उत्तराखंड सचिवालय का फोर्थ फ्लोर जीरो टॉलरेंस वाली सरकार में भ्रष्टाचार का सिंगल विंडो बन कर उभर रहा है। आम जनता के लिए यहां पर कुछ और पॉलिसी बनती है, जबकि भाजपा विधायकों और चहेतों के लिए सभी नीतियां मुख्यमंत्री कार्यालय के एक फोन पर दरकिनार कर दी जाती हैं।
ताजा मामला चहेतों को 88 लाख रुपए के ठेके से संबंधित है। लाखामंडल में एक कृषि संग्रह केंद्र का निर्माण किया जाना था। पहले मंडी परिषद ने इसके लिए ई टेंडर निकाला। किंतु मुख्यमंत्री कार्यालय से जब इस पर मंडी परिषद के अधिकारियों को डांट पड़ी और उनको कहा गया कि यह काम भाजपा के आदमियों को दिया जाना है तो फिर दबाव में उप महाप्रबंधक ने इस काम के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए और जिन अखबारों का स्थानीय जनता ने नाम तक नहीं सुना है उनमें यह टेंडर प्रकाशित करके चहेतों को काम दिलवा दिया।
पर्वतजन की जानकारी के अनुसार विकास नगर के भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने इस कार्य को ई टेंडर से कराए जाने पर आपत्ति जताई थी। इस पर मुख्यमंत्री के कहने पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने अधिकारियों को फोन करके ई टेंडर निरस्त करने के लिए कह दिया।
इसका सीधा सा मतलब है कि जब सरकार को चहेतों को काम देना हो तो उसके लिए कोई नियम कायदा नहीं रह जाता। और यदि कोई काम अटकाना हो अथवा बड़ी सेटिंग करनी हो तो ई-टेंडर का विकल्प है ही।
हाल ही में जीरो टॉलरेंस वाली सरकार ने बाहर के कुछ बड़े ठेकेदारों को बड़े काम दिलवाने के लिए और एकमुश्त कमीशन की रकम हासिल करने के लिए यह नियम निकाला था कि 25 लाख रुपए से ऊपर के ठेके ई टेंडर से दिए जाएंगे। तब एक महीने से भी अधिक समय तक उत्तराखंड के ठेकेदार एसोसिएशन ने ई टेंडर के विरोध में धरना प्रदर्शन किया था लेकिन सरकार का दिल नहीं पसीजा। किंतु चहेतों के लिए सरकार को नियम कायदे तोड़ने से कोई परहेज नहीं है।
हाल मे जारी शासनादेश के अनुसार 25 लाख रुपए से ज्यादा के वर्क आर्डर छोटे-छोटे टुकड़ों में नहीं तोड़े जा सकते। खास करके इस तरह के कृषि संग्रह केंद्र के निर्माण जैसे काम।
यह है पूरा मामला
मामला यह है कि देहरादून के लाखामंडल के पास धौरा पुडिया पंचायत में कृषि संग्रह केंद्र का निर्माण किया जाना है। इसके लिए 88 लाख रुपए की लागत तय की गई थी।इस पूरे मामले में सरकार की जीरो टॉलरेंस पर कुछ गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
पहला सवाल यह है कि पहले मंडी परिषद ने इसके निर्माण के लिए ई-टेंडर क्यों निकाला ?
मंडी परिषद ने 10 मार्च को ई टेंडर निकाला कि धौरा पुडिया में 88 लाख रुपए की लागत से कृषि संग्रह केंद्र का निर्माण किया जाना है। 31मार्च को वेबसाइट पर प्रकाशित यह टेंडर डालने की अंतिम तारीख 17 अप्रैल रखी गई थी किंतु अंतिम तारीख से 14 दिन पहले ही 3अप्रैल को यह टेंडर वेबसाइट से हटा दिया। सवाल यह है कि पहले ई-टेंडर प्रकाशित किया क्यों और अगर कर दिया था तो फिर इसे वेबसाइट से तय सीमा से पहले ही हटाया क्यों ?
डीजीएम मंडी अवनीष कुमार सफाई देते हैं कि ई-टेंडर में किसी ने भाग नहीं लिया। ऐसे कैसे हो सकता है कि ई टेंडर में कोई भाग ही न ले ! आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ यदि मनसा ठीक होती तो अंतिम तारीख से पहले ई टेंडर वेबसाइट से नहीं हटाया जाता। जाहिर है अधिकारी दबाव मे आ गया ।
दूसरा सवाल यह है कि यदि हम यह भी मान ले कि ई-टेंडर में किसी ने पार्टिसिपेट नहीं किया तो फिर विभाग ने दोबारा ई टेंडर क्यों नहीं निकाला ?
