के लिए बीजापुर में जगह चाह रहे हैं। दोनों पार्टियों की इन राजसूयी यात्राओं से इनके पुरोधाओं की चक्रवर्ती सम्राट बनने की तमन्ना जो भी रंग दिखाए, मगर लोगों के जेहन में कई सवाल तो उपज ही गए हैं।
कैसा संकल्प, किसका विकास
कांग्रेस ने सतत् संकल्प विकास यात्रा पूरे प्रदेश में निकाली। पार्टी मुखिया किशोर उपाध्याय के दिमाग की उपज इन यात्राओं का मकसद कांग्रेस सरकार द्वारा राज्य में कराए गए विकास कार्यों को जनजन तक पहुंचाना बताया गया, लेकिन सवाल यहीं से उठता है कि कांग्रेस के ‘कर्मवीर पुरोधाओं’ को अपनी करनी के लिए कथनी की जरूरत क्यों आ  पड़ी!
जाहिर सी बात है जिस हालत में कांग्रेस को सत्ता  मिली थी, उसी हालत में अब भी है। जिस विकास की चाह में मतदाताओं ने भाजपा को हटाया था, वहां से कांग्रेस इंचभर भी नहीं खिसक सकी। भाजपा सरकार कभी सारंगी बजाने, तो कभी स्टुर्जिया के संग मस्ती करने तो कभी सीएम-सीएम खेलने में व्यस्त रही। भाजपा ने नदियों के जल के मार्फत पॉवर सेटर में अपने लिए ‘उम्मीदें देखीं’ तो कांग्रेस ने नदियों के तलछट के जरिए रेत-बजरी में अपने लिए ‘प्रगति’ देखी।
कैसा परिवर्तन, किसका परिवर्तन
भारतीय जनता पार्टी ने सूबे में करीब चार माह तक परिवर्तन रैलियों का दौर चलाया। कई अंतद्र्वंदों से जूझ रही भाजपा के निचले स्तर के कायकर्ता समझ ही नहीं पा रहे हैं कि पार्टी कैसा और किसका परिवर्तन चाह रही है। जिस अमृता रावत पर पॉलीहाउस घोटाले का आरोप लगाते हुए भाजपा ने विधानसभा में हंगामा काटा, सूत्रों के मुताबिक वे अब ‘बेचारी’ हैं और बीजेपी के टिकट पर चौबट्टाखाल से अपने पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता के पास जाकर वोट मांगने वाली हैं। यही नहीं उनके राजनीतिक गुरू एवं पति सतपाल महाराज में भावी मुख्यमंत्री की उम्मीदें तलाशी जा रहीं हैं। जिन विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री रहने के दौरान ‘भ्रष्टतम’ और न जाने किन-किन विशेषणों से भाजपा के कर्णधारों ने नवाजा, वे विजय बहुुगुणा अब पार्टी के एक स्टार प्रचारक होंगे।
डा. हरक सिंह के नेतागीरी के खिलाफ हमेशा बीजेपी ने परिवर्तन मांगा था, लेकिन वे भी बीजेपी के मस्तक के ताज बन चुके हैं। कुंवर प्रणव चैंपियन की ‘अंग-दिखाऊ’ और ‘गोली-मारू’ सियासत को भाजपा के सभ्य लोगों ने हमेशा अश्लीलता और अराजकता फैलाने वाला करार दिया। वे भाजपा के पुर में वोटों की खान मान लिए गए हैं। केदारनाथ में शैलारानी पर बीजेपी समर्थित व्यापारी को आत्महत्या के लिए मजबूर करने को लेकर पार्टी ने हल्ला मचाया, वे आज देवीस्वरूपा पूजनीय हो चुकी हैं। इन नामों के साथ और भी नाम हैं, जिन सभी के खिलाफ भाजपा के नेता आरोपों की बौछार करते थे तो लगता रहा कि ये लोग वोट देना तो छोडि़ए, शक्ल  देखने के काबिल भी नहीं हैं।
भाजपा की यात्रा का मकसद यदि मौजूदा कांग्रेस सरकार के घोटाले-घपलों से परिवर्तन चाहना था तो जनता का इससे या सरोकार। घपलों में न आप कम न वे कम। मलाई चाहे कोई भी खाए, जनता को दूध मिला पानी भी ढंग से नहीं मिलना।
इस सबका अर्थ यही निकलता है कि परिवर्तन केवल कुर्सी का चाहिए। कुर्सी में बैठने वाले व्यक्ति में परिवर्तन चाहिए। उत्तराखंड  में वैसे भी बीजेपी कुर्सी-परिवर्तन की माहिर मानी जाती है।
कैसा शुभाशीष, किसका शुभाशीष
सतत् विकास यात्राओं के बाद अब कांग्रेस ने शुभाशीष यात्रा के नाम से नया स्वांग रचा है। यह समझ से परे है कि कांग्रेसी इसमें जनता को आशीष देंगे अथवा लेंगे। सवाल यह भी है कि कांग्रेसी जनता से कैसा आशीष चाहते है। सवाल यह भी है कि क्या  कांग्रेस को उसका इच्छित आशीष देगी!

एक नजर पुरानी यात्राओं पर भी
सूबे में सियासी यात्राओं की नौटंकी पहले भी होती आई हैं। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से प्रेरित बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से अलग बने उत्तराखंड में तिवारी सरकार से सत्ता पाने लिए परिवर्तन यात्राएं निकाली थी। तब कुर्सी परिवर्तन में मिली कामयाबी को बीजेपी ने अपने लिए लक्की माना और मौजूदा हरीश सरकार को कुर्सी से हटाने के लिए फिर परिवर्तन यात्रा शुरू की। इस वक्त हालात जुदा हैं। तब तिवारी खुद कांग्रेस को सत्ता में नहीं चाहते थे, लेकिन इस बार हरदा ऐसा नहीं चाहते। इस बार कांग्रेस भी यात्राओं में लगी है। इन यात्राओं के परिणाम के लिए चंद दिनों का इंतजार करना होगा।

 


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