तीसरा सवाल यह है कि 88 लाख रुपए के इस निर्माण कार्य के छोटे-छोटे टुकड़े क्यों किए गए ?
जब सरकार ने यह तय कर दिया है कि 25लाख रुपए से अधिक के काम छोटे टुकड़ों में नहीं तोड़े जा सकते। देहरादून ठेकेदार यूनियन के अध्यक्ष गोविंद सिंह पुंडीर कहते हैं कि ऐसा सरकार ने अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए किया है। पुंडीर कहते हैं कि इससे पारदर्शिता तो खत्म होती ही है। कार्य की गुणवत्ता भी खत्म होती है।
चौथा सवाल यह है कि ई टेंडर निरस्त करके छोटे-छोटे लॉट में तोड़ने के बाद इन टेंडरों का प्रकाशन ऐसे अखबारों में क्यों करवाया गया, जिसका नाम तक कभी क्षेत्रीय लोगों ने नहीं सुना। मंडी परिषद ने 25 अप्रैल को यह टेंडर दैनिक राष्ट्रीयता, दूसरा द हाॅक समाचार और तीसरा द पायनियर में प्रकाशित कराया। यह तीनों अखबार लाखामंडल तो क्या देहरादून से दस किलोमीटर से बाहर तक की किसी न्यूज़ एजेंसी में नहीं आते तो फिर इन्हें पाठक कैसे पढ़ेंगे और कैसे उन्हें टेंडर के बारे में पता चलता ! जाहिर है कि इन तीनों अखबारों में टेंडर इसीलिए छपवाए गए ताकि किसी को पता न चले।
इन अखबारों में 11लाख रुपए के साइट विकास का टेंडर तथा 17लाख रुपए का ऐक्सन प्लेट फ्रेम के टेंडर प्रकाशित किए गए। इस टेंडर में तीन कंपनियों ने पार्टिसिपेट किया। जिसमें एक रुड़की की इमरान कंस्ट्रक्शन दूसरी देहरादून की पटेल कंस्ट्रक्शन और तीसरे डी क्लास के ठेकेदार सीताराम चौहान ने टेंडर डाला।
सीताराम चौहान ने बताए गए लागत से मात्र 10 पैसे कम के रेट भरे और उन्हें टेंडर आवंटित कर दिया गया। डी क्लास के ठेकेदार सीताराम चौहान कालसी के रहने वाले हैं। मंडी परिषद ने कुल 88 लाख रुपए के काम में से अभी केवल 28लाख रुपए के काम का ही टेंडर निकाला है। शेष 55लाख के काम विभाग बाद में सेटिंग (गोटी) के माध्यम से ही देना चाहता है। तथा शेष ₹5लाख वह कंटीजेंसी आदि फंड में खर्च करेगा।
पांचवा सवाल यह है कि कृषि विपणन केंद्र का निर्माण पहले कृषि मंत्री द्वारा लाखामंडल में स्वीकृत किया गया था। तो फिर यह नेशनल हाईवे से 7 किलोमीटर दूर धोरा पुडिया गांव में क्यों बनाया जा रहा है ? जबकि न तो वहां पर बिजली है, न पानी है और न ही वहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग ही है। और न ही वहां पर किसानों के खेत ही हैं तो फिर इस जगह पर स्थानीय ग्राम प्रधान की आपत्ति के बाद भी क्यों कृषि संग्रह केंद्र बनाया जा रहा है ?
छठा सवाल यह है कि जब धोरा पुडिया की ग्राम प्रधान सरिता देवी ने 88 लाख रुपए के इस टेंडर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए फिर से एक ही ई टेंडर किए जाने के लिए मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, राज्यपाल सहित डीजीएम मंडी परिषद को पत्र लिखा तो फिर उसका संज्ञान क्यों नहीं लिया गया !
स्थानीय लोगों ने भी इस पर सवाल उठाए हैं और कहा कि इससे कार्य की गुणवत्ता प्रभावित होगी और काम में पारदर्शिता भी नहीं रहेगी इसलिए दोबारा से ई-टेंडर किया जाए। किंतु मुख्यमंत्री कार्यालय के दबाव में अब अधिकारी ऐसा करने को राजी नहीं हैं।
उत्तराखंड मंडी परिषद के उप निदेशक ए के मिश्रा का कहना है कि दो स्थानीय गुटों की लड़ाई में इस मामले की फजीहत हो रही है। फिलहाल इस मामले में मुख्यमंत्री कार्यालय तथा विधायक मुन्ना सिंह के दबाव के कारण सरकार की जीरो टॉलरेंस वाली पॉलिसी दोबारा से गंभीर सवालों के घेरे में आ गई है।